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अखबारों में 12 साल बाद भी लागू नहीं हुआ मजीठिया वेजबोर्ड, बढ़ा वेतन मांगने पर पत्रकार हो रहे प्रताड़ित

चुनाव नजदीक आते ही राजनैतिक पार्टियां सभी वर्गों के साथ ही पत्रकारों के लिए भी लुभावने वादे कर रही हैं,जिसमें पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करना और वृद्धावस्था पेंशन देने जैसे वादे शामिल हैं,लेकिन पत्रकारों की आर्थिक सुरक्षा के लिए सबसे जरूरी मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने के मामले में सभी दल मौन हैं। सन 2011 में केन्द्र सरकार द्वारा मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू की गई थीं, जिसमें पत्रकारों को सम्मानजनक वेतन एवं भत्ते देने का प्रावधान था। पिछले 12 साल से पत्रकार एवं अन्य समाचार पत्र कर्मचारी मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ मांगने पर अखबार मालिकों ने अखबार कर्मियों को न सिर्फ प्रताड़ित किया,बल्कि अवैधानिक ढंग से उनकी सेवाएं भी समाप्त कर दीं। समाचार पत्रों ने आपसी सांठगांठ कर तय किया कि मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ मांगने के लिए श्रम न्यायालय में प्रकरण लगाने वाले कर्मियों को कोई भी नौकरी नहीं देगा। कहीं भी नौकरी नहीं मिलने पर पत्रकारों एवं गैर पत्रकार कर्मचारियों को सब्जी बेचने, आटो चलाने व लॉंड्री जैसे काम करने को विवश होना पड़ा है।
एक हजार से अधिक समाचार पत्र कर्मचारियों को नौकरी से निकाला
पिछले एक दशक में मध्यप्रदेश में मजीठिया वेज बोर्ड की मांग कर रहे करीब एक हजार पत्रकारों एवं गैर पत्रकार समाचार पत्र कर्मचारियों को अवैध ढंग से नौकरी से निकाला जा चुका है। इन सभी के प्रकरण प्रदेश के विभिन्न श्रम न्यायालयों जैसे भोपाल, होशंगाबाद, इंदौर,उज्जैन,ग्वालियर एवं जबलपुर में चल रहे हैं। अखबार मालिकों और सरकार की सांठगांठ के चलते पीड़ित पत्रकारों को अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है। नौकरी से निकाले जाने के बाद इन अखबार कर्मियों को बतौर सजा अन्य समाचार पत्रों में भी नौकरियां नहीं दी गईं। उन्हें आर्थिक और सामाजिक स्तर पर प्रताड़ित होना पड़ रहा है। वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 एवं सुप्रीम कोर्ट के 2017 के आदेश में स्पष्ट है कि अखबार मालिकों ने यदि वेजबोर्ड का लाभ नहीं दिया है ओर कर्मचारियों का अखबार मालिकों पर बकाया है,तो कर्मचारियों को नौकरी से डिसमिस या डिस्चार्ज नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद समाचार पत्र प्रबंधनों ने मनमानी करते हुए कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया।
बढ़ा हुआ वेतन मांगा तो मिली प्रताड़ना
देश के सबसे बड़े अखबारों में से एक के भोपाल एडिशन में काम करने वाले संदीप आगलावे बताते हैं, कि उन्होंने प्रबंधन से मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ देने की मांग की,जिसे प्रबंधन ने खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने वेज बोर्ड का लाभ दिलाने के लिए श्रम न्यायालय में प्रकरण दर्ज कराया। इसके बाद से ही अखबार प्रबंधन ने उन्हें प्रताड़ित कर प्रकरण वापस लेने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। केस वापस नहीं लेने पर अखबार प्रंबधन ने अवैधानिक ढंग से उन्हें नौकरी से निकाल दिया। जबकि नियमानुसार श्रम न्यायालय में प्रकरण होने पर किसी कर्मचारी की बिना श्रम न्यायालय की अनुमति के सेवा समाप्त नहीं की जा सकती। आगलावे बताते हैं कि नौकरी से निकाले जाने के बाद उन्हें किसी अन्य समाचार पत्र ने भी नौकरी नहीं दी। नौकरी से मिलने वाला वेतन परिवार के लिए इकलौता आय का साधन था। वह छिन जाने के बाद मजबूरन उन्हें आटो चलाना पड़ा। बाद में हालात ऐसे बने कि आटो भी बेचना पड़ा। वर्तमान में वह लॉंड्री में ड्रायक्लीन का काम कर रहे हैं। वह बताते हैं कि घर के हालात ऐसे थे कि जवान बेटी की शादी के लिए भी पैसे नहीं थे,रिश्तेदारों की मदद से बेटी की शादी कर पाए हैं।
देश प्रमुख अखबारों में से एक समाचार पत्र के भोपाल एडिशन में उप संपादक के पद पर कार्य करने वाले पंकज जैन बताते है कि उन्होंने जब मजीठिया वेजबोर्ड की मांग की तो बिना किसी आधार के प्रबंधन ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया। इसके बाद उनके आर्थिक हालात खराब होते चले गए। परिवार का खर्च चलाने के लिए उन्होंने ठेले पर सब्जी बेचने तक का काम किया। अभी भी वह श्रम न्यायालय में अवैध सेवा समाप्ति का केस लड़ रहे हैं। प्रकरण की सुस्त रफ्तार के कारण अभी तक उन्हें न्याय नहीं मिल पाया है।
क्या है मजीठिया वेज बोर्ड
केन्द्र सरकार वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के प्रावधान के तहत प्रत्येक 10 साल में एक वेजबोर्ड का गठन करती है। यह वेजबोर्ड पत्रकारों एवं गैर पत्रकार समाचार पत्र एवं न्यूज एजंेसी के कर्मचारियों के लिए वेतन एवं भत्तों का निर्धारण करता है। प्रत्येक समाचार पत्र एवं न्यूज एजेंसी को वेजबोर्ड की अनुशंसा के अनुसार वेतन देना होता है। देश में पहला वेजबोर्ड 2 मई 1956 को गठित हुआ था,जिसकी अनुशंसाओं को केन्द्र सरकार ने 11 मई 1957 को स्वीकार किया था। अब तक कुल सात वेज बोर्ड गठित हो चुके हैं। वर्तमान में मजीठिया बेजबोर्ड की अनुशंसाएं विद्यमान हैं,जिसका गठन 24 मई 2007 को रिटायर्ड जस्टिस मजीठिया की अध्यक्षता में हुआ था और इसकी अनुशंसाओं को 11 नवम्बर 2011 को केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर दिया था। देश के प्रमुख अखबारों ने इस वेजबोर्ड की वैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी,लेकिन 7 फरवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड को वैधानिक मानते हुए इसे लागू करने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि समाचार पत्र संस्थान 11 नवम्बर 2011 से इसका लाभ कर्मचारियों को दें। एरियर की राशि एक साल में चार समान किश्तों में भुगतान की जाए। किन्तु आज तक समाचार पत्र प्रबंधनों में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का पालन नहीं किया है।
अखबार मालिक प्रभाव का इस्तेमाल कर लागू नहीं होने दे रहे वेजबोर्ड
वरिष्ठ अधिवक्ता और श्रम कानूनों के विशेषज्ञ एडवोकेट जीके छिब्बर बताते हैं कि समाचार पत्र संस्थान सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नही ंकर रहे हैं। वह कानूनी लूपहोल्स का फायदा उठाकर मामलों को लटकाए हुए हैं। समाचार पत्र संस्थान अपने प्रभाव का उपयोग कर मजीठिया वेजबोर्ड लागू नहीं होने दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले संघ स्टेट वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन एमपी के अध्यक्ष मयंक जैन बताते हैं कि समाचार पत्र संस्थान संसाधन सम्पन्न व प्रभावशाली हैं। सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट में वह देश के नामचीन व मंहगे वकीलों को खड़ा कर देते हैं,जबकि पत्रकारों के पास कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए संसाधनों की भारी कमी है। ज्यादातर पत्रकार व समाचार पत्र कर्मचारी नौकरी से निकाले जाने से बेरोजगार हो गए हैं। सरकारें भी अखबार मालिकों के समर्थन में खड़ी दिखाई देती हैं,जिससे न्याय पाना और जटिल हो गया है।
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