लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण में मप्र की छह लोकसभा सीटों जबलपुर, मंडला, सीधीं, शहडोल, बालाघाट और छिंदवाड़ा में 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। लोकसभा की 29 सीटों में से सबसे कड़ी लड़ाई का अखाड़ा छिंदवाड़ा सीट बनी हुई है। कांग्रेस से आयातित नेता स्थानीय भाजपा नेताओं के लिए सिरदर्द बन गए और कमलनाथ के प्रति जनता में सहानुभूति का वातावरण बन गया है। इसकी झलक भी अमित शाह के रोड शो में दिखाई दी, जहां ‘दीपक भैया की बात पर मोहन लगेगी हाथ पर, का नारा लगा रहा था। खबर सबकी के लिए पत्रकार गणेश पांडेय ने इस हाईप्रोफाइल सीट की ग्राउंड रिपोर्ट लिखी है।
बीजेपी ने यह सीट जीतने के लिए अपना पूरा जोर लगा दिया है। यहां तक कि भाजपा नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के नाम पर छिंदवाड़ा से लेकर भोपाल तक में अपनी राजनीति चमकाने वाले नेताओं को भाजपा में शामिल कर स्थानीय और निष्ठावान नेताओं और कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा नेताओं ने सिर्फ मुंह दिखाई की। भाजपा के एक बड़े जिला पदाधिकारी का कहना था कि पार्टी को अब कांग्रेस के नेता ही जिताएंगे। ग्राउंड रिपोर्ट भी इसी बात की पुष्टि करते हैं। दरअसल, भाजपा नेतृत्व ने कांग्रेस से आयातित नेताओं की पृष्ठभूमि की पड़ताला और न ही जनता के बीच उनकी छवि की पड़ताल की। पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना से लेकर सैयद जाफर तक की छवि जनता के बीच अच्छे जनप्रतिनिधि के रूप में नहीं है। वैसे भी इनका वजूद केवल कमलनाथ के नाम पर ही टिका रहा है। जय-जय कमलनाथ का नारा लगाने वाले सैयद जाफर से लेकर दीपक सक्सेना सहित दर्जनों नेताओं के चले जाने से छिंदवाड़ा के मतदाताओं और जनता में कमलनाथ के प्रति सहानुभूति नजर आई। दरअसल कमलनाथ सीधे जनता से जुड़े हुए हैं उनके दुख-दर्द में हमेशा साथ खड़े नजर आए हैं। राजनीतिक पंडितों को भले ही यह लग रहा है कि कांग्रेस से बीजेपी में बड़ी संख्या में गए नेताओं की वजह से कमलनाथ कमजोर हुए हैं पर असलियत कुछ और ही ग्राउंड पर नजर आ रही है।
कई बार ज्यादा जोर लगाने पर भी हो जाता है उलट फेर
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह छिंदवाड़ा में प्रचार और रोड शो कर चुके हैं। अमित शाह छिंदवाड़ा में रोड शो करने पहुंचे, तो यह माना जा सकता है, कि बीजेपी इस सीट पर जीत के करीब है. कई बार ज्यादा जोर लगाने से भी राजनीति में उलटफेर हो जाता है।अभी जो ओपिनियन पोल सामने आ रहे हैं, उसमें तो ऐसा ही माना जा रहा है, कि मप्र में चुनाव परिणाम 2019 जैसे ही रहेंगे। छिंदवाड़ा सीट कांग्रेस के खाते में जा सकती है और बाकी 28 सीटें बीजेपी जीतने में सफल होगी। छिंदवाड़ा में कांग्रेस के भीतर बड़े स्तर पर बगावत के बाद भी कमलनाथ अगर यह चुनाव जीतते हैं, तो निश्चित रूप से यह क्रेडिट कमलनाथ के खाते में ही जाएगा। यह जीत कांग्रेस की नहीं मानी जाएगी बल्कि कमलनाथ परिवार की मानी जाएगी। वैसे भी कांग्रेस का कोई बड़ा राष्ट्रीय नेता प्रचार के लिए छिंदवाड़ा नहीं पहुंच रहा है। यह सीट कमलनाथ का गढ़ मानी जाती है। नकुलनाथ के कारण कमलनाथ को छिंदवाड़ा में संकट का सामना करना पड़ रहा है।
अश्लील वीडियो मुद्दे में भी मिली सहानुभूति
छिंदवाड़ा की लड़ाई अश्लील वीडियो को लेकर भाजपा प्रत्याशी विवेक साहू बंटी ने जिस तरीके अक्रामकता दिखाते हुए पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई और ने बिना देर किए उनके बंगले पर पहुंच गई, इसकी वजह से भी कमलनाथ के प्रति सहानुभूति बढ़ गई। राजनीतिक हल्कों में तो अब ऐसा माना जा रहा है कि छिंदवाड़ा सीट पर बीजेपी के अति जोर के कारण कमलनाथ को सहानुभूति मिलती दिखाई पड़ रही है। उम्र के इस पड़ाव पर कमलनाथ परिवार अपनी राजनीतिक विरासत बचाने की आखिरी कोशिश कर रहे है। वैसे भी बीजेपी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता पार्टी प्रत्याशी विवेक साहू बंटी की कर शैली और व्यवहार से नाराज नजर आए।
कमलनाथ और बीजेपी के रिश्ते हमेशा सौहार्द्रपूर्ण रहे
राज्य की राजनीति में कमलनाथ और भाजपा नेताओं के संपर्क हमेशा सौहार्द्रपूर्ण ही रहे हैं। पहली बार बीजेपी कमलनाथ को इतनी खुली चुनौती दे रही है। लोकसभा चुनाव के पहले कमलनाथ और नकुलनाथ के बीजेपी में शामिल होने की चर्चाएं और अफवाहें कई दिनों तक चलती रहीं। राजनीतिक अफवाहें अभी भी ऐसे ही चल रही हैं कि पारिवारिक विरासत और बिजनेस बचाने के लिए नकुलनाथ को बीजेपी में शामिल करा सकते हैं। चर्चा तो यहां तक है कि कमलनाथ के निकटतम सहयोगी जो बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, उसके पीछे भी कमलनाथ की सहमति मानी जा रही है।
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