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कांग्रेस हाईकमान की कमेटी का बना सीमित दायरा, प्रत्याशी व बड़े नेता से मिलकर फैक्ट फाइडिंग करेगी
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में करारी हार हुई है जिसके कारणों का पता लगाने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बनाई गई फैक्ट फाइडिंग कमेटी प्रत्याशी, बड़े नेताओं के सीमित दायरे में जांच कर औपचारिकता पूरी करने शनिवार को भोपाल आ रही है। संभाग, जिले या लोकसभा क्षेत्र के जिम्मेदार नेताओं से चर्चा के बिना फैक्ट फाइडिंग की औपचारिकता पूरी करने का कार्यक्रम प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने बनाया है जिसकी भनक हार से क्षुब्ध दूसरी-तीसरी लाइन के नेताओं व कार्यकर्ताओं तक को नहीं है। पढ़िये रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस को जो झटका दिया है, उसके पीछे के कारणों तक जाने के लिए हाईकमान ने फैक्ट फाइडिंग कमेटी बनाई है जिसका दौरा 29 जून को मध्य प्रदेश में है। महाराष्ट्र के बड़े नेता पृथ्वीराज चव्हाण, ओडिसा के सप्तागिरी शंकर और गुजरात कांग्रेस के नेता जिग्नेश मेवानी कमेटी में हैं। लोकसभा चुनाव की जबरदस्त हार के कारणों को जानने के लिए यह कमेटी आ रही है लेकिन इसके कार्यक्रम को देखकर यह कहा जा रहा है कि इसका दौरा महज औपचारिकता पूरी करने के लिए होने वाला है। कमेटी उन प्रत्याशियों से मिलेगी जो लाखों वोटों से हारे हैं और वे बड़े नेता उसे बताएंगे जो प्रदेश कांग्रेस की पालिटिकल अफेयर्स कमेटी के मेम्बर हैं।
हार की वास्तविक परिस्थितियों से दूर रखने की कोशिश
यह कहा जा रहा है कि फैक्ट फाइडिंग कमेटी को उन वास्तविक परिस्थितियों से दूर रखने का प्रयास किया जा रहा है जिनसे पार्टी को न केवल हार मिली बल्कि कमेटी के सामने हार के पीछे कारण बने नेताओं के चेहरे सामने आने से बचाने की कोशिश भी है। पहला मामला इंदौर का है जो कमेटी के सामने नहीं आने देने की कोशिश की जा रही है जिसमें इंदौर के अधिकृत प्रत्याशी के नाम वापसी के अंतिम क्षणों में नामांकन पर्चा वापस लिया। इस अधिकृत प्रत्याशी के भाजपा में चले जाने के कारणों को जानने से रोकने कमेटी को इंदौर के जिम्मेदार नेताओं से नहीं देने की कोशिश है जो उसे सही स्थिति बता सकते हैं कि अधिकृत प्रत्याशी अक्षय बम को विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट देने की किन नेताओं ने पैरवी की थी। दूसरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी की अपनी कार्यकारिणी नहीं होने से पार्टी के सक्रिय नेताओं को जिम्मेदारियों का बंटवारा नहीं किया गया। जिलों में प्रभारियों से जमीनी रिपोर्ट जानने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। चुनाव के दौरान ही प्रभारियों को बदले जाने से चुनाव पर विपरीत असर पड़ा।
चरमर्राए संगठनात्मक ढांचे से चुनाव
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में जबरदस्त हार के बाद राज्य में सरकार बनने के सपने टूटने के बाद हाईकमान ने कमलनाथ को न केवल प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया बल्कि विधानसभा चुनाव में हारे हुए प्रत्याशी जीतू पटवारी को कमान सौंप दी। पटवारी हार की वजह से खुद टूटे हुए थे और प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व सौंपे जाने के बाद पूरे दमखम के साथ जिम्मेदारी संभालने पाने वाले जोश नहीं दिखा पाए। कमलनाथ के कार्यकाल में नेताओं को अनापशनाप पद बांटे जाने से डगमगाए संगठन को नया रूप देने के बजाय वे फूंक फूंक कर कदम रखते रहे और आज सात महीने बाद कमलनाथ के कार्यकाल के चरमर्राए संगठनात्मक ढांचे के सहारे काम चला रहे हैं। सदस्यता अभियान में भी कागजी खानापूर्ति की वजह से जमीनी वास्तविक बहुत अलग होने से पार्टी को चुनाव में नुकसान उठाना पड़ा। लोकसभा चुनाव में भी चंद पदाधिकारियों के भरोसे पार्टी ने चुनाव लड़ा और नतीजा 2019 में जीती एकमात्र छिंदवाड़ा सीट भी पार्टी के कब्जे से चली गई। वोट प्रतिशत में भी भाजपा ने कांग्रेस को बहुत पीछे कर दिया।
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