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धर्म विमुख शिक्षा बन रही है अभिशाप: राजेंद्रदास जी

धर्म विमुख शिक्षा बन रही है अभिशाप: राजेंद्रदास जी

पाश्चात्य सभ्यता और धर्म विमुख शिक्षा से आज का इंसान भ्रष्ट होता जा रहा है। दाम्पत्य जीवन बड़ी विचित्र परिस्थितियों से गुजर रहा है। धर्म विमुख शिक्षा अभिशाप बन गई है।यह बात धर्म गुरु व मलुकपीठाधीश्वर राजेंद्रदास ने कही। आप इंदौर पंचकुइया स्थित राम मंदिर में तीन दिवसीय वाल्मीकि रामायण कथा के अंतिम दिन आज रविवार को धर्म सभा मे उपस्थित श्रोताओ को सम्बोधित कर रहे थे।
आपने कहा कि आज समाज की बिगड़ती दशा के जिम्मेदार हम ही है। आज की पीढ़ी को तिथियों का ज्ञान नही, जन्मदिन, शादी की सालगिरह जरूर याद है। पहले शादी में कन्या की योग्यता गृह कार्य मे दक्ष होना मापदंड था लेकिन अब लड़की की माँ भी बड़े गर्व से लड़की की योग्यता के बारे में कहती मिल जाती है कि हमारी बेटी को तो चाय भी बनाना नही आता। पहले घरो में भोजन बनाने वाले रसोइया या महाराज हुआ करते थे जो संध्या गायत्री का नियम पालते थे, अब हलवाई काम करते है वह किसी भी जाति का हो सकता है। अपने आप को धर्मनिष्ठ ओर धर्मात्मा कहलाने वाले भी होटलो, ट्रेन में तथा उच्च कुल वाले प्लेन में मांस व मदिरा का सेवन करते पाए जाते है। सारा धर्म भ्रष्ट किया जा रहा है।
बच्चो को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ाना बंद होना चाहिए । संस्कार विहीन शिक्षा से घर नर्क बनते जा रहे है।
राजेन्द्र दास जी कहा कि महाभारत रामायण, भागवत सुनने से क्या मतलब जब तक हम बच्चों को संस्कारित नही करेंगे तो सब बेकार है। वर्तमान के हालातों को देखते हुए आज यह बहुत जरूरी हो गया है कि
हर पुरुष राम का आदर्श ओर हर महिला को सीता का आदर्श चरित्रअपनाना होगा। नही तो हमारी स्थिति बद से बदतर हो जाएगी। लडकिया लक्ष्मि होती है और हम नोकरी करवाकर उन्हें नोकरानी बना रहे है।
कथा के समापन पर राम मंदिर के महामंडलेश्वर लछमन महाराजजी ने राजेन्द्र गुरुजी का शाल श्री फल से सम्मान किया।
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ब्राह्मणत्व ओर छत्रियत्व समाप्त हुआ
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यह बड़ी दुखी मन से कहना पड़ रहा है कि आज हमारे समाज से ब्राह्मणत्व ओर छत्रियत्व समाप्त हो गया । ब्राह्मण और छत्रिय मद्यपान ओर मांसाहार का सेवन करते है। ऐसा करके अपने को छत्रिय मानने में गर्व महसूस करते
समय यह भूल जाते है है कि हमारे वंशज महाराणा प्रताप भी यह सब करते लेकिन उन्होंने अपना धर्म निभाते हुए जंगल मे घास फुस की रोटियां खाई है। छत्रसाल ने घोड़े को दिए जाने वाले दाने खाये। जिस दिन सही मायने में छत्रिय अपना धर्म निभाने लगेंगे तो अबलाओं के साथ बलात्कार नही होंगे व गो हत्या भी बंद हो जाएगी।
कथा के विराम पर महाआरती कर राजेंद्र गुरुजी का महामंडलेश्वर लछमन महाराज ने शाल श्रीफल से सम्मान किया।

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