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राष्ट्रपति श्री कोविन्द का ‘रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी’ के समारोह में सम्बोधन

राष्ट्रपति श्री कोविन्द का ‘रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी’ के समारोह में सम्बोधन

स्व-रोजगार और उद्यम से जुड़ी इस परिषद में बैठे हुए नौजवानों के प्रति अपनी भावना को मैं मराठी भाषा में व्यक्त करने का प्रयास करूंगा: ह्या युवा उद्योजक परिषदेत उपस्थित प्रत्येक तरुणास माझा आशिर्वाद आहे। ‘प्रबोधिनी’ में मेरा पहली बार आना नहीं हो रहा है। यहां आने के लिए मुझमें हमेशा एक आकर्षण रहा है।

यहां के work culture, अनुशासन, कर्तव्य-परायणता और निष्ठा से सभी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। यहां आकर सबको प्रेरणा मिलती है। राष्ट्रपति के रूप में पहली बार यहां आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है।ठाणे जिला का यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही व्यापार के लिए प्रसिद्ध रहा है। सभी जानते हैं कि भगवान बुद्ध के जीवन काल में सोपारा बन्दरगाह, जिसे ‘सुप्पारक पत्तन’ कहते थे, एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था। आधुनिक युग में, आज से लगभग 165 साल पहले, भारत में पहली रेलगाड़ी मुंबई के बोरी-बंदर से ठाणे तक चलाई गयी थी।मुझे बताया गया है कि इस परिषद में ठाणे, पालघर, मुंबई और आस-पास के क्षेत्र से नौजवान आए हैं। मैं आप सबसे यह कहना चाहूंगा कि आप जहां रहते हैं वह इलाका अवसरों का क्षेत्र है, उद्यम का क्षेत्र है। यहां देश के कोने-कोने से लोग रोज़गार की तलाश में आते हैं। भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई और उसके आस-पास के इस क्षेत्र में ठेले पर वड़ा-पाव बेचने वाले सबसे मामूली स्व-रोज़गारी से लेकर देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों तक, सभी अपने-अपने स्तर पर सक्रिय हैं। यहां सतह से उठकर व्यापारिक सफलता के शिखर तक पहुंचने वाले लोगों के बहुत से उदाहरण हैं। विकास की इस कहानी में, समाज और अर्थ-व्यवस्था के हाशिये पर मौजूद नौजवान, अपनी अहम भूमिका निभाने में सक्षम हैं। मैं यहां बैठे आप सभी युवाओं से अपील करता हूं कि आप सब इस क्षेत्र में मौजूद अनगिनत अवसरों का लाभ उठाइये और आने वाले दौर को अपनी सफलता का दौर बनाइये। आपकी सफलता की कहानी ही पूरे देश के नौजवानों के लिए मिसाल बनेगी। यहां इस ‘युवा उद्यमी परिषद’ का आयोजन करने के लिए, मैं आपकी संस्था की सराहना करता हूं।       रामभाऊ म्हालगी जी की सोच के अनुसार, इस संस्था द्वारा, चुने हुए जन-प्रतिनिधियों, स्वैच्छिक संगठनों के कार्य-कर्ताओं और विभिन्न संस्थानों को चलाने वाले लोगों को प्रशिक्षण दिया जाता है। मुझे यह भी बताया गया है कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर लोगों को जागरूक बनाने के लिए, आप सब अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। आज का आयोजन भी राष्ट्रीय महत्व के एक विषय पर है। उद्यमशीलता के जरिये आर्थिक लोकतन्त्र को मजबूत बनाना हमारे देश और समाज के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। देश में लोकतन्त्र के राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक आयामों को मजबूत बनाने की दिशा में लगभग 35 वर्षों से निरंतर योगदान देने के लिए मैं ‘प्रबोधिनी’ की पूरी टीम प्रशंसा की पात्र है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा उद्यमिता के विकास के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन योजनाओं के माध्यम से, महाराष्ट्र के युवा, सफल उद्यमी बनने में, सक्षम हो सकेंगे। मैं, इस क्षेत्र समेत पूरे महाराष्ट्र में, उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए, महाराष्ट्र सरकार के प्रयासों की सराहना करता हूं।राजनैतिक लोकतन्त्र के बुनियादी अधिकार, यानी मताधिकार, का प्रयोग करने के लिए भी लोगों को शिक्षित करना पड़ता है, प्रेरित करना पड़ता है। आर्थिक और सामाजिक अधिकारों, नीतियों और अवसरों का उपयोग करने के लिए लोगों को जागरूक बनाना और प्रेरित करना और भी अधिक चुनौती भरा काम है। ख़ास कर पीड़ित-शोषित-वंचित वर्गों को, उनके विकास के लिए खुले हुए रास्तों के बारे में बताना, और उन रास्तों पर चलने के लिए उन्हे प्रेरित करना, देश के हित में ज़रूरी है।  जैसा कि हम जानते हैं, हमारे संविधान का उद्देश्य एक ऐसे लोकतंत्र का निर्माण करना है जिसमें सभी नागरिकों को सामाजिकआर्थिकऔर राजनैतिक न्याय प्राप्त हो। बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था कि संविधान लागू होने के बाद, हम राजनीति में तो ‘एक व्यक्ति और एक वोट’ के सिद्धांत पर चलने लगेंगे, लेकिन साथ ही सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में भी समानता लानी होगी, नहीं तो राजनैतिक लोकतंत्र पर गंभीर संकट बना रहेगा। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के अभाव में राजनैतिक लोकतंत्र मजबूत नहीं रह सकता। वंचित और शोषित आबादी के आर्थिक स्तर को सुधारना, देश के आर्थिक लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए बहुत ज़रूरी है।हम सभी जानते हैं कि बाबासाहब आंबेडकर मूलतः एक असाधारण अर्थशास्त्री थे। उन्ही के आर्थिक विचारों के आधार पर ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की स्थापना की गई थी। ‘वित्त आयोग’ की स्थापना भी उन्हीं के विचारों पर आधारित थी। वे अपना रोजगार करने के समर्थक थे। उन्होने स्टॉक और शेयर्स के व्यापारियों को सलाह देने के लिए एक फ़र्म खोली थी। उन्होने 1942 में तत्कालीन वायसराय को ज्ञापन देकर CPWD टेंडरों में वंचितों के लिए हिस्सेदारी की मांग की थी। इस प्रकार वे आधुनिक भारत में आर्थिक लोकतन्त्र के जनक कहे जा सकते हैं।  देशमें सबका साथसबका विकास’ और ‘सबका सम्मानसबका उत्थान के विचारों पर आधारित अनेक कार्यक्रम लागू किए गए हैं। ये सभी कार्यक्रम आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में अलग-अलग अभियान हैं। इन कार्यक्रमों के पीछे यही सोच है कि सही मायने में अगर किसी की सहायता करनी है, तो उसे आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाना चाहिए।आर्थिक लोकतन्त्र की दिशा में सबसे बुनियादी काम, जन-धन-योजना के रूप में हुआ है क्योंकि बैंक में खाता होना आर्थिक लोकतन्त्र में भागीदारी की पहली सीढ़ी है। जन-धन योजना के तहत, तीस करोड़ से अधिक लोगों ने अपने खाते खोले हैं। इनमे, 52% खाते महिलाओं के हैं। इस योजना ने समावेशी बैंकिंग को एक नया आयाम दिया जिसमें हर इलाके में बैंक की शाखा होना पर्याप्त नहीं माना गया, बल्कि हर व्यक्ति का खाता खुले यह व्यवस्था की गयी। अगले चरण में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को प्रभावी रूप दिया गया और जन-धन-योजना खातों में पैसा जमा होने लगा।एक प्रचलित कहावत है कि आप एक गरीब आदमी को मछली देंगे तो उसकी एक दिन की भूख मिटेगी। लेकिन यदि आप उसे मछली पकड़ना सिखा देंगे, तो वह जीवन-पर्यंत अपना पेट भर सकेगा। युवाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में मुद्रायोजनास्टार्टअप इंडियास्टैंडअप इंडिया और अनुसूचित जाति के उद्यमियों के लिए वेंचर कैपिटल फंड जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।वंचित वर्गों के नौजवानों को इन कार्यक्रमों का लाभ लेना चाहिए और स्व-रोज़गार तथा उद्यम की राह पकड़नी चाहिए। इन नौजवानों में प्रतिभा और महत्वाकांक्षा तो है, लेकिन प्रायः व्यवसाय के अनुभव का अभाव रहता है, क्योंकि उनके परिवारों में किसी ने पहले कभी कोई उद्यम नहीं चलाया है। ऐसे नौजवानों के उद्यमों को सहायता देने के लिए ‘प्रबोधिनी’ और ‘डिक्की’ जैसे संस्थान, कुछ बड़े औद्योगिक समुदाय तथा सरकार आगे आए हैं। केंद्र सरकार और सार्वजनिक उद्यमों की कुल खरीद का 4% अनुसूचित जाति और जनजाति के उद्यमियों से लिया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। TATA Group जैसे निजी क्षेत्र के उद्यम भी अनुसूचित जाति और जनजाति के उद्यमियों को अपने supply chain में विशेष अवसर प्रदान कर रहे हैं।उद्यमशीलता की संस्कृति को बढ़ावा देने का काम केवल सरकार का ही नहीं है। परिवारों, शिक्षण संस्थानों, निजी क्षेत्र के बैंकों और उद्यमियों, गैर-सरकारी संस्थाओं, voluntary organisations, मीडिया आदि सभी को मिल कर एक ऐसा माहौल बनाना है जहां निजी कारोबार को अधिक सम्मान से देखा जाए, शुरूआती विफलता के दौर में हौसला बढ़ाया जाए, तथा हर प्रकार से, निजी कारोबार के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा की जाएं। सबको मिलकर एक ऐसी संस्कृति बनानी है जिसमें स्व-रोज़गार का चुनाव, नौकरी न मिलने की मजबूरी के कारण नहीं, बल्कि नौकरी के अवसरों को छोड़ कर किया जाए। ‘जॉब-सीकर’ की जगह ‘जॉब-गिवर’ बनने की सोच को किशोरावस्था से ही प्रोत्साहित करना होगा।बिना किसी विशेष सहायता के, और तमाम चुनौतियों के बावजूद सफलता प्राप्त करने वाले, वंचित और शोषित वर्ग से निकले सफल उद्यमी एक बड़ी संख्या में आगे आ रहे हैं। Bombay High Refinery के लिए प्लेटफार्म बनाने से लेकर अस्पताल चलाने तक, होटल के व्यवसाय से लेकर फिलामेंट यार्न बनाने तक वे अर्थ-व्यवस्था के हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। इनमें महिला उद्यमी भी शामिल हैं। वे national exchequer को महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। ‘डिक्की’ ने इन उद्यमियों को एक प्लैटफ़ार्म दिया है। उनकी कामयाबी की कहानियों पर आधारित किताबें विश्व के नामी प्रकाशक छाप रहे हैं। कुछ ऐसे उद्यमियों को ‘पद्मश्री’ से भी सम्मानित किया गया है। ये सभी नौजवानों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।मुझे विश्वास है कि देश के युवा, इनसे प्रेरणा लेते हुए, सरकारी कार्यक्रमों और गैर-सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाते हुए, अधिक से अधिक तादाद में, निजी कारोबार करने के लिए उत्साहित होंगे। मैं समझता हूं कि इस ‘युवा उद्यमी परिषद’ में आज उपस्थित कई नौजवान सफलता के नए प्रतिमान कायम करेंगे। मेरी यह शुभकामना है कि आप सभी अपने उद्यमों के जरिये देश के आर्थिक लोकतन्त्र को अधिक मजबूत बनाएंगे।

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