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कांग्रेस में कुछ नेता भाजपा के साथ अपने नेताओं के निशाने पर भी, जाने कौन हैं ये

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद भी नेताओं के बीच समन्वय तो दूर की बात है उनमें आपसी खींचतान ऐसी मची है कि कुछ नेता भाजपा के साथ-साथ अपने ही नेताओं के निशाने पर हैं। इन नेताओं को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में जहां जगह नहीं मिल पा रही है तो वहीं उनके विवादास्पद मामलों को पीछे से हवा देकर भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से मदद की जा रही है। आईए आपको बताते हैं कि ये कौन से नेता हैं जो भाजपा के साथ अपनों के टारगेट पर भी हैं।
कांग्रेस दिग्विजय सरकार के जाने के बाद करीब सवा साल को छोड़ दें तो 20 साल से सत्ता से बाहर है मगर इसके बाद भी पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया है। पार्टी सरकार में वापसी के लिए सत्ताधारी दल भाजपा की रीति-नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर उससे लड़ने के बजाय नेताओं की आपसी खींचतान में उलझी नजर आती रहती है और एकबार फिर वही स्थिति मौजूदा समय में दिखाई दे रही है। प्रदेश में न केवल भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा मुद्दा भाजपा को घेरने के लिए कांग्रेस की बाट जोह रहा है बल्कि उसे वहां प्रदेश संगठन के नेतृत्व परिवर्तन के काल में लाभ उठाने का मौका है मगर कांग्रेस के युवा नेतृत्व से लेकर दिग्गज नेताओं तक में परस्पर विरोधियों की टांग घसीटी का दौर जारी है।
पीसीसी में केंद्रीयकृत व्यवस्था की कोशिशें
प्रदेश कांग्रेस में युवा नेतृत्व जीतू पटवारी का संगठन चंद नेताओं के हाथ में नजर आता है। कार्यकारिणी गठन व फिर प्रभारियों-सह प्रभारियों की घोषणा के बाद भी कामकाज को केंद्रीयकृत करने में पटवारी के करीबी लगे हैं तो बनाए गए दो संगठन प्रभारियों प्रियव्रत सिंह-संजय कामले में से प्रियव्रत को अब पीसीसी में बैठने के लिए कक्ष नहीं आवंटित हो सका है। प्रभारियों को जिम्मेदारियां देने के बाद उनके प्रभार के दिन-प्रतिदिन के कामों में संगठन अपनी कमांड रखने की कोशिश करने में जुटा है तो जो इससे असहमत होकर ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं तो उनके समकक्ष नेताओं की टीम खड़ी करने के प्रयास तेज हो गए हैं। पीसीसी में वरिष्ठ नेताओं के समर्थकों को धीरे-धीरे संगठन से बाहर करने की कोशिशें जारी हैं जिसमें किसान कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति को दूसरी कड़ी माना जा रहा है। पहली कड़ी में युवक कांग्रेस से हटाए गए विधायक विक्रांत भूरिया रहे थे जिन्हें वरिष्ठ नेता राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह के करीबी माना जाता था और उन्होंने भूरिया को दिल्ली में एआईसीसी में सेट कराते हुए आदिवासी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाने में प्रमुख भूमिका निभाई बताई जाती है। अब किसान कांग्रेस में कमलनाथ समर्थक विधायक दिनेश गुर्जर को हटाकर पटवारी ने दिग्गजों को कमजोर करने का एक और कदम बढ़ाया है। इसी क्रम में महिला कांग्रेस अब निशाने पर है जहां दिग्विजय समर्थक पूर्व महापौर विभा पटेल बैठी हैं।
विधायक दल को बांटने प्रयास
कांग्रेस विधायक दल को पार्टी के नेता ही बांटने में लगे हैं तो वहीं विपक्षी दल अपने स्तर पर विपक्षी नेताओं को दबाव में लेने के हथकंडे अपनाने में जुटे हैं। कांग्रेस विधायक दल में दो धड़े में बटता दिखाई दे रहा है जिसमें एक धड़ा पीसीसी संगठन वाला है तो दूसरा नेता प्रतिपक्ष के साथ दिखता है। भाजपा अपनी सरकार के खिलाफ विधानसभा में प्रतिपक्ष की आवाज को कमजोर करने के लिए नेता प्रतिपक्ष-उपनेता प्रतिपक्ष पर दबाव बनाने में लगे हैं। पहले उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे और उनके परिवार के खिलाफ ईओडब्ल्यू में प्रकरण दर्ज कराया गया तो अब नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार के खिलाफ चार पुराने उनके निजी आवास पर लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली युवती की आत्महत्या के मामले को प्रतिमा मुदगल ने अदालत में याचिका के माध्यम से उठा दिया है। यह वही प्रतिमा मुदगल हैं जिनका नाम सिंगार ने विधानसभा चुनाव के शपथ पत्र पत्नी के कॉलम में लिखा था। नेता प्रतिपक्ष हो या उपनेता प्रतिपक्ष दोनों ही मामलों में कांग्रेस नेता भाजपा ही नहीं अपनी पार्टी के कुछ नेताओं के निशाने पर हैं। उमंग सिंगार के खिलाफ अदालत पहुंची प्रतिमा मुदगल के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह व उनकी पत्नी अमृता सिंह के साथ फोटो वायरल हो चुके हैं तो हेमंत कटारे को कांग्रेस के ही ग्वालियर-चंबल के कुछ नेताओं की वजह से संकट से गुजरना पड़ रहा है। हालांकि उमंग हो या हेमंत दोनों ने सार्वजनिक रूप से बयान देकर यह जताने की कोशिश की है कि वे डरने वालों में से नहीं है लेकिन विधानसभा के बजट सत्र में पार्टी की आवाज कमजोर होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
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