18वीं लोकसभा में नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे लेकिन कैबिनेट में घटक दलों की मांग के कारण भाजपा के निर्वाचित सांसदों को मौका मिलने के चांस कम हो सकते हैं। वहीं, प्रदेश में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा मतों से जीत दर्ज करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को संगठन की चाबी मिलने की संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। पढ़िये रिपोर्ट।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को देश में क्लीनस्वीप करके सीट दिलाने वाले राज्यों में मध्य प्रदेश बड़ा राज्य है और यहां कांग्रेस को चालीस साल के बाद एक भी सीट नहीं मिली है। अविभाजित मध्य प्रदेश में भाजपा ने एकबार 40 सीटें हासिल की थीं तो इस बार सभी 29 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की है। भाजपा को जबरदस्त सीटें दिलाने वाले मध्य प्रदेश को इसके बाद भी एनडीए की नई सरकार में पहले की तुलना में कम स्थान मिलने के आसार बन रहे हैं। 17वीं लोकसभा में मोदी सरकार में मध्य प्रदेश से नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, ज्योतिरादित्य सिंधिया, फग्गन सिंह कुलस्ते, वीरेंद्र कुमार हुआ करते थे लेकिन इस बार तोमर, पटेल प्रदेश की राजनीति में वापस हो गए हैं तो सिंधिया, कुलस्ते, वीरेंद्र कुमार के अलावा शिवराज सिंह, वीडी शर्मा और शंकर लालवानी जैसे नवनिर्वाचित सांसदों की मजबूत दावेदारी है। मगर भाजपा के बहुमत के आंकड़े के लिए घटकदलों पर आश्रित होने की वजह से मध्य प्रदेश को कैबिनेट में मौके कम मिलने की संभावना है। राजनीतिक प्रभाव की वजह से सिंधिया, जातीय समीकरण में कुलस्ते-वीरेंद्र कुमार, लालवानी के फिट बैठने के आसार हैं लेकिन वीडी शर्मा-शिवराज के लिए जगह मुश्किल मानी जा रही है।
शिवराज को संगठन की चाबी देकर संतुलन बनाने के आसार
लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के आरएसएस को लेकर दिए गए बयान ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं जिसमें उन्होंने आरएसएस की भाजपा को अब जरूरत नहीं होने की बात कही गई थी। चुनाव परिणामों के बाद भाजपा को बहुमत के लायक सीटें नहीं मिल पाने के बाद नड्डा पर गाज गिरने के आसार लगाए जा रहे हैं और प्रदेश में दूसरी सबसे बड़े अंतर की जीत दर्ज करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को संगठन की चाबी मिलने के कयास लगाए जाने का सिलसिला शुरू हो गया है। 18वीं लोकसभा में कैबिनेट को लेकर भाजपा पर एनडीए के घटकदलों के दबाव के मद्देनजर इन कयासों को बल मिलता दिखाई दे रहा है जिससे शिवराज को बड़ी जीत का सम्मान देकर एडजस्ट किया जा सके।
मैदान खुला होने से बड़ी जीत
इधर, खजुराहो और इंदौर में भाजपा को चुनाव में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस या इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी नहीं होने से खुला मैदान मिला था मगर इसके बाद भी खजुराहो में वीडी शर्मा की जीत पांच लाख 41229 ही रही। इंडिया गठबंधन के समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी मीरा यादव का नामांकन पर्चा निरस्त होने के बाद माना जा रहा था कि शर्मा को बड़े मतों के अंतर से जीत मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इंडिया गठबंधन द्वारा ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के आरएल प्रजापति को समर्थन देने के बाद भी बीएसपी के कमलेश कुमार उनसे ज्यादा दो लाख 31545 मत हासिल हुए तो प्रजापति केवल 50215 वोट ही ले जा सके। इससे वीडी शर्मा की बड़े अंतर से जीत की संभावना गलत साबित हुई। इसी तरह इंदौर में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी अक्षम बम को भाजपा ने अपने पक्ष में लेकर उनसे नामांकन पर्चा वापस दिला दिए जाने के बाद भी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी शंकर लालवानी नोटा की वजह से दो लाख 18674 वोटों के अंतर को अपने पक्ष में नहीं कर पाए। हालांकि उनकी जीत प्रदेश में सबसे अंतर वाली रही और वे दस लाख 8077 वोट से जीत दर्ज करने में सफल रहे। पांच और दस लाख वोटों की जीत के बाद भी उनकी जीत वैसी जीत जैसी नहीं मानी जा रही है और ऐसे में यह संभावना जताई जा रही है कि सिंधी समाज के प्रतिनिधि होने के बाद भी न लालवानी को कैबिनेट में जगह मिल पाएगी और न ही प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने वाले वीडी शर्मा को कैबिनेट में स्थान नहीं मिलने की उम्मीद बताई जा रही है।
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