Buddhist Architecture में डर और साहस का दर्शनः Sanchi University में Scholars के शोधपत्रों के विचार

सांची में इंडियन सोसायटी फॉर बुद्धिस्ट स्टडीज के रजत जयंती समारोह में शोधार्थियों ने अपने शोधपत्रों में सांची स्तूप से लेकर बौद्ध स्थापत्य कला को लेकर अपने विचार रखे। इनमें बौद्ध स्थापत्य कला को लेकर कहा गया कि इसमें डर और साहस दोनों के दर्शन हैं। पढ़िये रिपोर्ट।

साँची में बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में आयोजित इंडियन सोसायटी फॉर बुद्धिस्ट स्टडीज़ के रजत जयंती समारोह का आज दूसरा दिन था। इसमें दूसरे दिन बौद्ध धर्म, पालि भाषा, युद्धकाल में बौद्ध धर्म की व्यावहार्यता और अप्लाइड बुद्धिज्म पर चर्चा हुई। सामान्य सत्र में मुख्य वक्ता प्रो. अरविंद जामखेड़कर रहे। उन्होने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की बौद्ध स्थापत्य कला पर विचार रखें। उन्होने साँची स्तूप के कई अनछुए पहलुओं को भी सामने रखा।
तीन समानांतर सत्रों में 50 शोधपत्र पढ़े गये। प्रो. सुष्मिता पाण्डे की अध्यक्षता में हुए सत्र में शोधार्थी ने मध्य प्रदेश की पुरातात्विक महत्व की साइट तुमेन पर अपने विचार रखे। भरहुत तथा साँची स्तूप के मानव मूल्यों को भी आंका गया। बौद्ध स्थापत्य कला में डर और साहस के दर्शन को जांचा गया। इसी तरह भारत और थाइलैंड के रिश्तों को भी बौद्ध सर्किट के साथ मापा गया।
प्रो. बंदना मुखर्जी की अध्यक्षता में दूसरे सत्र में धम्म पद पर, धम्म उपदेश में चित्त की शुद्धि के वर्णन, बंगाल में बौद्ध दर्शन का पुनर्रुत्थान, श्रीलंका में बुद्ध धम्म की विचार कथा, थेरगाथा में स्त्री का चित्रण, जातक कथाओं का हिंदी साहित्य पर प्रभाव जैसे विषयों पर चर्चा की गई। इस सत्र में भी 10 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। अंधश्रद्धा को छोड़ वेदना निवारण के लिए चित्त शुद्धि पर जोर दिया गया।
तीसरे समानांतर सत्र में अध्यक्षता की प्रो. केदार नाथ शर्मा ने। इस सत्र में बौद्ध दर्शन के व्यवहारिक पहलू पर विशेष चर्चा की गई। सत्र में अध्ययन किया गया कि किसी भी व्यक्ति के आम जीवन में किस प्रकार बौद्ध दर्शन उपयोगी होता है। वर्तमान दौर में कैसे बौद्ध दर्शन हल बन सकता है। बौद्ध दर्शन की कल्याणकारी अर्थव्यवस्था के बारे में चर्चा की गई। विश्व और चीन के संदर्भ में बौद्ध दर्शन के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया। वर्तमान काल में बौद्ध नीति शिक्षा, बौद्ध दर्शन में शांति की स्थापना, करुणा एवं कर्म इत्यादि विषयों पर 10 शोधपत्र पढ़े गए। आमंत्रित समस्त शिक्षक, विद्वान व, शोधार्थियों ने बोधि वृक्ष के दर्शन किए। इसके उपरांत उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर का भ्रमण भी किया। जिसके बाद सभी आमंत्रित सांची स्तूप भी पहुंचे। आईएसबीएस के रजत जयंती समारोह में तीसरे और अंतिम दिवस दो विशेष सत्र आयोजित किए गए हैं जिसमें प्रो. अरविंद जामखेड़कर, प्रो. सिद्धार्थ सिंह और सांची विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ चर्चा करेंगे। दोपहर में समापन सत्र में श्रीलंका महाबोधि सोसायटी के वेनेगल उपतिस्स नायक थैरो शामिल होंगे।

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