महाशिवपुराण कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा सीहोर वाले ने शनिवार को श्री राधारानी मंदिर बरसाना पहुंचकर माफी मांगी। भारी सुरक्षा इंतजामों के बीच पंडित प्रदीप मिश्रा ने माथा टेककर माफी मांगते हुए राधारानी को अपना ईष्ट बताया। पढ़िये रिपोर्ट।
राधारानी को लेकर विवादित टिप्पणी से नाराज ब्रज के साधु संतों की 24 जून को महापंचायत में पंडित प्रदीप मिश्रा की 84 कोस में एंट्री करने पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी के बाद शनिवार को मिश्रा बरसाना पहुंचे। उनके वहां पहुंचने पर भारी पुलिस व्यवस्था की गई। उनके बरसाना पहुंचने की खबर मिलने के बाद शनिवार को बड़ी संख्या में लोग जमा हो गए थे जिससे कानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस बल तैनात रहा।
मंदिर में माथा टेककर दंडवत हुए मिश्रा
शनिवार को पंडित प्रदीप मिश्रा बरसाना पहुंचे तो उनके आने की खबर से ही श्रीराधारानी मंदिर पर भीड़ जमा हो गई। मिश्रा पुलिस के सुरक्षा घेरे में वहां पहुंचे तो पीला अंगवस्त्र धारण किए थे। लोगों ने पंडित मिश्रा की टिप्पणी पर नाराजगी जाहिर करते हुए हंगामा शुरू कर दिया। मंदिर में पंडित प्रदीप मिश्रा ने माता राधारानी को नतमस्तक होकर प्रणाम किया तो लोगों की भीड़ में से कुछ लोगों ने उनके वस्त्रों को खींचने की कोशिश की। कुछ लोगों ने शोर करते हुए उनसे माता राधारानी से उनके द्वार पर नाक रखकर माफी मांगने को भी कहा। इस दौरान प्रदीप मिश्रा मुसकुराते हुए लोगों का अभिवादन करते रहे और उनके चेहरे पर विरोध के बावजूद नाराजगी के भाव दिखाई नहीं दिए।
किस टिप्पणी पर मिश्रा को मांगना पड़ी माफी
महाशिवपुराण कथावाचक प्रदीप मिश्रा को राधारानी को लेकर की गई एक टिप्पणी के कारण पिछले कई दिनों से देशभर में विरोध का सामना करना पड़ा रहाहै जो कई साल पुरानी कथा का बताया जाता है। कथा के कुछ हिस्से के वीडियो वायरल होने से यह विवाद जन्मा जिसमें मिश्रा श्री राधारानी का विवाह श्री कृष्ण के साथ न होकर मथुरा के कस्बा छाता निवासी अनय घोष के साथ होना बताते सुनाई दे रहे थे। इसमें पंडित मिश्रा कहते हुए सुनाई दिए कि बरसाना राधारानी का पैतृक गांव नहीं है बल्कि यहां उनके पिताजी की कचहरी लगा करती थी। राधारानी अपने पिता के साथ वर्ष में एक बार आया करती थीं। उनके इस वायरल वीडियो के बाद ब्रज के साधु-संत आक्रोशित हो गए और 24 जून को ब्रज के साधु संतों ने महापंचायत कर उनके विरोध का फैसला किया। महापंचायत में साधु संतों ने पंडित मिश्रा के ब्रज के आसपास 84 कोस तक प्रवेश नहीं होने देने का फैसला किया और उनकी कथा के विरोध का ऐलान किया।
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