मध्य प्रदेश कांग्रेस में राज्यसभा में पहुंचाने के रास्ते खोलने की पुरानी परंपरा, पढ़िये क्या है अनोखी परंपरा

मध्य प्रदेश में राज्यसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों ने नामांकन पर्चे दाखिल कर दिए हैं। कांग्रेस ने पीसीसी के कोषाध्यक्ष अशोक सिंह को प्रत्याशी बनाकर पुरानी परंपरा का निर्वहन किया है। अशोक सिंह को राज्यसभा में भेजकर कांग्रेस ने जिस परंपरा को निर्वहन किया, उसे जानने के लिए हमारे साथ बने रहिये और पढ़िये यह रिपोर्ट।

मध्य प्रदेश में राज्यसभा की 11 सीटों में से पांच सीटें दो अप्रैल 2024 को रिक्त हो रही हैं जिनके लिए 27 फरवरी को मतदान होना है। आज नामांकन के अंतिम दिन भाजपा के चार प्रत्याशियों डॉ. एल मुरुगन, माया नारोलिया, योगी उमेशनाथ वाल्मिकी और बंसीलाल गुर्जर व कांग्रेस के अशोक सिंह ने नामांकन पर्चा दाखिल किया। भाजपा ने जहां दक्षिण भारत के अपने जनाधार को मजबूत देने के लिए केंद्रीय मंत्री मुरुगन को दूसरी बार यहां से टिकट दिया है तो वहीं, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के गृह नगर उज्जैन से अति पिछड़े वाल्मिकी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले योगी उमेशनाथ, महिला भाजपा नेता माया नारोलिया और तीन बार से राज्यसभा जाने वालों की सूची में शामिल होने के बाद भी ऐनमौके पर टिकट से वंचित हो रहे पार्टी नेता बंसीलाल गुर्जर को राज्यसभा पहुंचाने के लिए टिकट दिए हैं।
कांग्रेस ने राज्यसभा के लिए टिकट की परंपरा निभाई
वहीं, कांग्रेस ने राज्यसभा भेजे जाने के लिए अपनी कुछ दशकों की परंपरा को निभाया है। पिछले तीन-चार दशक से पार्टी ऐसे नेताओं को राज्यसभा भेज रही है जो चुनावी राजनीति में फिट नहीं बैठते हैं या फिर जिनका जनाधार संकट में हो। इस सूची में सबसे ऊपर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी का नाम है तो उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, विवेक तनखा, राजमणि पटेल, सत्यव्रत चतुर्वेदी के आगे अशोक सिंह का नाम भी जुड़ गया है। सूची में शामिल नेताओं में से पचौरी राज्यसभा सदस्य रहने के बाद लोकसभा, विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन कभी जीत नहीं सके तो तनखा भी चुनाव हारने के बाद दो बार से राज्यसभा चुनाव से उच्च सदन में पहुंच रहे हैं। दिग्विजय सिंह भी इस सूची में हैं क्योंकि वे दस साल मुख्यमंत्री रहने के बाद तीसरी बार में जबरदस्त हार का सामना कर चुके हैं। उनके बारे अब यह कहा जाने लगा है कि जनता में आज भी विरोध है और दूसरी बार राज्यसभा चुनाव में जीतकर राज्यसभा पहुंचे हैं। अशोक सिंह भी लोकसभा व विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमा चुके हैं लेकिन उन्हें जीत नहीं मिल सकी है।

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