लोकायुक्त ने मकवाना की सीआर बिगाड़ने के जिन तथ्यों को आधार बताया जानिये वे क्या हैं

मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली एजेंसी लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना के प्रमुख रहे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी व पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन के चेयरमैन कैलाश मकवाना की ईमानदारी को लोकायुक्त जस्टिस नरेश कुमार गुप्ता ने सीआर में जिन तथ्यों के माध्यम से संदेह के दायरे में लाकर खड़ा किया, हम आपको बताने जा रहे हैं, वे क्या हैं। गोपनीय चरित्रावली (सीआर) को लिखते हुए लोकायुक्त जस्टिस गुप्ता ने मकवाना की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करने के साथ उनकी ईमानदारी को भी संदेहास्पद करार दिया था। लोकायुक्त द्वारा मकवाना की सीआर खराब को लेकर खबरसबकी डॉट कॉम 14 सितंबर 2023 को रिपोर्ट प्रकाशित कर चुका था और संस्थान के यूट्यूब चैनल खबरसबकी-न्यूज पर प्रसारित भी हो चुकी है। इसके बाद मकवाना ने सामान्य प्रशासन को पत्र भेजकर सीआर में सुधार का आग्रह किया और लोकायुक्त से भी तथ्यों पर सवाल इस पत्र के माध्यम से जवाब चाहा है। इस विवाद को लेकर जस्टिस गुप्ता ने हमें फोन पर कोई भी बात करने से इनकार कर दिया और किसी तरह का बयान नहीं देने की बात कही। वहीं मकवाना का फोन अटैंड नहीं हुआ। पढ़िये इस पर हमारी विशेष रिपोर्ट।

लोकायुक्त संगठन की विशेष पुलिस स्थापना के प्रमुख रहते हुए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी कैलाश मकवाना और लोकायुक्त जस्टिस गुप्ता के बीच मतभेद रहे थे और जब पिछले साल दिसंबर में मकवाना को वहां से हटाया गया तो मीडिया में बड़ी सुर्खियां भी बनी थीं। मकवाना के कार्यकाल के छह महीने पूरे होते ही हुए इस तबादले पर कई सवाल खड़े हुए थे। इलेस्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ही नहीं सोशल मीडिया पर भी कई पोस्ट में तबादले की परिस्थितियों पर सवाल खड़े करते हुए टीका टिप्पणियां हुई थीं।
मतभेद तबादले में निकलने के बाद सीआर में विपरीत टिप्पणी
तबादले के बाद प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में मामला शांत दिखाई देने लगा लेकिन इस बीच मकवाना की लोकायुक्त को गोपनीय चरित्रावली लिखने का अवसर आया। सूत्रों ने बताया कि इस मौके पर गोपनीय चरित्रावली में लोकायुक्त ने मकवाना के कामकाज के तरीके पर सवाल खड़े करते हुए उनकी ईमानदारी की छवि को कुछ उदाहरणों के साथ संदेहास्पद बताया।

स्थायी आदेशों के विरुद्ध काम को मनमानी बताया
सूत्रों के मुताबिक आईपीएस अधिकारी मकवाना की सीआर लिखते हुए लोकायुक्त ने विशेष पुलिस स्थापना की कार्यप्रणाली बताई। सीआर में लिखा है कि सीआरपीसी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत पूछताछ व विवेचना करती है। इसके आंतरिक ढांचे और काम करने के लिए समय समय पर स्थायी आदेश जारी किए गए हैं जो पूर्व के अनुभव के आधार पर पुलिस अधिकारियों द्वारा सीधे शिकायत लेकर पूछताछ शुरू करने, ब्लैकमेलिंग करने को रोकने के लिए जारी किए गए थे। सीआर में लोकायुक्त गुप्ता ने लिखा है कि मकवाना द्वारा आतंरिक सुधार और नवाचार के नाम पर स्थायी आदेशों की बाधाओं को हटाकर ब्लैकमेलिंग और भ्रष्टाचार की संभावनाओं पर विचार किए बिना अपने अधीनस्थों फ्री हैंड दिया। मकवाना के छह महीने के कार्यकाल में विशेष पुलिस स्थापना के कामकाज के तरीके को बदलकर मनमाने ढंग से अधिकारों को पाने की कोशिश करने वाला अधिकारी बताया गया है।
संजय चौधरी के मामले में क्लीनचिट देने का हवाला
सूत्र बताते हैं कि लोकायुक्त ने मकवाना की गोपनीय चरित्रावली में छह प्रकरणों के साथ एक पूर्व आईपीएस अधिकारी और जेल महानिदेशक रहे संजय चौधरी के मामले में क्लीनचिट देने का हवाला भी किया है जिसमें उनका मानना है कि वह भ्रष्टाचार का ठोस प्रकरण होने के बावजूद मकवाना ने बिना कारण बताए उसमें क्लीनचिट देने की अनुशंसा की। हालांकि बाद में उसमें एफआईआर भी दर्ज हुई। सीआर में जिन छह मामलों का जिक्र किया गया है उनमें प्रेमवती खेरवार, डीएसपी श्रीनाथसिंह बघेल, राकेश कुमार जैन, डीएसपी रामखिलावन शुक्ला, मोहित तिवारी, नरेश सिंह चौहान के जांच और प्राथमिक जांच के मामले हैं। इन मामलों को लेकर मकवाना की सीआर में लोकायुक्त ने लिखा है कि बिना कारण बताए उन्होंने प्रकरणों को बंद करने की अनुशंसा की थी जिनमें बाद में अनुपातहीन संपत्ति के प्रकरण दर्ज हुए थे।

मकवाना का कहना रहा कई निर्णय आज तक नहीं हुए
वहीं, कैलाश मकवाना ने लोकायुक्त में पदस्थापना के दौरान जिन मुद्दों को उठाया उनमें से कई निर्णय तुरंत लिए जाने थे मगर अब उनमें से कई नहीं लिए गए हैं। विशेष पुलिस स्थापना में आंतरिक सुधार एवं कार्यक्षमता बढ़ाने हेतु एक माह बाद ही दिए अनेक सुझावों पर लोकायुक्त की तरफ से निर्णय नहीं लिए जाने से रिकॉर्ड की फाइलें तार-तार होने लगीं। बताया जाता है कि 58 वर्षों से जमा , सढ़ रहे रिकॉर्ड को नष्ट करने की प्रक्रिया और नियम तैयार की, उसमें कई महीनो तक निर्णय नहीं लिया। मकवाना ने कार्यमुक्त होने के बाद चर्चाओं में अपने निकटस्थ लोगों को बताया भी कि छोटे मामलों में ही विशेष पुलिस स्थापना के विवेचना अधिकारियों को उलझाकर रखा जाता है, बड़े मामले लटकाए जाते हैं। प्रस्तुत की गई कई गंभीर शिकायतों में लोकायुक्त ने जांच की अनुमति नहीं दी गई।अनेक वर्षों से लंबित अपराधो और शिकायतों की प्रथम बार कार्यवाही योजना बनाकर तीव्र निराकरण किए। शिकायत जांचे लंबी चलती हैं। पूर्व आईपीएस अधिकारी संजय चौधरी की जांच नस्तीबद्ध करने का मामला पूर्व के तीन डीजी ने पेश की थी जिसके बारे में रिकॉर्ड की जांच पर पता लगा था और फिर लोकायुक्त को बताया गया था।

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