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मध्य प्रदेश की इलेक्ट्रिक वाहन प्रोत्साहन की परिवहन नीति की जमीनी हकीकत जानिये, किसे हो रहा लाभ

मध्य प्रदेश सरकार के परिवहन विभाग ने इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने के लिए नई परिवहन नीति बनाई थी मगर इसकी जमीनी हकीकत कुछ और है। इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने वाले लोगों के साथ छलावा हो रहा है। सरकार अपनी ही नीति के विरुद्ध जाकर खरीदारों से अपना खजाना भर रही है। जानिये हमारी इस रिपोर्ट में।
मध्य प्रदेश सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए नई नीति और आकर्षक नीति बनाई थी जिसका लाभ ऐसे वाहनों की खरीदने वालों को सीधे मिलना था। इस नीति को मार्च 2025 में लाया गया था और इसका एक साल के दौरान इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीदी करने वाले उपभोक्ताओं को लाभ मिलना था। मगर इसका लाभ आज तक इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीदने वाले उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है और उनसे आज भी परिवहन विभाग चार प्रतिशत टैक्स के सा पांच फीसदी पंजीयन शुल्क के रूप में प्रति वाहन हजारों रुपए की वसूली कर रहा है। चार पहिया वाहनों में प्रति गाड़ी करीब एक लाख रुपए तक का आर्थिक भार उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है और उसकी वसूली परिवहन विभाग करके सरकारी खजाने को भर रहा है।
सॉफ्टवेयर अपडेट किए बिना चल रहा काम
परिवहन विभाग ने इलेक्ट्रिक वाहनों की नई नीति के आने के बाद अपना सॉफ्टवेयर को आज तक अपडेट नहीं कराया गया जिससे आज भी ऐसे वाहनों की खरीदी करने वाले उपभोक्ताओं से चार प्रतिशत टैक्स व पांच फीसदी पंजीयन शुल्क सिस्टम द्वारा जनरेट करके उसकी वसूली की जा रही है। उसकी वसूली के बिना उपभोक्ताओं की गाड़ी का पंजीयन ही नहीं हो पा रहा है।
परिवहन के सॉफ्टवेयर से आम जनता परेशान
ऐसा नहीं है कि परिवहन विभाग के सॉफ्टवेयर से केवल इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीदी करने वाले उपभोक्ता परेशान होते हैं बल्कि दूसरी सेवाओं के लिए भी लोग परेशान होते रहते हैं। ड्राइविंग लायसेंस के लिए जहां लोगों को भोपाल जैसे शहर में 15 से 20 किलोमीटर दूर स्थित आरटीओ ऑफिस में जाने के बाद भी कई बार बैरंग लौटना पड़ता है तो कमर्शियल गाड़ी के मालिक सॉफ्टवेयर की वजह से परेशान होते हैं मगर रोजाना परिवहन विभाग से काम के संबंध होने की वजह से वे कहीं शिकायत भी नहीं करते हैं।
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