मध्य प्रदेश में 70 ओर 80 के दशक में डकैत समस्या चरम पर थी और उसी दौरान युवा आईपीएस राजेंद्र चतुर्वेदी ने कुख्यात डाकुओं मलखान सिंह, फूलन देवी, घंसा बाबा का आत्मसमर्पण कराकर खूब वाहवाही लूटी थी। सेवा के दौरान डकैतों के आत्मसमर्पण के अलावा उन्होंने काफी उतार चढ़ाव का समय देखा और आखिरी में वे जेल डीजी के रूप में भर्तियों की गड़बड़ी में फंसे तो जेल तक की सजा हुई। आखिर आखिर में पारिवारिक झगड़ें में उनकी चर्चा होती रही। हालांकि कुछ दिन पहले उनका गुमनामी के बीच रांची में निधन हो गया। पढ़िये रिपोर्ट।
भारतीय पुलिस सेवा के 1969 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के अधिकारी राजेंद्र चतुर्वेदी का कई सालों बाद फिर अब चर्चा में नाम आया है। कई सालों से मध्य प्रदेश से दूर झारखंड के रांची में गुमनामी के बीच आखिर समय बिता रहे थे और उनके निधन का समाचार भी समय पर नहीं आ सका। कुछ दिन बाद यह समाचार अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। राजेंद्र चतुर्वेदी ने जो ख्याति 1982 में डकैतों के आत्मसमर्पण कराकर हासिल की थी, वह उनके उत्तरार्ध के सेवाकाल में लगे दाग से धूमिल हो गई।
बुद्धि कौशल की वजह से वे प्रदेश के अच्छे पुलिस अधिकारियों में गिने जाते थे मगर शुरुआती सेवाकाल में उनकी उपलब्धियों का सिलसिला आगे नहीं चल सका। बाद में बमुश्किल उन्हें पदोन्नति मिल सकी। बाद में जेल के डीजी बने तो वहां भर्तियों की गड़बड़ी का मामला अदालत में पहुंचा जहां से सजा भी हुई और जेल की सजा तक हुई। जेल डीजी रहते हुए उन पर स्टाफ ने भी कई तरह के आरोप भी लगाए। पारिवारिक विवादों में चतुर्वेदी उलझे जिसमें पुलिस थाने तक झगड़े पहुंचे। बाद में चतुर्वेदी मध्य प्रदेश से कब चले गए, इसका पता नहीं चला और निधन का समाचार भी सोशल मीडिया से यहां पहुंचा।
राजेंद्र चतुर्वेदी के निधन के समाचार में याद आए डकैत
चतुर्वेदी के निधन की चर्चा डकैतों के आ्त्मसमर्पण की घटना से अधूरी रह जाती है तो आज उनकी वजह से एकबार फिर दस्यु सुंदरी और पूर्व सांसद स्वर्गीय फूलन देवी से लेकर डाकू मलखान सिंह, घंसा बाबा जैसे नामों की चर्चा भी सुर्खियों में आ गई है। फूलन देवी का अंत तो खैर उनके बेहमई हत्याकांड जैसा हुआ था। मलखान सिंह भी फूलन देवी की तरह राजनीति में उतरने के बाद वापस आम नागरिकों की तरह जीवन बसर करने लगे।
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