CS के चहेते अधिकारी के खिलाफ रिपोर्ट देने वाली IAS अधिकारी नेहा मारव्या ने कैसे गुजारे ढाई साल, अब रिपोर्ट का सच बताएगा EOW

मध्य प्रदेश की युवा महिला आईएएस अधिकारी नेहा मारव्या को निष्पक्ष भाव से एक जांच करने की सजा ढाई साल में कभी बिना काम तो कभी नाम मात्र की जिम्मेदारी मिलने के साथ बिताना पड़ी। सरकार के बदलने के साथ 14 साल बाद उन्हें पिछले महीने ही कलेक्टरी मिली है मगर उनके सच की लड़ाई अब सही मायने में पूरी हुई है क्योंकि जिस रिपोर्ट को तत्कालीन उनके वरिष्ठ अधिकारियों ने एकतरफ रख दी थी, उसके आधार पर ईओडब्ल्यू जांच करने जा रहा है। पढ़िये कौन हैं नेहा मारव्या और क्या थी उनकी पूरी रिपोर्ट।

उत्तरप्रदेश की 39 साल की युवा महिला आईएएस अधिकारी नेहा मराव्या सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी की 2010 की परीक्षा में सफल होने के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा को चुना था और ट्रेनिंग के बाद 2011 बैच की मध्य प्रदेश कैडर के तौर पर नौकरी शुरू की। 2022 में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी और रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी ललित मोहन बेलवाल विस्तृत जांच रिपोर्ट दी थी जिसमें उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर नियुक्तियां करने से लेकर कई अनियमितताओं के आरोप थे। हालांकि बेलवाल की शिवराज सरकार के विश्वसनीय व तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस से नजदीकी की वजह से मारव्या को ढाई साल गर्दिश में गुजारना पड़े। उन्हें कलेक्टर नहीं बनाए जाने के साथ ही कभी बिना काम तो कभी नाममात्र की जिम्मेदारी वाले पदों पर पदस्थापना दी गई। पिछले महीने ही उन्हें डिंडौरी का कलेक्टर बनाकर भेजा गया है।
और भी चर्चित मामलों से रहा है वास्ता
नेहा मराव्या को प्रशिक्षु के बाद शिवपुरी में जिला पंचायत की सीईओ बनाई गईं। 2017 की यह बात है और उस समय उनके कलेक्टर ओपी श्रीवास्तव थे। कलेक्टर की किराए की गाड़ी का बिल ही उन्होंने रोक दिया था क्योंकि वह निर्धारित दर से ज्यादा का बिल था। कलेक्टर के हस्तक्षेप के बाद नेहा मराव्या ने निर्धारित दर पर ही उसका भुगतान किया था। यही नहीं नेहा मारव्या के स्थानीय नेता व तत्कालीन मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया से भी संबंध मधुर नहीं थे। वे उनके शिवपुरी में कार्यक्रम नहीं पहुंची थीं। हालांकि नेहा मराव्या का मीडिया के साथ रिश्ता भी बहुत अच्छा नहीं रहा और शिवपुरी में उनकी पत्रकारों से नोंकझोंक होती रहती थी।
प्रमुख सचिव पर लगाया था अभद्रता का आरोप
पिछली सरकार में राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव पर नेहा मराव्या ने आरोप लगाया था कि उन्होंने उनके साथ अभद्रता की। नेहा का आरोप था कि प्रमुख सचिव ने उन्हें कार्यालय से बाहर जाने कह दिया था। गाड़ी की भी व्यवस्था नहीं की थी। नेहा मराव्या पर यह भी आरोप लगे कि कृषि विभाग में पदस्थापना के दौरान अपने कई ड्राइवर बदले।
आईएएस व्हाट्सअप ग्रुप पर टिप्पणी की चर्चा रह
करीब दो महीने पहले युवा आईएएस अधिकारियों के लिए बनाए गए एक व्हाट्सअप ग्रुप पर वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ज्ञानेश्वर पाटिल की पोस्ट पर नेहा मारव्या ने जो टिप्पणी की वह भी काफी चर्चा में रही थी। नेहा ने अंग्रेजी में लिखा था कि फील्ड पोस्टिंग को लेकर अपने साथ हुए व्यवहार पर बहुत दुख जताया था और कहा था कि मुझे 14 साल की नौकरी में एक बार भी फील्ड की पोस्टिंग नहीं मिली। साढ़े तीन साल मुझे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में उप सचिव बनाकर बैठाया गया। फिर मुझे ढाई साल से राजस्व विभाग में उप सचिव बिना काम के बनाया हुआ है। नेहा मराव्या ने लिखा कि नौ महीने से मैं सिर्फ ऑफिस आती हूं और चली जाती हूं। दीवारों में मुझे कैद करके रख दिया गया है। मैं अकेले होने का दर्द बहुत अच्छे से समझ सकती हूं। इस वजह से मैं अपने सारे जूनियरों को यह विश्वास दिलाती हूं कि कोई भी जूनियर अकेला नहीं रहेगा मैं सबकी हर संभव मदद करूंगी, चाहे में किसी भी पद पर रहूं।
जानिये आजीविका मिशन की गड़बड़ियों पर क्या दी रिपोर्ट
नेहा मराव्या ने करीब तीन साल पहले राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन को लेकर जो रिपोर्ट दी, उसके बारे में आपको बताते हैं। इसके पहले बता दें कि मिशन में प्रमुख का पद आईएएस अधिकारी को दिया जाता है मगर आईएफएस अधिकारी ललित मोहन बेलवाल को यहां पदस्थ किया गया। एक दो साल नहीं करीब 12 साल बेलवाल मिशन में पदस्थ रहे। इस दौरान कई गड़बड़ियां हुईं।
बीमा के नाम पर जमा की गई करोड़ों की राशि किसी भी बीमा संस्थान में जमा ही नहीं की गई। प्रत्येक समूह के लिए अगरबत्ती बनाने की हजारों की संख्या में मशीनों की खरीदी हुई। आरोप है कि उक्त मशीन की वास्तविक कीमत मात्र तीस से चालीस हजार रुपए थी लेकिन उनका भुगतान लाखों में हुआ। यह मामला यहीं नहीं रुका बल्कि कहा जाता है कि जिन कर्मचारियों और स्व सहायता समूह ने इसकी शिकायत की उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा या उनके समूह को खत्म कर दिया गया।
प्रदेश के 22 जिलों में स्कूली बच्चों के ड्रेस के नाम पर भी मिशन में बंदरबांट जैसी हुई। दो सौ रूपए की ड्रेस का भुगतान चार से पांच गुना कीमत के रूप में किए जाने के आरोप लगे हैं। कुछ जिलों से इस संबंध में जांच कर एफआईआर की अनुशंसा की गई मगर मिशन में वह जांच रिपोर्ट दब गईं। इसी प्रकार मिशन में 300 से ज्यादा कर्मचारियों की भर्ती के लिए एक एजेंसी को लाखों रूपए का भुगतान भी किया गया। एजेंसी की सूची से अलग भी नियुक्तियां दिए जाने के तब आरोप लगे थे।
व्हीसिलब्लोअर प्रजापति ने भी की थी शिकायत
व्हीसिलब्लोअर भूपेंद्र प्रजापित ने दस्तावेजों सहित शासन को शिकायत की थी जिसकी जांच तब नेहा मराव्या ने की थी। उन्होंने शिकायत को प्रमाणित पाते हुए 2600 पेज की जांच रिपोर्ट सहित 57 पेज का प्रतिवेदन राज्य शासन को कार्रवाई के लिए भेजा था। मराव्या द्वारा आईएएस प्रियंका दास, ललित मोहन बेलवाल, सुषमा रानी शुक्ला सहित, हैदराबाद के एक बड़े अधिकारी तथा 5 अन्य अधिकारियों के विरुद्ध भारतीय दंड सहिता की धारा 420,467,468,469,472,406,409 120-बी तथा भ्रष्टाचार निवारण नियंत्रण अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही करने की अनुशंसा की गई थी, लेकिन सरकार ने कार्रवाई नहीं की। विधानसभा में भी तब मामला चर्चा में आया था।

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