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मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण पर चली आ रही राजनीति मुख्यमंत्री निवास में सीएम डॉ. मोहन यादव की पहल पर बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में तथाकथित सहमति दिखावा बनकर सामने आई है। सीएम हाउस में एक टेबल पर अलग-अलग विचारधारा के राजनीतिक दल बैठे और उसमें सरकार-भाजपा का दावा है कि सभी दलों के बीच आपसी सहमति बन गई है। मगर बैठक के बाहर निकलते ही कांग्रेस-समाजवादी पार्टी ने भाजपा सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी। छह साल सरकार के माफी मांगने से लेकर कोर्ट में जिन अधिकारियों द्वारा गलत शपथ पत्र दिया गया, उनके खिलाफ अब तक कार्रवाई नहीं किए जाने की बातें कहीं जा रही हैं। पढ़िये हमारी इस रिपोर्ट में, सीएम हाउस में सर्वदलीय बैठक और फिर बाहर निकलकर ओबीसी वोट बैंक को संतुष्ट करने राजनीतिक दलों द्वारा किस तरह से बयानबाजी की गई।
अन्य पिछड़ा वर्ग के वोट पर राजनीतिक दलों की नजरें गढ़ी हुई हैं और इस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी इस वर्ग से आते हैं तो उन्होंने राजनीति से ऊपर उठकर अपने ओबीसी वर्ग के आरक्षण के मसले को हल करने के लिए सभी दलों को बुलाकर चर्चा की पहल की है। हालांकि इसके पहले शिवराज सिंह चौहान भी ओबीसी वर्ग से आते थे और वे डेढ़ दशक करीब मुख्यमंत्री रहे मगर उनके रहते पिछली भाजपा सरकार में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे की कानूनी लड़ाई ऐसी उलझी कि आज तक यह मामला अधर में लटका है। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने अपने सवा साल के कार्यकाल में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की कोशिश की थी जो सत्ता परिवर्तन के बाद 2020 में आई शिवराज सरकार में अदालती लड़ाई की वजह से अधर में लटका और सरकार की तरफ से दिए गए शपथ पत्र ने इसमें पेचीदगी पैदा की। कांग्रेस का कहना है कि अब डॉ. मोहन यादव अपनी पूर्ववर्ती सरकार की गलती को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।
एक टेबल पर अलग-अलग विचारधारा के नेता बैठे
मुख्यमंत्री निवास में गुरुवार को भाजपा और उसके नेता ही नहीं विपरीत विचारधाराओं के राजनीतिक दल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी के नेता एक ही टेबल पर बैठे तो ऐसा लगा कि प्रदेश के विकास की बात होगी। मगर यह बैठक विकास के लिए नहीं बल्कि ओबीसी वोट बैंक को अपनी तरफ लाने की कोशिश जैसा लगा। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री यादव सहित उनके मंत्री प्रहलाद पटेल, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल, कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार, राज्यसभा सदस्य अशोक सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता यश भारतीय सहित आम आदमी पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी व इसकी कानूनी लड़ाई को लड़ रहे अधिवक्ताओं की मोजूदगी में चर्चा हुई जिसके बाद भाजपा ने दावा किया कि उनकी सरकार सभी दलों को साथ लेकर ओबीसी वर्ग को उनका हक दिलाएगी और सभी दल ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिलाने की पहल में सरकार के साथ हैं।
कांग्रेस ने पहल को सरकार के गलत फैसले पर माफी बताया
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार ने कहा कि सर्वदलीय बैठक से साफ हो गया है ओबीसी आरक्षण पर कांग्रेस की मांग के आगे भाजपा सरकार झुकी है और छह साल पहले उनकी ही सरकार द्वारा लिए गए गलत फैसले पर यह माफी है। इसे कांग्रेस की बड़ी जीत बताया। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि कांग्रेस पार्टी की लगातार मांग और संघर्ष के बाद आज भाजपा सरकार ने ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर हामी भरी है। कांग्रेस सरकार ने 6 साल पहले ही 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के लिए मजबूत नींव रखी थी और आज भाजपा सरकार कांग्रेस के बनाए उसी घर में नारियल फोड़कर गृह प्रवेश कर रही है। उन्होंने कहा कि कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण पर अध्यादेश लाकर और कानून पास करके अपनी प्रतिबद्धता पहले ही साबित कर दी थी। कांग्रेस आज भी उसी संकल्प पर अडिग है। सिंगार ने कहा कि सरकार की करनी और कथनी में फर्क है—वो कांग्रेस की मेहनत पर श्रेय लेना चाहती है।
गलत शपथ पत्र देने वाले अफसरों पर कार्रवाई न होने पर सपा ने उठाए सवाल
समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता यश भारतीय ने कहा कि भाजपा की मोहन सरकार ने ओबीसी के नाम पर केवल राजनीति करने का काम किया। सर्वदलिया बैठक के नाम पर ओबीसी वर्ग को ठगने लूटने और धोखा देने का काम किया है। सरकार ने उन अधिकारी, कर्मचारियों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है जिन्होंने न्यायालय में गलत एफिडेविट दिया। 27 में से सिर्फ 14 प्रतिशत लागू है जबकि कई विभाग में नियुक्तियों के लिए न्यायालय द्वारा कोई रोक नहीं है, उन पर 13 प्रतिशत क्यों होल्ड किया है। बैठक में शासकीय और गैर शासकीय अधिवक्ताओं को नहीं बुलाए जाने को लेकर भी समाजवादी पार्टी ने सरकार व भाजपा पर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि जो ओबीसी का पक्ष न्यायालय में रख रहे हैं, उन अधिवक्ताओं को बुलाया जाना चाहिए था।
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