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कांग्रेस सेल्फ गोल से चुनाव मैदान में, भाजपा रिकॉर्ड जीत के अति आत्मविश्वास में
मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य टक्कर है जो मैदान में लड़ तो दम-खम से रहे हैं लेकिन उनकी रणनीति में साफ अंतर नजर आता है। भाजपा अपनी जीत को लेकर काफी आश्वास्त है और केवल उसका ध्यान रिकॉर्ड पर टिका है तो कांग्रेस को अपनी टक्कर वाली सीटों का पता होने के बाद भी वह सेल्फ करने की पुरानी आदत से बचने का प्रयास नहीं कर रही है। पढ़िये रिपोर्ट।
विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने के स्वप्न देखने वाली कांग्रेस को जिस तरह परिणामों ने चौंका कर गहरी निद्रा से जगाया, वहीं भाजपा उस चुनाव में मिली जीत के बाद लोकसभा चुनाव में रिकॉर्डों को बनाने की रणनीति पर काम करने में जुट गई। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के बाद नेतृत्व परिवर्तन कर युवा चेहरों जीतू पटवारी- उमंग सिंगार को कमान सौंपकर लोकसभा चुनाव में उतरने की तैयारी शुरू की। हालांकि हाईकमान के इस फैसले को बुजुर्ग नेताओं ने दिल से आज तक नहीं स्वीकार किया है और इसका नतीजा प्रदेश में एक गुट का नेतृत्व करने वाले सुरेश पचौरी पार्टी छोड़कर भाजपा में ही चले गए। कांग्रेस को टक्कर वाली सीटों का अंदाज है लेकिन वह इसके बाद भी सेल्फ गोल मारती जा रही है। कमलनाथ छिंदवाड़ा के पहले चरण के मतदान के बाद होशंगाबाद-बैतूल में ही चुनाव प्रचार करते नजर आए।
लोकसभा चुनाव में सेल्फ गोल मार रही कांग्रेस
युवा नेतृत्व को कांग्रेस ने जिस उम्मीद से कमान सौंपी थी, उसके अनुरूप परिणाम आने तो दूर हमेशा की तरह नेता ऐनवक्त पर सेल्फ गोल करने की आदत के अनुरूप काम करते नजर आने लगे हैं। जीतू पटवारी-उमंग सिंगार की जोड़ी शुरूआती कुछ दिनों में एक नजर आई लेकिन लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद धीरे-धीरे दोनों नेताओं के काम करने के तरीके अलग-अलग दिखाई देने लगे। पटवारी सेल्फ गोल मार रहे हैं। कांग्रेस की अप्रत्यक्ष रूप से ग्वालियर-मुरैना में मदद कर रही भाजपा नेता इमरती देवी को लेकर पटवारी की टिप्पणी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है तो राजगढ़ से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह ने इतने दिनों तक जिस सधे हुए अंदाज में अपना चुनाव प्रचार किया, उसके अंतिम दिनों में राम के आने पर चुनाव नहीं लड़ने के कथित बयान देकर भाजपा के निशाने पर आ गए। रतलाम में कांतिलाल भूरिया के विधायक पुत्र डॉ. विक्रांत अपने चुनाव प्रचार के बजाय प्रतिद्वंद्वी को हमला करने के मौके देते दिखाई दे रहे हैं। भोपाल में नरेला-हुजूर-गोविंदपुरा,दक्षिण पश्चिम में कांग्रेस के लोकसभा प्रत्याशी को विधानसभा चुनाव की तुलना में लीड दिलाने से बचते नजर आ रहे हैं क्योंकि चुनाव प्रचार में उनके प्रतिद्वंद्वियों को तरजीह मिल रही है। बैरसिया-सीहोर में ओबीसी वोटरों को प्रभावित करने वाले नेताओं की पूछपरख नहीं होने को भी सेल्फ गोल बताया जा रहा है।
पार्टी छोड़ने वालों की संख्या का रिकॉर्ड बन रहा
कांग्रेस पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं की संख्या चार महीने में जितनी रही, वह मध्य प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में एक रिकॉर्ड बनता जा रहा है। प्रदेश का ऐसा कोई कोना नहीं बचा है जहां से पार्टी के नेता-कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर नहीं जा रहे हों। पचौरी के अलावा निर्वाचित विधायक, जिलों के अध्यक्ष, महापौर कांग्रेस छोड़ गए हैं लेकिन चुनाव के ऐसे मौके पर इन नेताओं को रोकने या जाने की भनक लगने के बाद उनसे चर्चा करने का सोचने के बजाय उनके जाने के बाद पीसीसी चीफ से लेकर तमाम नेता उन्हें कचरा करार देते हुए सफाई अभियान की संज्ञा दे रहे हैं।
अति आत्मविश्वास पर वोटिंग प्रतिशत का झटका
भाजपा विधानसभा चुनाव के बाद उसमें मिले मतों से हर बूथ पर जिस तरह 370 अतिरिक्त वोटों को लेने का संकल्प लेकर लोकसभा चुनाव में उतरी, उस अति आत्मविश्वास को मतदाताओं ने झटका दिया है। पहले दो चरण के मतदान के दौरान मतदाता मतदान केंद्रों तक पहुंचने से बचते नजर आए जिससे वोटिंग प्रतिशत कम हुआ। अब इससे भाजपा के जीत के अति आत्मविश्वास के रिकॉर्ड पर ब्रेक लगने की संभावना दिखाई दे रही हैं लेकिन भाजपा इसको लेकर कहने लगी है कि वोटिंग प्रतिशत कम होने में कांग्रेस की भूमिका है और पार्टी के मतदाताओं के वोट देने नहीं पहुंचने से वोटिंग प्रतिशत कम हुआ है। यानी भाजपा ने मान लिया है कि जो वोटर मतदान केंद्रों पर गए, उनमें से ज्यादातर भाजपा के पक्ष वाले ही थे।
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