मध्य प्रदेश में कांग्रेस की लोकसभा चुनाव में हार की पिछली हार और उसके बाद बदलावों की तुलना 2024 के करारी हार से की जाने लगी है। तुलना में कांग्रेस नेता इस हार के बाद बड़े फैसलों की अपेक्षाएं कर रहे हैं तो मौजूदा नेतृत्व हार में अपने बचाव में वहीं पुरानी दलीलें दे रहा है। पूरे चुनाव प्रदेश स्तर के संगठन के बिना काम करने वाले जिम्मेदार अब संगठन में एक्च्यूअल बदलाव की बातें कर रहे हैं। पढ़िये रिपोर्ट।
इंडिया गठबंधन ने देशभर में काफी अच्छा प्रदर्शन किया और कांग्रेस ने अपने पुराने गढ़ रहे उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में पांव जमाते हुए सीटें हासिल की लेकिन मध्य प्रदेश ने कांग्रेस ही नहीं इंडिया गठबंधन को बेहद निराश किया। बड़े राज्यों में मध्य प्रदेश ऐसा स्टेट रहा है जहां क्लीनस्वीप की स्थिति बनी और चार सीटों को छोड़ दें तो 25 सीटों पर एक लाख से लेकर 10 लाख 75 हजार वोटों के अंतर से भाजपा ने जीत हासिल की। इस करारी हार के सैलाब से राष्ट्रीय राजनीति में अपने नाम का झंडा गाड़ने वाले कांग्रेस के दिग्गज कमलनाथ हो या दिग्विजय सिंह या कांतिलाल भूरिया सभी के मुगालते दूर हो गए।
कांग्रेस की इस हालत पर अब नेता मुखर
पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद अपने साथ 2013 में हुई राजनीति को याद करते हुए तंज कसा है। अजय सिंह ने कहा कि 2013 में जब विधानसभा चुनाव में हार की वजह से सरकार नहीं बनी थी तो उन्हें नेताओं ने फेल करार दिया था और उन्होंने नेता प्रतिपक्ष से इस्तीफा दे दिया था। मगर 2024 में उस हार से ज्यादा शर्मनाक हार हुई है और अजय सिंह को अपने साथ नेताओं के व्यवहार की याद आई तो उनसे रहा नहीं गया। मीडिया के कैमरों के सामने उन्होंने कहा कि दिया कि इस बार के बाद जिम्मेदारों को सोचना पड़ेगा।
पुरानी दलीलों से बचाव
अजय सिंह के बयान देने के बाद शनिवार को दिल्ली में सीडब्ल्यूसी की बैठक के दौरान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी को मीडिया ने घेर लिया और हार पर प्रतिक्रिया ली। इसमें उन्होंने कहा कि वे हार की जिम्मेदारी पहले ही ले चुके हैं लेकिन पटवारी ने फिल्मी अंदाज में मुर्गी की हाईट को वास्तविक बताने के लिए दूसरा हाथ नीचे लगाते हुए पुरानी दलीलें पटकीं। वे बोले हार की जिम्मेदारी मैं प्रदेश अध्यक्ष हूं तो मैं जिम्मेदारी नहीं लूंगा तो कौन लेगा। पटवारी ने कहा कि मध्य प्रदेश में बहुत से परिवर्तन जल्दी से दिखाई देगे जो एक्च्यूअल में होने चाहिए। 100 दिन का कार्यकाल था और चुनाव लड़ना था, प्रत्याशी चयन करना था। इस तरह पटवारी ने कमलनाथ सरकार गिरने के बाद जिस तरह उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल की उपलब्धियों पर कई महीनों तक रटारटाया जवाब दिया था कि उन्हें वास्तव में 15 महीने ही मिले थे जिसमें से तीन महीने लोकसभा चुनाव में चले गए तो सरकार को काम करने के लिए समय ही नहीं मिला। उसी तरह पटवारी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में लोकसभा चुनाव की वजह से समय नहीं मिल पाने की दलील देने की कोशिश की।
चुनाव में कार्यकारिणी भंग, जिला प्रभारियों में बदलाव
समय नहीं मिलने की बात कहने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने पीसीसी चीफ बनने के बाद प्रदेश कार्यकारिणी भंग कर दी और पूरे लोकसभा चुनाव में जिम्मेदारियों को बांटे बिना काम चलाया। चुनाव संचालन के लिए कोई भी समिति नहीं बनाईं गईं और न ही रूठे लोगों को मनाने,दलबदल करने की भगदड़ रोकने की कोशिशों के लिए किसी नेता को जिम्मेदारी सौंपी गई। जिलों में जो प्रभारी बने थे, उन्हें चुनाव के बीच बदला जाता रहा जिससे न पुराने प्रभारी जिलों में पहुंचे और न ही नए प्रभारियों ने जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाया। अनुशासन के नाम पर पूर्व में निष्कासित-निलंबित नेताओं की वापसी के फैसले ही लिए गए। गुटीय राजनीति की वजह से प्रदेश कांग्रेस में भरोसे की कमी भी नजर आई और जो जिम्मेदार नेता काम करते दिखाई दिए उन पर संगठन के भरोसे की कमी की वजह से वे भी काम से विमुख होते गए।
Leave a Reply