मध्य प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस सरकार को घेरने के लिए आंदोलन तो करने जा रहा है लेकिन पार्टी के भीतर चल रही खींचतान से आंदोलन में सरकार को ताकत दिखाने के बजाय नेताओं को कमजोर करने की रणनीति ज्यादा दिखाई दे रही है। विधानसभा घेराव के पहले प्रदेश में कांग्रेस ने दो दिन तक जिलों में पत्रकार वार्ताओं का आयोजन कर मुद्दों को प्रेस के सामने रखने के लिए जिन्हें कमान सौंपी है, उसमें कुछ नेताओं को कमजोर करने और कुछ नेताओं को वंशवाद में उलझाकर समर्थकों में फूट डालने की राजनीतिक चालबाजी नजर आ रही है। पढ़िये मध्य प्रदेश कांग्रेस में मचे इसी घमासान पर वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र कैलासिया की विशेष रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश कांग्रेस में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद हाल ही में हुए उपचुनाव से नये राजनीतिक समीकरण बनने लगे हैं। पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने अपनी कार्यकारिणी में जिस तरह प्रदेश के कुछ नेताओं को कमजोर करने के लिए उनके समर्थकों को स्थान नहीं दिया और विरोधियों को आगे बढ़ाया, उसके बाद अब भाजपा की राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन में भी वे उसी रणनीति को आगे बढ़ाते नजर आ रहे हैं। कार्यकारिणी के गठन के बाद पटवारी ने जिलों में प्रभारी और सह प्रभारियों की नियुक्ति की थी। कार्यकारिणी में जिन नेताओं को कमजोर करने की रणनीति अपनाई गई थी उससे उपजे असंतोष को कुछ हद तक शांत करने के लिए उन्हीं नेताओं को समर्थकों को समायोजित करने का प्रयास किया गया। नई पीसीसी के बार-बार रंग बदलने की यह रणनीति एकबार फिर सामने आई है। आंदोलन सफल बनाने में पार्टी की अंदरुनी राजनीति बाधा आंदोलन को सफल बनाने के लिए पीसीसी जिस रणनीति पर काम कर रही है, उससे साफतौर पर अंदरुनी राजनीति झलक रही है। विधानसभा के घेराव आंदोलन में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार, उपनेता हेमंत कटारे को पूरी तरह से उपेक्षित किया जा रहा है। पहले प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में जब इस आंदोलन के ऐलान के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलाई गई तो उसमें इन नेताओं को पहले अलग-थलग रखने की कोशिश की गई लेकिन बाद में उनके नाम जोड़े गए। अब जिलों में इस आंदोलन के प्रचार-प्रसार के लिए पत्रकारवार्ताओं का आयोजन करने का कार्यक्रम बनाया गया है जिसमें न तो उमंग सिंगार का नाम है न हेमंत कटारे का। विधानसभा के घेराव जैसे आंदोलन में विधानसभा में पार्टी के विधायक दल के नेता और उपनेता के साथ यह व्यवहार पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं होने के संकेत देता है। जिन्हें जिले के प्रभारी-सह प्रभारी बनाया, उन्हें किया नजरअंदाज सरकार को घेरने के लिए पटवारी की कार्यकारिणी के ऐलान के बाद आयोजित पहले आंदोलन में वरिष्ठ नेताओं ही नहीं प्रभारियों-सह प्रभारियों, मीडिया विभाग के प्रवक्ताओं को सजावट की चीज जैसा बनाने की तरफ एक और कदम बढ़ाया गया है। पार्टी ने जिलों में पिछले महीने प्रभारी-सह प्रभारी बनाए थे और आमतौर पर जिला प्रभारी-सह प्रभारी का दायित्व पीसीसी के आंदोलन व कार्यक्रमों को लेकर जिले की इकाई को सक्रिय करने का होता है लेकिन 16 दिसंबर को सरकार के खिलाफ आंदोलन करने जा रही कांग्रेस ने जिलों में आंदोलन के मुद्दों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए पत्रकारवार्ताओं का जिन्हें जिम्मा दिया गया, वे संबंधित जिलों के न तो प्रभारी हैं न ही सह प्रभारी। नेताओं के क्षेत्रों में उनके समर्थक या वरिष्ठ नेताओं को प्रभारी या सह प्रभारी बनाया गया था लेकिन सरकार के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में जिलों के इन प्रभारियों-सह प्रभारियों को पूरी तरह से उपेक्षित कर दिया गया है। कुछ प्रभारी-सह प्रभारियों को यह जिम्मेदारी दी भी गई है तो वह उनके प्रभार वाले जिलों की नहीं दी गई है।
प्रचार प्रसार की जिनकी जिम्मेदारी वे नाम ही गायब विधानसभा घेराव आंदोलन के मुद्दों पर जिस मीडिया विभाग के प्रवक्ताओं की टीम को बोलने का सबसे पहला अधिकारी है, उसके नाम ही पीसीसी की सूची से गायब हैं। इसमें मीडिया विभाग के प्रभारी मुकेश नायक व अभिनव बरोलिया अपवाद हैं मगर प्रवक्ताओं की लंबी-चौड़ी सूची में शामिल अभय दुबे, केके मिश्रा, भूपेंद्र गुप्त को इस जिम्मेदारी से दूर रखकर पीसीसी ने क्या संदेश देने का प्रयास किया है, यह संगठन के जिम्मेदारों से नेता-कार्यकर्ताओं का सवाल पैदा कर रहा है। आंदोलन से रखा जा रहा बड़े नेताओं को दूर मध्य प्रदेश कांग्रेस में युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने के हाईकमान के फैसले के बाद अब लग रहा है कि पार्टी के प्रदेश के कुछ बड़े नेताओं को हाशिये पर किए जाने की रणनीति नई पीसीसी अपना रही है। विधानसभा घेराव के लिए जिलों में दो दिन बुलाई जाने वाले पत्रकारवार्ताओं में भोपाल में जिनके नाम प्रस्तावित किए गए थे, उन्हें पहले सूची में शामिल किया गया था लेकिन बाद में काली स्याही से उसे मिटाने की कोशिश की गई। एक नाम इसमें स्याही के पीछे दिखाई दे रहा है, वह पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह का है। कुछ नाम और हैं जिनमें से एक नाम जीतू पटवारी का बताया जा रहा है। इस तरह भोपाल में पीसीसी जिस नेता से विधानसभा घेराव के मुद्दों को बुलवाना चाहती है, वह दिग्विजय सिंह का तो है लेकिन उसमें पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ या पूर्व नेता प्रतिपक्ष व विधायक अजय सिंह या पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह या राज्यसभा सदस्य विवेक तनखा या पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया का तो नहीं है। कमलनाथ, अजय सिंह, डॉ. गोविंद सिंह, विवेक तनखा सहित कार्यकारिणी गठन के बाद विरोध के स्वर दिखाने वाले नेताओं या उनके समर्थकों को भी यह जिम्मेदारी नहीं देने का पीसीसी का फैसला दिखाई दे रहा है।
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