PCC सरकारी दफ्तर की तरह काम कर रहा, resignations दे रहे Leader पत्र से हो रहे अस्वीकृत

मध्य प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय इन दिनों सरकारी दफ्तर की तरह काम कर रहा है। नेता कार्यप्रणाली से क्षुब्ध होकर इस्तीफे दे रहे हैं तो पीसीसी उन्हें सीधे संवाद से मनाने की बजाय पत्र जारी कर उन्हें अस्वीकृत कर रहा है और वे पत्र सोशल मीडिया पर वायरल भी हो रहे हैं। पीसीसी में पदों को दायित्व के साथ बांटा गया है मगर व्यवस्था केंद्रीयकृत होती जा रही है। हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि वरिष्ठ नेता अपमान सा महसूस करने लगे हैं। पढ़िये रिपोर्ट।

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी में हाईकमान ने दो साल पहले युवा नेतृत्व को कमान सौंपते हुए जीतू पटवारी को अध्यक्ष बनाया था मगर इस दौरान हाईकमान का वरदहस्त होने के बाद भी यह दिखाई देता है कि पटवारी संगठन पर पूरी तरह से पकड़ नहीं बना पाए हैं। पीसीसी की कार्यप्रणाली एक सरकारी दफ्तर की तरह लगने लगी है जिसमें पत्रों से संवाद ज्यादा होता दिख रहा है और सीधे संवाद के लिए नेता तरसते नजर आते हैं।
नेताओं के इस्तीफे हुए, संवाद नहीं अस्वीकृति का पत्र
पिछले दिनों पार्टी के दो ऐसे घटनाक्रम सामने आए जिसमें विधायक और संगठन सृजन से जिला अध्यक्ष बने हर्ष विजय गेहलोत और पीसीसी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री मुकेश नायक का इस्तीफा हुआ। दोनों नेताओं ने पीसीसी चीफ जीतू पटवारी को पत्र लिखकर इस्तीफा दिया। संगठन की ओर से उन्हें मनाकर इस्तीफा वापस लेने की पेशकश करने के बजाय दोनों ही नेताओं को पत्र भेजकर उनके इस्तीफे अस्वीकृत करने की सूचना दी गई। ये दोनों पत्र वायरल भी हुए। सरकारी ऑफिसों की तरह पटवारी के प्रभार संभालने के बाद एक दिन संगठन ने पीसीसी के कार्यालयीन समय सुबह 10 से शाम 5 बजे तक होने का पत्र भी जारी किया था जिसे वापस लिया गया।
संगठन की केंद्रीयकृत व्यवस्था
संगठन में केंद्रीयकृत व्यवस्था भी बनती जा रही है जिससे वरिष्ठ नेताओं को अपमान सा महसूस हो रहा है। मीडिया विभाग हो या अनुशासन समिति, दंतविहीन संस्था जैसी बनती जा रही हैं। मीडिया विभाग के प्रभारी मुकेश नायक के इस्तीफे को लेकर यह चर्चा है कि टैलेंट हंट में उनके द्वारा जारी एक कार्यक्रम को अभय तिवारी ने निरस्त कर दिया था जिससे वे अपमानित महसूस कर रहे थे। हालांकि उनके इस्तीफे की एक वजह भाजपा से कांग्रेस में आकर फिर बीजेपी में लौट जाने वाले पूर्व मंत्री दीपक जोशी की महिला कांग्रेस नेता के साथ शादी की खबरों पर उनके विवादित बयान को भी माना जा रहा है। वरिष्ठ नेताओं के अपमान का एक मामला यह भी चर्चा में है कि विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष व विधायक राजेंद्र सिंह के अनुशासन समिति के प्रमुख होने के नाते एक नेता की बहाली के आदेश को संगठन ने निरस्त कर दिया था। इन दोनों ही मामलों के अलावा विभिन्न दायित्व संभालने वाले पीसीसी पदाधिकारियों के कामकाज को संगठन अपने स्तर पर ही पत्र जारी कर करता रहता है जिससे पदाधिकारियों को अपने पद के औचित्य समझ नहीं आता है। वैसे दो साल के दौरान पटवारी हाईकमान के खुले सपोर्ट के बाद भी प्रदेश कांग्रेस में मजबूत पकड़ नहीं बना सके हैं। हाईकमान ने संगठन सृजन कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति का कार्यक्रम सौंपा था जिसमें कई जिलों में कार्यक्रम के तहत आई रिपोर्ट पर पूरी तरह से अमल नहीं हुआ और बिलकुल अलग नाम जिला अध्यक्षों के रूप में सूची में आए। फिर ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्तियों में भी इसी तरह की शिकायतें सामने आईं जिन्हें आज तक नजरअंदाज किया गया। प्रदेश कांग्रेस के जमीनी स्तर के संगठन पर नेताओं द्वारा बैठकों तथा अन्य मौकों पर आलोचना की जाती रही है और ऐसे में 2028 में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पार्टी की सरकार बनने के सपने पर धुंध दिखाई देती है।

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