193 महीने पहले यानी 16 साल से भी ज्यादा समय पहले नीमच में कुख्यात अफीम तस्कर बंशी गुर्जर का फर्जी एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम ने किस व्यक्ति को बंशी गुर्जर बताकर मार डाला, यह सवाल आज भी अनुत्तरित है। पुलिस की तथाकथित सांठगांठ, मोटी रकम लेकर एनकाउंटर दिखाने के अपराधिक कृत्य को अंजाम देने वाले लोगों पर आज तक हत्या का मामला दर्ज क्यों नहीं हुआ और आज भी उनके हाथों में कानून की रक्षा की बागडोर कैसे है, इस प्रश्न का जवाब देने के लिए न सरकार में बैठे नेता आगे आ रहे हैं और न ही नौकरशाही की कमान संभालने वाले आईएएस या आईपीएस अधिकारी चुप्पी तोड़ रहे हैं। यही सवाल आज हम अपनी इस रिपोर्ट में उठा रहे हैं।
कानून का पालन करने की जिनकी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन ने खाकी वर्दीधारियों को दी है, वे जब अपने आर्थिक, सामाजिक हितों को जनता की सेवा से ऊपर रखने लगते हैं तो नीमच जैसे एनकाउंटर करने की घिनौनी साजिश रची जाती हैं। जिस पुलिस टीम पर यह दाग लगा है उसके कप्तान तब आईपीएस अधिकारी वेदप्रकाश शर्मा थे। उन पर सरकार को इतना विश्वास था कि वे बिलकुल सही काम करते हैं और शायद यही वजह रही कि एसपी के तौर पर आईपीएस अधिकारियों को दो-चार जिलों की बमुश्किल जिम्मेदारी मिल पाती है, वहीं वेदप्रकाश को वल्लभ भवन से जारी आदेशों में आधा दर्जन से ज्यादा जिलों की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी।
एनकाउंटर में पुलिस ने किसकी हत्या की….
यह सवाल आज भी खड़ा हुआ है कि पुलिस ने बंशी गुर्जर एनकाउंटर में किस व्यक्ति को बंशी दिखाकर मार दिया था। सूत्रों का कहना है कि फर्जी एनकाउंटर में पुलिस ने एक विक्षिप्त व्यक्ति को अपने मकसद के लिए मार दिया था। उसकी बंशी गुर्जर के रूप में पहचान दिखाने के लिए उसके हाथ पर बंशी गुर्जर का टेटू एनकाउंटर के बाद लिखवाया गया। विक्षिप्त व्यक्ति की मौत को हत्या माना जाना चाहिए था लेकिन इस हत्याकांड को अंजाम देने वाले सभी संदिग्ध आज भी पुलिस की वर्दी पहनकर घूम रहे हैं।
राष्ट्रपति पदक पाने की भी कोशिश
फरवरी 2009 में बंशी गुर्जर एनकाउंटर के बाद नीमच के तत्कालीन पुलिस अधिकारियों की टीम के कुछ लोगों को राष्ट्रपति पदक देने की कोशिश भी हुई थी जिनमें कप्तान वेदप्रकाश का नाम भी बताया जाता है। हालांकि इस बीच उज्जैन पुलिस ने 2012 में बंशी गुर्जर को जिंदा पकड़कर उनकी इस कोशिश पर पानी फेर दिया।
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