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भगवान कभी अपने भक्त का साथ नहीं छोड़ते : नीरज नयन महाराज

भगवान श्री कृष्ण की भक्ति का सबसे बड़ा फायदा यह है कि, यह भक्ति इस जन्म में जहां से भी छूटती है, अगले जन्म में पुन: वहीं से फिर शुरू हो जाती है, अर्थात भगवान श्री कृष्णा जन्मो जन्मो तक अपने भक्त का हाथ नहीं छोड़ते, एक बार जो उनका हो गया हमेशा हमेशा के लिए उनका हो गया।
यह बात वृंदावन से पधारे कथावाचक नीरज नयन महाराज ने भोपाल के राजीव नगर ए सेक्टर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन की कथा में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव, पूतना, गोवर्धन प्रसंग के दौरान कही। उन्होंने कहा कि संसारी मनुष्य परिस्थिति देखकर आपसे संबंध बनाते हैं। अगर आपसे उनका मतलब सिद्ध नहीं हो रहा तो वह दूर हट जाते हैं, लेकिन हमारे ठाकुर, कन्हैया जी जीवनभर साथ नहीं छोड़ते। इसलिए मनुष्य को श्रीकृष्ण की आराधना करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एक बार भी जिसके मन पर सांवरे की सूरत का रंग चढ़ गया,फिर उसके ऊपर कोई रंग नहीं चढ़ता, दिल को नैनो को सांवरे के अलावा कोई नहीं भाता वो तन मन धन से अपने गिरधर गोपाल का हो जाता है।
इंद्र का घमंड दूर किया: उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण के पैदा होने के बाद कंस उसको मौत के घाट उतारने के लिए अपनी राज्य की सर्वाधिक बलवान राक्षसी पूतना को भेजता है। पूतना वेश बदलकर भगवान श्रीकृष्ण को अपने स्तन से जहरीला दूध पिलाने का प्रयास करती है। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण उसको मौत के घाट उतार देते हैं। उसके बाद कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजन का कार्यक्रम करने की तैयारी करते हैं। भगवान कृष्ण द्वारा उनको भगवान इंद्र की पूजन करने से मना करते हुए गोवर्धन महाराज की पूजन करने की बात कहते हैं। इंद्र भगवान उन बातों को सुनकर क्रोधित हो जाते हैं। वह अपने क्रोध से भारी वर्षा करते हैं। जिसको देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देख भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर पूरे नगरवासियों को पर्वत को नीचे बुला लेते हैं। जिससे हार कर इंद्र एक सप्ताह के बाद वर्षा को बंद कर देते हैं। जिसके बाद ब्रज में भगवान श्री कृष्ण और गोवर्धन महाराज के जयकारे लगाने लगते हैं।इस लिए जीव को कभी अभिमान नहीं करना चाहिए और कर्म करना चाहिए फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए,जिससे कर्म करोगे तो फल मिलेगा इसलिए भगवान ने भी कर्म को प्रधान बताते हुए कहा कर्म करना जीव का धर्म है फल देना मेरा काम है। श्रीमद भागवत कथा में श्रीकृष्ण भजनों पर भक्त खूब नाचे।
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