मध्य प्रदेश में कांग्रेस करीब दो दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता से बाहर भले ही हो मगर उसके भीतर संगठन में अभी भी नेता एक दूसरे के लिए चुनौतियां पेश करते रहते हैं। यह स्थिति न केवल प्रदेश के गुटीय राजनीति के बीच नेताओं-समर्थकों में है बल्कि दिल्ली से आने वाले नेताओं को भी उसमें उलझा लिया जाता है और ऐसे में पार्टी अपनी विरोधी पार्टी भाजपा से जूझने के साथ अपनों से भी जूझती नजर आने लगती है। हाल में प्रदेश के प्रभारी महासचित भंवर जितेंद्र सिंह और पीसीसी चीफ जीतू पटवारी के बीच जो अंदरुनी मतभेद थे, उनके चलते पटवारी उन पर भारी पड़े और हाईकमान ने नए प्रभारी राजस्थान के हरीश चौधरी को जिम्मेदारी सौंपकर पटवारी के साथ काम करने भेजा है। अब चौधरी के साथ तालमेल बैठाने की पटवारी के सामने चुनौती है। पढ़िये हमारी विशेष रिपोर्ट।
विधानसभा चुनाव 2023 के बाद से मध्य प्रदेश कांग्रेस में जो बदलाव हुआ था, वह लोकसभा चुनाव और उपचुनावों के बाद भी अब तक उसमें स्थिरता जैसा आभास नहीं हो पा रहा है। बदलाव के बाद प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए पूर्व मंत्री जीतू पटवारी को जहां अपनी टीम बनाने में पूरा एक साल लग गया, वहीं उनके कभी नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार से लेकर कमलनाथ दिग्गज नेता के साथ तालमेल नहीं बैठने की खबरें सुर्खियां बन रही हैं तो कभी उनके प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह के साथ पटरी नहीं बैठने की चर्चा सामने आईं। अब यह कहा जा रहा है कि पटवारी अपने प्रदेश प्रभारी जितेंद्र सिंह पर भारी पड़ गए हैं और उन्हें हटाकर पटवारी के साथ कदमताल करने के लिए राजस्थान के वरिष्ठ नेता व विधायक हरीश चौधरी को प्रदेश प्रभारी बनाया गया है। जीतू पटवारी और चौधरी की जोड़ी को मध्य प्रदेश में कांग्रेस के संगठन को खड़ा करने की चुनौती है मगर पटवारी को उनके साथ कदम से कदम मिलाकर काम करने की चुनौती है।
पटवारी-भंवर सिंह के ऐसे रहे रिश्ते
प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी और भंवर जितेंद्र सिंह के रिश्तों को इस बात से समझा जा सकता है कि पीसीसी के संगठन प्रभारी पटवारी की टीम में एक नहीं दो हैं जिनमें से एक प्रियव्रत सिंह हैं। प्रियव्रत सिंह भंवर जितेंद्र सिंह के रिश्तेदार हैं। कहा जा रहा है कि पटवारी की पसंद पीसीसी अध्यक्ष बनने के बाद से ही संगठन प्रभारी के लिए उनके नजदीकी संजय कामले रहे और जब नई टीम बनी तो भंवर जितेंद्र सिंह की वजह से कामले के साथ प्रियव्रत सिंह को भी यह जिम्मेदारी दी गई। यही नहीं पटवारी व भंवर जितेंद्र सिंह के बीच प्रदेश कार्यकारिणी के बाद जिले व ब्लॉक इकाइयों के गठन को लेकर भी एकराय नहीं बन सकी। कहा जा रहा है कि पटवारी चाहते थे कि पहले ब्लॉक इकाई बने फिर जिला के संगठन को बनाया जाए। मगर भंवर जितेंद्र सिंह का मानना था कि जिला इकाइयों के गठन के बाद ब्लॉक इकाइयां बनें जिससे जिला अध्यक्षों को अपनी टीम के साथ काम करने में असहज महसूस नहीं हो।
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