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मध्य प्रदेश पुलिस आंकड़ों में अपराधों पर कंट्रोल बताने में जुटी तो अपराधी नशे की फैक्ट्री चला रहे, खुफिया तंत्र नाकाम

मध्य प्रदेश पुलिस आंकड़ों को दिखाकर अपराधों को कंट्रोल में बताती नजर आ रही है और उसका खुफिया तंत्र बिल्कुल नाकाम साबित हो रहा है। अपराधी नशे का कारोबार नहीं बल्कि उसकी फैक्ट्री राज्य की राजधानी भोपाल में चला रहे हैं। मध्य प्रदेश पुलिस के खुफिया तंत्र के मुखिया देने में राज्य शासन फैसला नहीं कर पा रहा है तो एटीएस की सक्रियता पर ड्रग्स फैक्ट्री जैसी गतिविधियों के सामने आने के बाद सवाल खड़े हो रहे हैं। पढ़िये रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में गुजरात और दिल्ली की एटीएस, एनसीबी ने बहुत ही गोपनीय ढंग से एक्शन करते हुए नए विकसित हो रहे कटारा हिल्स के करीब एक फैक्ट्री पर छापा मारा। इस फैक्ट्री पर कार्रवाई के दौरान थोड़ा बहुत नहीं बल्कि करीब 900 किलोग्राम ड्रग्स मिला जिसकी बाजार की कीमत 1800 करोड़ से भी ज्यादा बताई जा रही है। हालांकि गुजरात-दिल्ली एटीएस और एनसीबी की इस कार्रवाई को लेकर मध्य प्रदेश पुलिस की तरफ से किसी भी प्रकार की जानकारी अब तक शेयर नहीं की गई है। एटीएस की लंबे समय से कमान संभाल रहे प्रणय नागवंशी से जब संपर्क करने की कोशिश की गई तो उनके मोबाइल की घंटी बजती रही लेकिन किसी ने उसे रिसीव नहीं किया।
आंकड़ों जारी कर अपराध कंट्रोल के दावे
मध्य प्रदेश पुलिस ने पिछले दिनों आंकड़ों जारी कर यह दावा किया था कि अपराध पर किस तरह उसका नियंत्रण है। मध्य प्रदेश पुलिस ने यह दावा एक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर को गलत साबित करने के लिए किया था। गौरतलब है कि एनसीआरबी के आंकड़े हों या एससीआरबी के आंकड़े, उन्हें अपराध बढ़ने या घटने के अपने-अपने नजरिया से पेश किया जा सकता है। पुलिस में कई बार एफआईआर दर्ज करने में फरियादी को टालमटोल करके आंकड़ों को कम भी किए जाने के आरोप लगते रहे हैं, मगर अपराध पर नियंत्रण के लिए पूर्व पुलिस अधिकारियों की कार्यप्रणाली रही थी कि वे एफआईआर दर्ज करने में किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं करते थे। उनकी इस कार्यप्रणाली का असर अपराधियों के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा कार्रवाई करने से अपराध नियंत्रित होते थे क्योंकि अपराधियों में एफआईआर दर्ज होने का भय बना रहता था।
केप्टन के बिना खुफिया पुलिस
मध्य प्रदेश सरकार के लिए पुलिस की आंख-कान-नाक खुफिया तंत्र होता है लेकिन इस तरफ शासन और प्रशासन लापरवाह बना हुआ है। खुफिया तंत्र के प्रमुख अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी होते हैं और 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी जयदीप प्रसाद यहां पदस्थ थे जिन्हें पिछले दिनों लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना में डीजी बना दिया गया है। उन्हें हटाए जाने के बाद से खुफिया तंत्र के प्रमुख की कुर्सी रिक्त है। यहां अभी आईजी आशीष पदस्थ हैं जिन्हें चार साल हो चुके हैं। वहीं, एटीएस के एसपी प्रणय नागवंशी हैं और उन्हें लंबा समय यहां हो रहा है। खुफिया तंत्र के इन दोनों प्रमुख अधिकारियों को लंबा समय होने के बाद उन्हें अपराधियों-अन्य असामाजिक तत्वों या उनकी गतिविधियां की सूचनाओं को हासिल करने के लिए उनका अपना नेटवर्क नहीं है। यही वजह है कि गुजरात-दिल्ली की एटीएस-एनसीबी जैसी एजेंसियों के आने के बाद भी ड्रग्स फैक्ट्री को लेकर मध्य प्रदेश पुलिस अनजान बनी हुई है।
भोपाल पुलिस में पदों चमक
मध्य प्रदेश की राजधानी में पुलिस की नाक के नीचे ड्रग्स फैक्ट्री के संचालन से भोपाल पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। पुलिस कमिश्नर सिस्टम में यह पुलिस की बड़ी नाकामी मानी जा रही है। भोपाल पुलिस कमिश्नर सिस्टम में अधिकारियों में पदों की चमक नजर आती है। सीपी, एसीपी, डीसीपी जैसे पद की चमक के साथ भोपाल पुलिस सड़क पर वाहन चैकिंग करने में ज्यादा व्यस्त दिखाई देती है।
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