मध्य प्रदेश में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से पार्टी में अब कथित रूप से मंथन शुरू हुआ है जो हारे हुए प्रत्याशियों से चर्चा के दौरान कागज का पेट भरने की कवायद बताई जा रही है। प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह ने हार को लेकर शिकायत करने की कोशिश करने वालों से ऐसा सवाल किया कि उनकी बोलती बंद हो गई। पढ़िये रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस हाईकमान द्वारा विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी पार्टी की जबरदस्त हार पर पिछले दस दिन से गंभीर होकर मंथन कर रही है। पहले फैक्ट फाइडिंग कमेटी ने आकर यहां नेताओं से बात की थी और इसके बाद अब प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह यह कवायद कर रहे हैं। फैक्ट फाइडिंग कमेटी के तीन में से दो सदस्य सांसद सप्तगिरि शंकर उल्का और जिग्नेश मेवाणी का दौरा तो भोपाल पर्यटन जैसा रहा। महाराष्ट्र के पूर्व सीएम जो कमेटी के अध्यक्ष थे, पृथ्वीराज चव्हाण ने दो दिन तक नेताओं से गंभीरता से मुलाकात की। उन्होंने खुद लिखकर नेताओं की बातों को नोट किया।
हारे की शिकायत नहीं सुनी
वहीं, शनिवार और रविवार को प्रदेश प्रभारी महासचिव भंवर जितेंद्र सिंह विधानसभा-लोकसभा चुनाव के हारे प्रत्याशियों के साथ प्रदेश के शीर्ष 100 नेताओं से मुलाकात करने आए हैं जिसमें हारे प्रत्याशियों को एक प्रश्नावली सौंपकर उसमें उनसे जवाब चाहे हैं। मुलाकात के दौरान प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह ने शिकायत करने की कोशिश करने वाले प्रत्याशियों को साफतौर पर कहा सामाजिक-जातीय समीकरण पर जीत के दावे करके टिकट मांगा था, नेताओं के भरोसे जीत की बात नहीं की गई थी। इसके बाद हारे प्रत्याशियों की बोलती बंद हो गई।
रविवार को प्रदेश के शीर्ष 100 नेताओं की मुलाकात
प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह रविवार को दूसरे दिन विधानसभा-लोकसभा चुनाव में हार की वजह व संगठन की मजबूती को लेकर प्रदेश के शीर्ष 100 नेताओं से मुलाकात करेंगे। प्रदेश के शीर्ष नेताओं से चर्चा में वास्तविक रूप से संगठन की कमजोरियों का खुलासा होने की संभावना है। हालांकि कांग्रेस के आम कार्यकर्ता का कहना है कि जो कवायद अभी हो रही है, वह विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के पहले होनी थी लेकिन तब न तो जिला कार्यकारिणी, जिला प्रभारियों और प्रदेश संगठन के प्रमुख नेताओं से कोई चर्चा की गई, न उनसे मैदान की वस्तुस्थिति के बारे में कोई रिपोर्ट ली गई। कार्यकर्ताओं का कहना है कि हार के बाद रोना केवल कागज का पेट भरकर हाईकमान के सामने औपचारिकता पूरी करने की कवायद है।
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