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लोकायुक्त ने जीएडी को लिखा, मकवाना ने विशेष पुलिस स्थापना में केवल डाकघर की भूमिका निभाई

लोकायुक्त ने जीएडी को लिखा, मकवाना ने विशेष पुलिस स्थापना केवल डाकघर की भूमिका निभाई मध्य प्रदेश लोकायुक्त संगठन में डीजी विशेष पुलिस स्थापना कैलाश मकवाना की लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता द्वारा लिखी गई खराब सीआर पर मकवाना के रिप्रिजेंटेशन को लेकर गुप्ता ने राज्य शासन को पत्र लिखकर उसे अस्वीकार करने की अनुशंसा की है। वरिष्ठ आईपीएस और चेयरमैन पुलिस हाउसिंग कारपोरेशन मकवाना के लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना किए गए कार्यों पर पत्र में लोकायुक्त ने फिर सवाल खड़े किए हैं। हमारे लिए वरिष्ठ पत्रकार रवींद्र कैलासिया की रिपोर्ट।
वर्ष 2022 में कैलाश मकवाना को डीजी विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त बनाया गया था और करीब छह महीने में ही उन्हें 2022 के आखिरी में हटा दिया गया। उन्हें हटाए जाने के पीछे लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता और उनके बीच दूरियां बनीं थीं। मामला तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक पहुंच गया था और सीएम ने अपने स्टाफ में पदस्थ तब के महानिरीक्षक योगेश चौधरी की पदस्थापना कर दी थी। मकवाना के हटाए जाने के बाद लोकायुक्त जस्टिस गुप्ता को उनकी सीआर लिखने का मौका मिला व कई विपरीत टिप्पणियों का हवाला देकर उनकी सीआर को खराब लिखा। दस में से पांच नंबर दिए जिसके खिलाफ मकवाना ने सामान्य प्रशासन विभाग में रिप्रिजेंटेशन दिया और कई उदाहरण के साथ अपनी बात को रखा।
जवाब में लोकायुक्त की न के साथ टिप्पणियां
सूत्रों के मुताबिक सीआर खराब होने पर मकवाना के रिप्रिजेंटेशन को सामान्य प्रशासन विभाग ने लोकायुक्त जस्टिस गुप्ता को भेजा था। इस रिप्रिजेंटेशन के जवाब में जस्टिस गुप्ता ने एकबार फिर मकवाना की कार्यप्रणाली और ईमानदारी पर सवाल खड़े करते हुए असहमति जता दी है और कहा है कि रिप्रिजेंटेशन को अस्वीकार कर दिया जाएगा।
कुछ वे टिप्पणियां जो लोकायुक्त ने पत्र में लिखीं
- सीआर में दर्ज विपरीत टिप्पणियों के मकवाना द्वारा मांगे गए दस्तावेज देने प्रावधान से इनकार किया।
- पूर्व डीजी जेल संजय चौधरी मामले में क्लोजर रिपोर्ट में व्यय 8.96 फीसदी बताए गए जबकि वास्तविक आय से यह 10 फीसदी से ज्यादा थे जिससे मामला आय से अधिक संपत्ति का बनता था। विधि सलाहकार ने जांच कर यह तथ्य बताया तो क्लोजर रिपोर्ट की जगह एफआईआर दर्ज कराई गई।
- अधिनियम में लोकायुक्त के पास विशेष पुलिस स्थापना पर नियंत्रण के अधिकार हैं लेकिन वे पुलिस अधिकारियों को बिना किसी अनुमति के शिकायत पर विचार करने का अधिकार दिलाना चाहे थे। इससे पुलिस अधिकारी अधिकारों का दुरुपयोग करते। इस तरह के अधिकारों को दिए जाने के पीछे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता।
- डीजी रैंक के वरिष्ठ अधिकारी होने के बावजूद डाकघर की तरह काम किया।
- अधीनस्थों की मामलों को बंद करने की सिफारिशों को बढ़ाया और उनसे इसके कारण भी नहीं पूछे।
- कई मामलों को बंद करने की सिफारिश की गई जिनमें बाद में एफआईआर दर्ज की गई।
- विशेष पुलिस स्थापना में अधिकारियों को उनके विचार के विपरीत रिपोर्ट नहीं देने को कहा गया।
- गृह विभाग का हवाला देते हुए बताया गया कि जब भी उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई तो छह-आठ महीने में ही हटा दिया।
- पुराने मामलों की जांच किए बिना उन्हें बंद करने, अधीनस्थों को एक व्यापक आदेश जारी कर स्वयं ही पूछताछ के अधिकार देने का आदेश चाहा गया जिसे नहीं माना। पुरानी जांच में अगर जांच अधिकारी ने देरी लगाई तो उससे सवाल करने के बजाय उन्हें बंद करने से संस्था की कार्यप्रणाली में सुधार होता।
- समाचार पत्रों में अपने आपको ईमानदार अधिकारी के रूप में खबरें प्रकाशित कराने को अनुशासन का उल्लंघन बताया।
- नियमति कार्य करने और उसमें चूक होने पर सुपरविजन का काम करने में कमी की वजह से सीआर में दस में से पांच अंक दिए गए।
- समाचार पत्रों में खबरें फैलाकर जनता के सामने लोकप्रियता पैदा करने में रुचि थी और ध्यान भटकाने के लिए कुछ नई योजनाएं आदि बताईं।
- तबादले पर इंटरव्यू देकर अपनी ईमानदारी की वजह से हटाए जाने का कारण बताया जिससे पूर्ववर्ती डीजी का अपमान हुआ। इससे पूर्ववर्ती डीजी अनिल कुमार-राजीव टंडन की ईमानदारी पर भी सवाल खड़े हुए।
- सीआर में दस में से पांच अंक मिलने के बाद मुख्यमंत्री द्वारा एक अंक बढ़ाए जाने को रिप्रिजेंटेशन के माध्यम से चुनौती दी है।
- सीआर में दस में से दस अंक देना एक फैशन बन गया है और हर आईपीएस अधिकारी अपने अधीनस्थ को ऐसे अंक दे रहा है।
- विशेष पुलिस स्थापना के पिछले डीजी एसीएस से लेकर विभागों के पीएस से मुलाकात कर अभियोजन स्वीकृति के लिए चर्चा करते थे लेकिन मकवाना ने वरिष्ठ अधिकारियों को भी व्यंग्यात्मक पत्र लिखकर यह काम किया। उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश जो उस समय विधि विभाग में पीएस थे, इसी तरह की भाषा में पत्र लिखा था।
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