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मध्य प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने चुनौती, क्रास वोटिंग की चर्चाएं

मध्य प्रदेश में राज्यसभा की पांच सीटों के लिए 27 फरवरी को होने वाले मतदान के पहले राज्य की राजनीति में भूचाल के पहले की शांति नजर आ रही है। यहां कांग्रेस को राष्ट्रपति चुनाव जैसा झटका लगने की संभावना दिखाई दे रही है जिसमें बड़े स्तर पर दलबदल या कांग्रेस प्रत्याशी को राज्यसभा में पहुंचने से रोकने के लिए बड़ी संख्या में क्रास वोटिंग होने की स्थिति बन सकती है। पढ़िये रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश में दो अप्रैल को भाजपा के चार अजय प्रताप सिंह, कैलाश सोनी, धर्मेंद्र प्रधान व डॉ. एम मुरुगन और कांग्रेस के राजमणि पटेल का कार्यकाल पूरा होने जा रहा है जिनके स्थान पर पांच नए नेताओं को भाजपा व कांग्रेस राज्यसभा में पहुंंचाने की राजनीति समीकरण पर काम कर रही है। एक राज्यसभा सदस्य के लिए मध्य प्रदेश में कम से कम 38 विधायकों के वोट प्रत्याशी को मिलना जरूरी है और इसमें भाजपा को अपने चार नेताओं को फिर से राज्यसभा भेजना का रास्ता साफ है। वहीं, कांग्रेस भी विधानसभा में मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक अपनी एक सीट को बरकरार रख सकती है लेकिन कुछ सप्ताह से पार्टी में चल रही राजनीतिक ऊहापोह की स्थिति से उसके लिए चिंतन-मनन का दौर है।
कांग्रेस में राष्ट्रपति चुनाव जैसी क्रॉस वोटिंग की आशंका
राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश में कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा था क्योंकि उसके 96 विधायकों में से कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को केवल 77 कांग्रेस विधायकों के टिकट ही मिले थे। उन्हें मध्य प्रदेश से 79 विधायकों का वोट मिला था जिसमें से दो निर्दलीय थे। 19 विधायकों ने क्रास वोटिंग की थी जिन पर पार्टी द्वारा आज तक कोई कार्रवाई नहीं की है। अब राज्यसभा चुनाव में उसी तरह की परिस्थितियां बनने के आसार दिखाई दे रहे हैं। अगर प्रत्याशी को अपनी ही पार्टी के 27 विधायक वोट नहीं करते हैं और भाजपा के पांचवें प्रत्याशी को अपनी पार्टी के अलावा 24 अन्य दलों व निर्दलीय के वोट मिल जाते हैं तो फिर कांग्रेस प्रत्याशी की हार सुनिश्चित है।
क्रास वोटिंग के बाद दलबदल की चर्चा
राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी को जीत से रोकने के लिए क्रास वोटिंग के बाद बड़े स्तर पर दलबदल की चर्चाएं भी राजनीतिक गलियारों में हैं। पिछले दिनों कांग्रेस में चले घटनाक्रम के बाद यह परिस्थितियां बनती नजर आ रही हैं। हालांकि अभी इस तरह खबरों का कांग्रेस में हर स्तर पर खंडन किया जा रहा है लेकिन हाईकमान के न्याय यात्रा में व्यस्त रहने और मध्य प्रदेश में संगठन में असमंजस जैसी परिस्थितियों से नेता-कार्यकर्ता भी असहज महसूस करने लगा है। बड़े नेताओं द्वारा दबाव की राजनीति की बातें उनके समर्थक व तटस्थ नेता-कार्यकर्ता करने लगे हैं।
राज्यसभा प्रत्याशी के लिए पटवारी के साथ कमलेश्वर के नाम की चर्चा
इधर, राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस की एकमात्र सीट पर प्रत्याशी का नाम फाइनल नहीं होने से प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के अलावा अब दूसरे ओबीसी नेता कमलेश्वर पटेल का नाम भी चर्चा में आने लगा है। पटेल राहुल गांधी के करीबी भी हैं और उन्हें सीडब्ल्यूसी का सदस्य भी बनाया गया है। कमलेश्वर विधानसभा चुनाव हारे हैं और पटवारी को हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद पटेल की दावेदारी को मजबूत बताया जा रहा है। वहीं, ओबीसी नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव भी इसके लिए प्रयासरत हैं क्योंकि बताया जा रहा है कि वे भी अन्य बड़े नेताओं की रह लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं।
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