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पेड न्यूजः प्रत्याशियों के प्रचार का रास्ता भी ढूंढ निकाला, जनता के सवालों के बहाने अपनी बात कह रहे प्रत्याशी

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में आचार संहिता लगी है और पेड न्यूज को लेकर तमाम तरह के मीडिया पर कथित रूप से चुनाव आयोग और उसके प्रतिनिधियों की नजरें लगी हैं लेकिन इसके बाद भी पीछे के दरवाजे से मीडिया किसी न किसी तरह प्रत्याशियों के समर्थन में समाचारों को प्रचारित और प्रसारित कर रहे हैं। ऐसे तरीकों से निष्पक्ष चुनाव की उम्मीद फिर मुश्किल में दिखाई दे रही है। पढ़िये रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारत निर्वाचन आयोग प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया के माध्यम से मीडिया पर मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू किया गया है जिसमें पेड न्यूज सबसे महत्वपूर्ण होता है। कुछ चुनाव पूर्व तक तो इसमें काफी प्रभावी ढंग से काम किया गया लेकिन अब इससे मीडिया बचते-बचाते हुए अपने आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति करने लगा है। जहां इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने ओपिनियन पोल के माध्यम से आचार संहिता लागू होने के बाद वोट को प्रभावित करने लगा है तो प्रिंट मीडिया ने जनता के सवालों के सहारे कुछ प्रत्याशियों की इमेज बिल्डअप करने की शुरुआत कर दी है।
ओपिनियन पोल में किसकी सरकार बन रही, रुख बता रहे चैनल
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के कुछ बड़े संस्थानों द्वारा खुलेआम ओपिनियन पोल के माध्यम से किस पार्टी की सरकार बन रही है और किसको कितनी सीटें मिलने का अनुमान, दिखाया जा रहा है। ऐसे बड़े संस्थानों के ओपिनियन पोल के माध्यम से जिन दलों को फायदा बताया जाता है, वे उसका उपयोग चुनाव प्रचार में कर रही हैं। चुनाव आयोग का ऐसे ओपिनियन पोल पर कोई नियंत्रण नहीं है।
चुनिंदा प्रत्याशियों से जनता के सवाल का प्रकाशन
यही स्थिति प्रिंट मीडिया की है जहां बड़े संस्थानों द्वारा कुछ बड़ी पार्टियों के ही प्रत्याशियों से जनता के सवाल पूछकर उनकी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा रहे हैं। यह चुनाव प्रचार का एक अलग ही अंदाज सामने आया है। अगर इसके पीछे अच्छी भावना है तो विधानसभा क्षेत्र के सभी प्रत्याशियों से सवाल पूछकर उनकी बात को पाठकों यानी मतदाताओं के बीच रखना चाहिए। चुनाव प्रचार के इस तरीके में पर्दे के पीछे जिस तरह सरकारें अपनी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करने इम्पेक्ट फीचर जैसे विज्ञापनों का सहारा लेती हैं, वैसे ही प्रत्याशी के प्रचार के इस तरीके में संदेह की बदबू आ रही है। व्यक्तिगत रूप से किसी प्रत्याशी को लेकर जनता के सवालों के बहाने प्रचार-प्रसार को पेड न्यूज के दायरे में लेने के लिए चुनाव आयोग को कार्रवाई करना चाहिए, अन्यथा चुनाव की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होंगे।
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