‘क्या गरीब व्यक्ति शादियों में जाना ही छोड़ दे?’

भारतीय समाज में शादी एक बड़ा महत्वपूर्ण स्थान रखती है जिसमें वर-वधु के माध्यम से दो परिवार एक नए रिश्ते में बंधते हैं लेकिन इन शादियों में आजकल दिखावा ज्यादा होने लगा है। गरीबों की शादियां फिर भी आज सादगी से भरी दिखती हैं लेकिन अमीरों में रेडकार्पेट पर स्वागत सत्कार व तामझाम दिखावा ही दिखावा होता है। शादी पर हमारे लिए लेखक अतुल मलिकराम ने अपने अनुभवों को शब्दों में गढ़कर पेश किया है। पढ़िये अतुल मलिकराम की रिपोर्ट।

भारतीय शादियाँ, जो अपनी रस्मों-रिवाजों के लिए पूरी दुनिया में अलग पहचान रखती हैं, इन दिनों आडंबर का शिकार हो गई हैं। शादी में शामिल होने वाले मेहमानों को दिखने के लिए महँगे से महँगी सजावट अब दूसरों से खुद को आगे दिखाने का जरिया मात्र लगने लगे हैं। इस तरह का दिखावटीपन और भव्यता बाहर से भले ही मनमोहक लगे, लेकिन यह परिवारों के बीच दरार लाने का सबसे बड़े कारणों में से एक है, जिसकी वजह से वे कहीं न कहीं पास होते हुए भी एक-दूसरे से कोसों दूर होने लगे हैं। संपन्न लोग आसानी से बड़े से बड़ा खर्च उठाने में सक्षम होते हैं, लेकिन उनका क्या, जिनके पास भव्य शादी पर खर्च करने के लिए धन के भंडार नहीं हैं? क्या गरीब व्यक्ति शादियों में जाना ही छोड़ दे?

एक समय था जब एक ही बार की हुई साधारण-सी सजावट में शादियों के सभी फंक्शन्स हँसी-खुशी पूरे कर लिए जाते थे, और तो और शादियों में एक अलग ही रौनक हुआ करती थी। अब आलम यह है कि शादियों में पैसों को आग लगाई जाने लगी है। मेहँदी में हरे रंग की सजावट, हल्दी में पीले रंग की सजावट, महिला संगीत की सजावट अलग, फिर रिसेप्शन की शान-ओ शौकत तो पूछो ही मत। गोल-गोल घूमता हुआ स्टेज, किनारे रखे मटकों से निकलता सफेद धुआँ, स्टेज पर जाते समय और वरमाला के समय भारी मात्रा में जलते तरह-तरह के अनार, और भी पता नहीं क्या-क्या…..

हमारे समय में तो हल्दी लगने के बाद दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे की शक्ल तक नहीं देख पाते थे, रिवाज़ को सिर-आँखों पर उन्हें रखना जो आता था। अब दूल्हा-दुल्हन को साथ में बैठाकर हल्दी लगाई जाने लगी है, और तो और कई शादियों में वे दोनों एक-दूसरे को ही हल्दी लगाते हुए दिख जाते हैं। मेहँदी में हरे रंग का ड्रेस कोड, माता पूजन में लाल, हल्दी में पीला, तो बारात में नीला.. जिसके पास ये सारे रंग हो तो बात सही भी लगती है, फिर जिसके पास न हो, वह क्या करे? सब पीला रंग पहने हैं, और वह बेचारा अकेला लाल रंग पहना हुआ है, भीड़ में अछूत से कम विचार नहीं आते होंगे….. अगले फंक्शन में शामिल होने की उत्सुकता बेरंग, वह अलग….. या फिर वह अगले फंक्शन्स में शामिल ही नहीं होगा, तो कैसा लगेगा?

विवाह एक अनूठी परंपरा की गलियों को छोड़ धन के दिखावे वाली जगह पर जा बसा है। जहाँ यह नव जोड़े को आशीर्वाद देने और प्रेमपूर्वक अपने रिश्तेदार की खुशियों में शामिल होने का प्रतीक था, अब यह फिजूलखर्ची के विषय से अधिक कुछ नहीं बचा है। यदि मैं किसी शादी विशेष के सभी फंक्शन्स में शामिल होना चाहता हूँ, तो हर फंक्शन के लिए विशेष थीम, कलर और ड्रेस कोड को देखते हुए और शादी में मौजूद अन्य तमाम लोगों के साथ मेल खाने के लिए अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा खर्च करना होगा। यदि मैं या मेरे परिवार वाले इतना खर्च करने में सक्षम नहीं हैं, तो क्या शादी वाला वह भव्य स्थान, सजावट और थीम पर आधारित रंगों वाले कपड़े उस खालीपन को पूरा कर सकेंगे, जो मैं मेरे और मेरे परिवार की शादी में अनुपस्थिति में महसूस कर सकता हूँ। कितनी ही भव्य शादी हो, अपनों और उनकी खुशियों के बिना अधूरी ही रहेगी।

एक समृद्ध और कम आमदनी वाले व्यक्ति के बीच का विभाजन तब और बढ़ जाता है, जब लोग अपनी शादी के खर्च की तुलना अमीरों के खर्च से करते हैं। इन ओवर-द-टॉप फंक्शन्स की प्रवृत्ति का समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह उन लोगों के लिए हतोत्साहित करने वाला विषय हो सकता है, जो उन्हें वहन करने में असमर्थ हैं। शादियों पर पैसा खर्च करना बेशक गलत बात नहीं है, लेकिन इस तरह के भव्य और फिजूलखर्ची वाले विवाह समारोहों की शान बढ़ाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करना कोई मायने नहीं रखता है।

भले ही हमें अपने धन को अपनी इच्छा शक्ति के अनुरूप उपयोग करने की पूरी आजादी है, लेकिन मुझे लगता है कि जब बात शादियों की आती है, तो खर्चों को नियंत्रित करने की जरुरत होती है। हो सकता है कि मेरे विचार आपके विचारों से मेल न खाए, लेकिन शादी दो आत्माओं का, दो परिवारों का मिलन है, यह इस बारे में नहीं है कि आपकी शादी कितनी भव्य है या आपने उस पर कितना पैसा खर्च किया है। शादी एक खास मौका होता है, लेकिन जरूरी नहीं कि वह फिजूलखर्ची वाला हो। हमें खर्चों के मामले में एक कदम पीछे हटने और अपनों के लिए एक कदम आगे आने की जरुरत है। वे क्या पहन रहे हैं, इससे फर्क नहीं पड़ता, भाग-दौड़ भरे जीवन में वे हमारी खुशियों में शामिल हुए हैं, यह सबसे अधिक मायने रखता है। हमें झूठी भव्यता और नकली आनंद के बजाए अपने खास लोगों के साथ खास पल बनाने को प्राथमिकता देना चाहिए।

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