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‘अजय सिंह’ ने संभाली अर्जुन सिंह की राजनीतिक विरासत, छह बार विधायक रहे

अर्जुन सिंह जो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के अलावा केंद्र सरकार में मंत्री और राज्यपाल रहे, आज उनकी राजनीतिक विरासत उनके पुत्र अजय सिंह संभाल रहे हैं। वे 23 सितंबर को 69 साल के हो रहे हैं और अब तक वे छह बार विधायक व दो बार नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। राजनीतिक विरासत संभालते हुए अपने पिता की तरह वे भी विंध्य में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा बन चुके हैं जिन्हें 2018 में हार का सामना करना पड़ा था और कई क्षेत्रीय लोगों ने बाद में कमलनाथ सरकार बनने पर दबी जुबान में अपनी गलती स्वीकार की थी। पढ़िये रिपोर्ट।
अजय सिंह अपने समर्थकों के बीच राहुल भैया से पहचाने जाते हैं। अजय सिंह को राजनीति की क ख ग घ अपने घर में ही मिली क्योंकि उनके पिता अर्जुन सिंह को उस समय राजनीति का चाणक्य माना जाता था। अर्जुन सिंह के राजनीति जीवन में आए हर उतार चढ़ाव को उन्होंने नजदीकी से देखा है तो वे अपने राजनीतिक जीवन में उन तमाम गलतियों से बचने की कोशिश करते हैं। हालांकि 2018 के चुनाव में मिली हार से अजय सिंह को राजनीतिक नुकसान हुआ है और वे इस बार उन गलतियों को सुधार कर आगे बढ़े हैं। पिछली बार उन्हें पार्टी ने यात्राओं की जिम्मेदारी दी थी जिससे वे अपने पूरी करने में विधानसभा क्षेत्र में समय नहीं दे पाए थे। इस बार अजय सिंह काफी समय से क्षेत्र में लगातार संपर्क करते रहे हैं और लोगों के सुख-दुख में पहुंचते रहे हैं। क्षेत्र में उन्होंने धार्मिक कार्यक्रम कराकर लोगों से संपर्क भी बनाया। रहट में राम कथा, शिवपुराण कथा, भागवत कथा आदि धार्मिक आयोजन भी कराए।

पिता के राज्यपाल बनने पर लड़ा उपचुनाव
जब अर्जुन सिंह जी को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया था उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1985 में अजय सिंह को दिल्ली बुलाकर चुरहट से कांग्रेस की ओर से उप चुनाव लड़ने के लिए कहा| उप चुनाव में पहली बार चुरहट से वे विधायक चुने गये| उसके बाद 1991 के उप चुनाव भी जीते और तीसरी बार 1998 में पुनः चुरहट विधानसभा क्षे़त्र से विधायक बने और उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया| इसके बाद वे 2003 में चौथी बार और 2008 में पांचवी बार विधान सभा के लिए चुने गये और 2011 में नेता प्रतिपक्ष बनाये गये| वर्ष 2013 में वे छठवीं बार विधान सभा के लिए चुने गये| उन्हें दूसरी बार नेता प्रतिपक्ष बनाया गया| कैबिनेट मंत्री के रूप में उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता दिखाई तो क्षेत्र के लोगों की मदद के लिए हरसंभव प्रयास किए। छतरपुर के धुबेला संग्रहालय से कृष्ण जन्म की सुंदर प्रतिमा कई सालों पहले चोरी हो गई थी जो अमेरिका पहुंच गई। संस्कृति मंत्री के रूप में कई प्रयास किए और प्रतिमा को वापस भारत लाया गया। यही नहीं भीमबैठका को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कराने में भी उन्होंने मंत्री की हैसियत से काफी प्रयास किए और आखिरकार भीमबैठका विश्व धरोहर बन गई।

पिता अर्जुन सिंह ने उपचुनाव जीत पर दिया था मंत्र
अजय सिंह जब पहली बार उप चुनाव जीत कर 1985 में विधायक बने तब वे सबसे पहले अपने पिता अर्जुन सिंह से मिलने पंजाब गये| तब दाऊ साहब ने उन्हें सफलता का मंत्र देते हुए कहा कि यदि जनता के बीच अपनी पहचान बनाना है तो पूरी निष्ठा, निष्पक्षता और ईमानदारी से गरीब, पिछड़े और वंचित तबके के लोगों की बात को ध्यान से सुनना और उनकी मदद करना| अजय सिंह में किसी काम या सहायता में श्रेय लेने की आदत नहीं रही जो उन्होंने अपने पिता अर्जुन सिंह से सीखी है।
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