मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार को 19 साल हो रहे हैं और चार बार सरकार में रहने की वजह से पार्टी में दो दशक के भीतर कई दलों से नेताओं की भीड़ पहुंच गई है। अब तक जो भीड़ भाजपा में जाने वालों की लगी रहती थी, वही कमोबेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी को छोड़ने वालों की लग रही है। इस भीड़ में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही नहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा व कांग्रेस से भाजपा में पहुंचे ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति नाराज लोगों की भी है जो अब रुकने पर रुक नहीं रही है। पढ़िये इसी पर विशेष रिपोर्ट।
भाजपा ने बीस साल पहले कांग्रेस की दस साल की दिग्विजय सरकार को उखाड़कर फेंका था। उस समय कांग्रेस के प्रति लोगों की नाराजगी थी लेकिन तब दलबदल करने वाले नेताओं की संख्या ज्यादा नहीं थी। इसके बाद भाजपा लगातार सरकार में आती रही और दो बार सरकार बनने के बाद भाजपा में नेताओं के पहुंचने का सिलसिला बढ़ गया। यह सिलसिला 2018 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बनने के बाद उसे अस्थिर करने के लिए 2020 में फिर बड़ी संख्या के रूप में जारी रहा है। अब विधानसभा चुनाव के पहले पांचवीं बार सरकार बनाने के लिए भाजपा प्रयास कर रही है मगर उसकी यह कोशिशें पार्टी छोड़ने वाले नेताओं की वजह से डगमगा रही हैं।
दो दशक में भाजपा का भगवा रंग-रंगबिरंगा हुआ
दो दशक में भाजपा का रंग राजनीति में खूब चढ़ा है और खासकर मध्य प्रदेश में भाजपा-कांग्रेस की मुख्य रूप से दो दलीय व्यवस्था की वजह से भाजपा में दूसरे दलों के नेताओं की आमद ज्यादा हुई। कांग्रेस से लोकसभा चुनाव का टिकट मिलने के बाद भाजपा में पहुंचने वाले भागीरथ प्रसाद हों या शिवराज सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने के बाद विधानसभा सत्र के दौरान सदन में दल परिवर्तन करने वाले चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के विश्वस्त राव उदयप्रताप सिंह या माधवराव सिंधिया के बालसखा बालेंदु शुक्ला या कांग्रेस में दो पीढ़ियां गुजार देने वाले कटनी के संजय पाठक या फिर बुंदेलखंड के अखंडप्रताप सिंह यादव या बसपा-सपा से चुनाव लड़कर जीतने या भाजपा को दूसरे-तीसरे नंबर पर पहुंचने वाले नेता, सभी भाजपा के होते गए। हालांकि इनमें से कुछ नेता बाद में कुछ साल पहले कांग्रेस में वापस भी आ गए। 2020 में तो भाजपा की सरकार बनाने के लिए कांग्रेस से 22 विधायकों का जिस रैले ने दलबदल किया, उसने भाजपा का रंग बिलकुल बदल दिया।
अब पहचान बचाने भागमभाग मची
भाजपा में दो दशक के दौरान जिस तरह दूसरे दलों के नेताओं की भीड़ जमा हुई है, उससे उसका अपना रंग नहीं बचा है। ऐसे में पार्टी के पुराने नेताओं को अपनी पूछपरख कम होती नजर आने लगी है तो जो दूसरे दलों से आए हैं, उनमें से कई वहां समायोजित नहीं हो पा रहे हैं। ऐसे में अब भाजपा से भागमभाग मची है। पिछले तीन महीने में जिस तरह से भाजपा को छोड़ने वाले नेता मुखर होकर पार्टी छोड़ रहे हैं, उससे पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ा नुकसान हो सकता है। जिन नेताओं को अपनी पूछपरख कम महसूस हुई उनमें से दीपक जोशी, भंवरसिंह शेखावत, यादवेंद्र सिंह यादव, गिरिजाशंकर शर्मा, वीरेंद्र रघुवंशी जैसे नेतागण भाजपा पार्टी से भाग खड़े हुए हैं तो ममता मीणा जैसी नेता इसकी तैयारी में हैं। वहीं, कांग्रेस से भाजपा में गए सिंधिया समर्थक इंदौर के प्रमोद टंडन, इंदौर ग्रामीण के अध्यक्ष दिनेश मल्हार, कमल शुक्ला ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
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