75 करोड़ के आबकारी घोटाले के आरोपी की बहाली एक और घोटाला: नेता प्रतिपक्ष

नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने इंदौर में हुए 75 करोड़ से अधिक के आबकारी घोटाले में आरोपी अधिकारी-कर्मचारियों को बहाल करने के भाजपा सरकार के निर्णय को एक और बड़ा घोटाला बताया है। उन्होंने कहा कि जिस तरीके और कारण के साथ 6 अधिकारी-कर्मचारियों का निलम्बन समाप्त किया गया है, वह मध्यप्रदेश के इतिहास में अभूतपूर्व भ्रष्टाचार की मिसाल है। सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के “न खाऊंगा और न खाने दूगां” और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा तीसरे कार्यकाल की शपथ लेने के बाद “भ्रष्टाचार में जीरो टालरेंस की नीति लागू करने की घोषणा” के बाद जिस निर्लज्जता के साथ भाजपा सरकार ने आबकारी अधिकारियों को बचाया हैं उससे लगता है कि इस अमानत में खयानत के मामले में सत्ताशीर्ष से जुड़े लोगों की भी सहभागिता है।
नेता प्रतिपक्ष सिंह ने आज इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री निवास के सामने भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने के लिए लगाई गई पेटी में अपनी शिकायत डाली। सिंह ने शिकायत पेटी डाले अपने पत्र में कहा की राज्य सरकार ने कल देर रात वर्ष 2017 के बड़े आबकारी घोटाले के आरोपियों को बहाल करने का आदेश निकाला। इसकी जांच भी पूरी नहीं हुई है लोकायुक्त के साथ यह मामला हाईकोर्ट में चल रहा है। सरकार ने जिस चोरी छुपे तरीके से बहाली का जो आदेश निकाला है वह घोटाले में एक और घोटाले होने का संकेत दे रहा है।
नेता प्रतिपक्ष ने पत्र में कहा कि मुख्यमंत्री ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरूआत करते हुए शपथ लेने के बाद कहा था कि मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टालरेंस नीति अपनाई जाएगी। बाद में भी मुख्यमंत्री ने इस नीति को लेकर अपना दावा दोहराया। मुख्यमंत्री ने प्रदेश की जनता से न केवल झूठ बोला बल्कि उसे गुमराह भी किया।
सिंह ने पत्र में स्मरण कराते हुए कहा कि एक सितंबर को इंदौर हाईकोर्ट में राज्य सरकार की ओर से आबकारी घोटाले के मामले में जो जवाब माननीय न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया था, उसमें स्पष्ट यह उल्लेख किया गया था कि इस आर्थिक गड़बड़ी के प्राथमिक जिम्मेदार सहायक आयुक्त संजीव दुबे ही हैं। जवाब में यह भी लिखा गया था कि इस आर्थिक गड़बड़ी की जांच 4 वरिष्ठ अधिकारियों ने की। उनकी जांच रिपोर्ट में सहायक आबकारी आयुक्त संजीव दुबे को ही जवाबदेह ठहराया गया। वर्ष 2015 में शराब की बिक्री न्यूनतम दर से कम करने के मामले में भी सहायक आयुक्त संजीव दुबे के खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत दर्ज कर जांच लंबित थी। वर्ष 2016-17 के आबकारी ठेकों की नीलामी और मदिरा क्रय के चालानों में हेरफेर कर सरकार को 42 करोड़ का चूना लगाने और वर्ष 2015-16 में खरगोन, झाबुआ, खंडवा, बड़वानी जिलों में दुकानों की पुनः नीलामी में सरकार को 34 करोड़ का चूना लगाने वाले सहायक आबकारी आयुक्त एवं अन्य पांच आबकारी अधिकारी और कर्मचारियों को बहाल करने का शासन के निर्णय में निश्चित ही एक बड़े भ्रष्टाचार और घोटाले की बू आ रही है। आखिर सरकार घोटालेबाज के प्रति इतनी मेहरबान क्यों है?
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हैरान करने वाली बात यह है कि बहाली के जो आदेश सरकार ने निकाले हैं उसमें भी उपरोक्त अधिकारी कर्मचारियों को दोषी माना है, फिर भी बहाली का आदेश निकाला गया। 14 साल की सरकार और भ्रष्टाचार की जीरो टालरेंस की नीति लागू करने वाली सरकार के सामने ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि शासन को 75 करोड़ से अधिक चूना लगाने वाले और अमानत में खयानत करने वाले इन अधिकारी कर्मचारियों को बहाल करना पड़ा।
सिंह ने पत्र में स्मरण कराते हुए कहा कि वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री ने प्रदेश में कहीं भी भ्रष्टाचार होने पर नागरिकों से यह आह्वान किया था कि वे इसकी लिखित शिकायत मुख्यमंत्री निवास के बाहर लगी शिकायत पेटी में डाल सकते हैं। इंदौर में हुए आबकारी घोटाले के संबंध में मेरी शिकायत है कि जब सरकार ने पूरी तरह सहायक आबकारी आयुक्त संजीब दुबे के साथ अन्य अधिकारी कर्मचारियों को दोषी माना है तो उन्हें बहाल क्यों किया गया। क्या आरोपियों ने इस घोटाले में सत्ताशीर्ष से जुडे़ लोगों के नाम उजागर करने की धमकी दी थी। आप इस मामले की जांच कराने में सक्षम नहीं है। इसलिए इस पूरे मामले की जांच सीबीआई अथवा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में इसकी जांच कराएं। जिस तरह से सरकार ने बहाली करने का शर्मनाक निर्णय लिया है उससे लगता है कि सरकार शासन के राजस्व को चूना लगाने वाले अधिकारी कर्मचारियों को निर्दोष ठहराने में पूरी ताकत से लग गई है।

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