हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के पहले हिंदी के आसान-उच्चस्तर के शब्दों का ईजाद करें: अतुल

हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की बातों को लेकर राजनीतिक रणनीतिकार अतुल मलिकराम ने कहा है कि यह भारत की अनेकता में एकता पर चोट होगी। हिंदी भाषी राज्यों में ही हिंदी के प्रयोग को पहले अपनाना होगा और इसके लिए हिंदी के आसान-उच्चस्तर के शब्दों का ईजाद करना होगा। हिंदी के ज्यादा से ज्यादा उपयोग तब हिंदी को राष्ट्रभाषा से ऊपर विश्वभाषा की सोचना चाहिए।

अतुल मलिकराम ने हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने की बातों पर एक गंभीर टिप्पणी की है। उन्होंने इस पर सवाल उठाया है कि यदि ऐसा होना चाहिए, तो जिस भारत की परम्परा विविध सभ्यताओं और भाषाओं वाली है, उसका क्या? किसी विशेष क्षेत्र की भाषा, रीति-रिवाज को अन्य क्षेत्रों की भाषा या रीति-रिवाजों से केंद्र द्वारा अधिक महत्व देना, देश की एकता पर आघात करने जैसा है। मलिकराम ने कहा कि भारत अनेकताओं में एकता वाला देश है। हमारे संविधान में कहीं भी राष्ट्रभाषा का जिक्र तक नहीं है। अक्सर लोग ऐसे विचार भावनात्मक या फिर राजनैतिक आधार पर रखते हैं। पर उसके परिणाम के विषय में तनिक भी नहीं सोचते।
हिंदी बोलचाल में अहिंदी शब्द का उपयोग
मलिकराम का कहना है कि राष्ट्रभाषा बनाने से अधिक महत्वपूर्ण है हिंदी भाषियों द्वारा हिंदी का प्रयोग। उन्होंने दावा किया कि किसी भी हिंदी भाषी से लोगों से पूछा जाए कि क्रिकेट को हिंदी में क्या बोलते हैं? तो वह ‘गोलगट्टम लकड़ पट्टम दे दनादन प्रतियोगिता’ नहीं बता पाएगा। इतनी हिंदी, हिंदी भाषी को पता होगी? और मोटरसाइकिल को हिंदी में क्या कहेंगे? ‘यंत्र चालक द्वीपथ गामिनी’ और पंप को वायु ठूसक यंत्र, अलमारी, रेल इत्यादि। ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएँगे, जो शब्द हिंदी नहीं हैं, लेकिन हम इन्हें आम बोलचाल में उपयोग करते आ रहे हैं।
हिंदी पढ़ना-लिखना बंद
अतुल मलिकराम ने कहा कि हिंदी भाषियों ने हिंदी पढ़ना या लिखना बंद कर दिया है और इसके बाद आता है समझना, तो समझ तो लोग इतने अच्छे से रहे हैं कि बेकार में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की माँग करके देश को तोड़ने का कार्य भी बड़ी कुशलता से कर रहे हैं। स्वयं तो हिंदी पढ़ेंगे या लिखेंगे नहीं, लेकिन दूसरों को अवश्य पढ़वाएँगे। हिंदी प्रदेशों में कोर्ट कचहरी, बैंक, मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई, अखबार, सरकारी अनुबंध इत्यादि के काम अंग्रेजी में हो रहे हैं। नौकरी अंग्रेजी से मिल रही है। संघर्ष अंग्रेजी से होना चाहिए भारतीय भाषाओं से नहीं। मराठी, दक्षिणी भाषी या बंगाली को हिंदी का राष्ट्रभाषा बनना कतई स्वीकार्य नहीं होगा और इसकी आवश्यकता भी क्यों है? अतुल ने कहा कि यह फालतू के मुद्दें हैं, जिन्हें उठाना ही नहीं चाहिए।
हिंदी का प्रयोग जीवन में करें
मलिकराम ने कहा कि 2030 के भारत के रूप में अगर हम हिंदी को बढ़ते हुए देखना चाहते हैं, तो हमें हिंदी विशेषज्ञों को बैठाकर आसान और उच्च स्तर के शब्द ईजाद करने होंगे। जब तक हम आसान शब्दकोश नहीं लाएँगे, तब तक हिंदी को विस्तृत नहीं कर पाएँगे। हिंदी को कई भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करना होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात कि पहले हिंदी राज्यों में ठीक से हिंदी का प्रयोग हो। हमारे अपने जीवन में हिन्दी का प्रयोग हो, फिर राष्ट्रभाषा क्या, विश्वभाषा की सोचिए।

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