टिकट वितरण में प्रदेश कांग्रेस की ‘त्रिमूर्ति’ में चर्चा के नाम पर बहस, कई टिकट में जमीनी फीडबैक नहीं दिखा

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के 229 प्रत्याशियों का चयन हो तो गया मगर इसके पीछे दिल्ली में प्रदेश कांग्रेस की त्रिमूर्ति यानी कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और गोविंद सिंह के बीच चर्चा के नाम पर कई बार बहस हुई। इसके बाद भी चेहरे, अपने-तुम्हरे नामों को फाइनल कर दिया गया और कई टिकट तो जमीनी फीडबैक के बिना दे दिए जाने से विपरीत हालात बने और उन्हें बदले जाने से पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं में गलत संदेश पहुंचा। इसका नतीजा यह हुआ कि पहली सूची के मुकाबले दूसरी सूची से असंतोष के स्वर ज्यादा तेजी से सामने आए। पढ़िये रिपोर्ट।

कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने टिकट वितरण के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़के से लेकर स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों, चाहे वह भंवर जितेंद्र सिंह हो या फिर रणदीप सिंह सुरजेवाला सभी को अपनी ताकत का अहसास कर दिया। उम्मीदवारों के नाम पर नाथ ऐसे अड़े कि नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के तर्क बेकार साबित हो गए। दूसरी सूची के लिए नई दिल्ली में मची टिकटों के जद्दोजहद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के व्यवहार को देखकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़के भी हतप्रभ रह गए। स्क्रीन कमेटी के सदस्य तो कमलनाथ के आगे बौने नजर आए। मसलन, 2013 विधानसभा के चुनाव में मुरैना विधानसभा में जमानत जप्त करने वाले दिनेश गुर्जर को कमलनाथ ने अ़ड़कर टिकट दिलाया है। टिकट वितरण में अधिकांश उन नेताओं को टिकट दिया गया जो काफी समय से कमलनाथ का जयकारा लगाते आ रहे हैं या जिन्हें उन्हें टिकट के लिए पहले से आश्वास्त कर दिया था। उनमें से दिनेश गुर्जर, सुरेंद्र चौधरी, नीरज बघेल, सुनील शर्मा, निधि जैन, राजेंद्र शर्मा, गिरजाशंकर शर्मा, एनपी प्रजापति, प्रदीप चौधरी, कुंदन मालवीय, सुखराम पांसे, सत्यनारायण पटेल, रमाशंकर प्यासी, पद्मेश गौतम, मोंटू सोलंकी, रक्षा राजपूत प्रमुख है। आलाकमान प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सामने संगठन में कार्यकर्ताओं की आस्था की रक्षा नहीं कर सका है। कांग्रेस के प्रत्याशियों की सूचियां ही संकेत दे रही हैं कि हर सीट के लिए अलग-अलग मापदंड और प्रक्रिया को अपनाया गया है। सर्वे के नाम पर केवल निजी पसंद को महत्व दिया गया है।

कभी नाथ-दिग्विजय तो कभी नाथ- गोविन्द में बहस
सूत्रों के मुताबिक टिकट वितरण के लिए नई दिल्ली में हुई तमाम बैठकों में उम्मीदवारों के चयन को लेकर कभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह और कभी कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच जमकर बहस हुई। इस बहस के बावजूद भी कमलनाथ टिकट वितरण में अपनी बात को मनवाने में सफल रहे। यही कारण है कि कांग्रेस में बगावत-विद्रोह और पार्टी छोड़ने का दौर जो पहली सूची के साथ चालू हुआ था वह दूसरी सूची के साथ कम होने की बजाय बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है। प्रत्याशियों की सूची के बाद नाराजगी और बयानबाजी तो स्वाभाविक प्रक्रिया है। प्रत्याशी चयन में मापदंड, पारदर्शिता का भाव दिखाई नहीं दे रहा है और इससे असंतोष बढ़ने के संकेत दिखाई दे रहे हैं जो पार्टी के लिए चुनाव के मौके पर खतरनाक साबित हो सकते हैं।

जब पट्ठावाद चलना था फिर मापदंड क्यों…?
स्क्रीनिंग कमेटी की पहली बैठक में टिकट वितरण के लिए जो तमाम मापदंड तैयार किए गए, उनमें दो बार के हारे या 15000 से अधिक मतों से पराजित नेताओं को टिकट नहीं दिए जाने की लाइन बनाई गई थी। यह चेहरे और अपने-तुम्हारे के चक्कर में तार-तार हो गए। मुकेश नायक से लेकर यादवेंद्र सिंह जैसे नेता मापदंडों पर फिट नहीं थे लेकिन उन्हें टिकट मिल गया। मुकेश नायक, कमलनाथ की पसंद थे तो यादवेंद्र सिंह, दिग्विजय सिंह के झंडाबरदार रहे। पहली सूची में घोषित तीन प्रत्याशी बदले गए हैं। प्रत्याशी बदलने से यह संदेश जाता है कि संगठन में प्रत्याशियों के चयन में कहीं न कहीं तदर्थ सोच हावी रही। जिनको टिकट दिए गए थे उनका टिकट दोबारा काटने से उनका जो सार्वजनिक अपमान हुआ जो किसी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं हो सकता। यही कारण है कि एनपी प्रजापति का पहले टिकट कटा और फिर बाद में उन्हें उम्मीदवार बनाया गया। ऐसा करके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने शेखर चौधरी के समर्थकों द्वारा भितरघात किए जाने का रास्ता खोल दिया। ये लोग कमलनाथ के बंगले पर विरोध करने भी पहुंच गए तो मुकेश नायक के खिलाफ पीसीसी पर नारेबाजी हुई और आत्मदाह की चेतावनी तक देने से कार्यकर्ता नहीं चूके।

जब टिकट देना था तो रोका क्यों गया

सवाल यह भी उठ रहा है कि कांग्रेस की प्रत्याशियों की सूची पर सबसे पहले तो यही कहा जाना चाहिए कि जब यही टिकट दिए जाने थे तो फिर इतनी देर क्यों लगाई गई? भोपाल में पीसी शर्मा का टिकट क्यों रोका गया था और क्यों दे दिया गया है? जब संजीव सक्सेना को टिकट के लिए आश्वासन दिया जा चुका था तो पीसी शर्मा को टिकट कैसे दिया गया और फिर संजीव सक्सेना के पार्षद भाई प्रवीण सक्सेना को जिला शहर कांग्रेस अध्यक्ष का झुनझुना पकड़ाकर शांत करने का प्रयास किया जा रहा है। यह सवाल आम कार्यकर्ता और नेता कर रहा है कि जो नाम पहले से चर्चा में आ गए थे कमोबेश सूचियों में भी उसी तरह के नाम दिखाई पड़ रहे हैं। चुनाव के छह महीने पहले टिकट देने की घोषणा क्यों की गई थी?

पर्यवेक्षकों ने फीडबैक भी सही नहीं दिया
सूत्रों पर भरोसा किया जाए तो पिछोर सीट पर कांग्रेस द्वारा जिस कार्यकर्ता को पहले टिकट दिया गया था वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी मंत्री महेंद्र सिसौदिया का करीबी रिश्तेदार है। अगर इस कारण टिकट बदला गया है तो इसका मतलब है कि पार्टी द्वारा जमीनी स्तर से पहले इस तरह की पड़ताल या रिपोर्ट तैयार क्यों नहीं की गई। तथ्यात्मक पुष्टि किए बिना कैसे टिकट फाइनल कर दिया गया। ‘जोड़ी नंबर वन’ द्वारा बार-बार यही कहा जा रहा था कि संगठन की स्थानीय इकाई से जो भी फीडबैक आएगा उसी को प्राथमिकता दी जाएगी। अगर फीडबैक लिया गया होता तो फिर पहले टिकट देना और फिर टिकट बदलने के हालात कैसे पैदा हुए?

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