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एकता के स्थान पर देश में एकात्मकता लाने के बारे में सोचना चाहिए
प्रज्ञा प्रवाह के सहयोग से प्रतिमाह आयोजित की जाने वाली लोक व्याख्यानों की श्रंखला का 58 वां व्याख्यान स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी में आयोजित हुआ । “भारत की एकता एवं अखंडता के समक्ष चुनौतियाँ” विषय पर आयोजित इस व्याख्यान के मुख्य वक्ता माखनलाल विश्वविद्यालय के कुलपति बी के कुठियाला थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यप्रदेश के पशुपालन संचालक डॉ आर के रोकड़े ने की ।
कार्यक्रम में वक्ताओं द्वारा कहीं गईं प्रमुख बातें
प्रोफेसर बी के कुठियाला ने कहा
- सबसे पहले तो हमें यह तय करना होगा कि देश में एकता चाहिए है या एकात्मकता । क्योंकि एकता हमेशा दिखाई नहीं देती, देश में एकता के बावजूद कई महत्वपूर्ण मौकों पर देश का एक वर्ग देश की मुख्य धारा से अलग राय रखता आया है । चाहे वह भारत चीन युद्ध हो या 1971 का युद्ध, हर समय देश के किसी ना किसी वर्ग ने इसका विरोध किया था । इसलिए ऐसी एकता के स्थान पर हमें देश में एकतात्मकता लाने के बारे में सोचना चाहिए
- एकता की बात करने से पहले हमें यह तय करना होगा कि हम कैसा देश चाहते हैं । वह भारत जो हमारी 5000 साल की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित हो या वह भारत जो इस विरासत और अनुभव को सिरे से नकारता हो
- देश के बुद्धिजीवियों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे भारत के सांस्कृतिक अनुभव को आज इतने अच्छे से प्रस्तुत करें कि आज की व्यवस्था उसे स्वीकार्य करने योग्य मान ले
- पिछले 100 सालों से भारत के सांस्कृतिक अनुभव को मिटाने की कोशिश की जा रही थी जो सफल नहीं हो सकी ।
- भारत के धुर विरोधी भी भारत की सांस्कृतिक विरासत के महत्व को समझते हैं यही कारण है कि आज अमेरिका के 100 से विश्वविद्यालयों में भारतीय ज्ञान पर रिसर्च चल रही है ।
- पूरी दुनिया भारतीय ज्ञान को और जान लेने के लिए उतावली है बस भारत में इसको लेकर कोई उत्सुकता नहीं है ।
- दुनिया में भारत के बारे में जो भी रिसर्च प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं उनका नेतृत्व भारत के कट्टर विरोधी कर रहे हैं इसलिए वे हमेशा भारत की नकारात्मक छवि को ही सामने लाते हैं
- मैक्स मूलर को भारत की नकारात्मक छवि को सामने लाने के लिए ही वेदों के अनुवाद के कमा में लगाया गया था । उन्हें उस समय हर पेज के अनुवाद पर 5 डॉलर मिलते थे
- भारत के पास जनशक्ति और भौतिक संसाधनों की अपार क्षमता मौजूद है
- भारत प्रकृतिक रूप से बना देश है इसे प्रकृति ने बनाया है किसी व्यक्ति ने नहीं
- भारत में इस समय एक ‘भारत तोड़ो ब्रिग्रेड” काम कर रही है । ये वो लोग हैं जिनके मन में गलत धारणाएँ बैठा दी गईं हैं
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