उत्तराधिकार में “सराइकेला छाऊ समूह नृत्य की प्रस्तुतियां

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में प्रत्येक रविवार आयोजित परम्परानवप्रयोगों एवं नवांकुरों के लिए स्थापित “उत्तराधिकार” श्रृंखला में 11 फरवरी 2018 को “कव्वाली गायन” एवं “सराइकेला छाऊ समूह नृत्य की प्रस्तुतियां संग्रहालय सभागार में हुईं।

कार्यक्रम का प्रारंभ भोपाल के आरिफ लतीफ़ खां ने अपने साथी कलाकारों के साथ सूफी परम्परा के अंतर्गत भक्ति संगीत की धारा के सात सौ साल पुराने रूप कव्वाली के साथ की| उन्होंने कव्वाली की शुरुआत “वाद्य यंत्र” बजाकर की और इसके माध्यम से सूफी संतो को निमंत्रण दिया| इसके पश्चात् आरिफ लतीफ़ ने “आलाप” के साथ क़व्वाली का पहला छन्द “मनेकुल सो मोल” गाया। साथी कलाकारों ने हारमोनियम, तबला, ढोलक, बैंजो और पखावज पर उनका साथ दिया और सभागार में उपस्थित श्रोताओं के बीच क़व्वाली का माहौल तैयार किया।सरगम का प्रयोग करते हुए कसीदा, ग़ज़ल, रुबाई की प्रस्तुति के साथ आरिफ लतीफ़ खां ने 14 वीं सदी के सूफी संत अमीर खुसरो के कलाम “छाप तिलक सब छीन लीन्हि रे मोसे नैना मिलाईके”, “दमा-दम मस्त कलंदर” पेश कर सभा को विस्तार दिया और श्रोताओं को कव्वाली का हिस्सा बनाया| अपनी अंतिम प्रस्तुति के रूप में उन्होंने अमीर खुसरो के कलाम “ऐ री सखी मोरे पिया घर आये” गा कर संगीत सभा को विश्राम दिया| प्रस्तुति में मजीद लतीफ़, अरबाब आरिफ,फईम खान ने गायन में साथ दिया | बैंजो पर मो. अरीफ़,ऑक्टोपेड पर मो. युसूफ और तबले पर अमित कुमार, ढोलक पर मो.साबीर ने संगत की | मेवाद घराने के आरिफ लतीफ ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता स्व. उस्ताद अब्दुल लतीफ खां से प्राप्त की| आप देश और विदेश (ऑस्ट्रेलिया, दुबई, कुवैत आदि) के कई प्रतिष्ठित मंचो में अपनी कला का प्रदर्शन भी कर चुके हैं|

अगली प्रस्तुति शशधर आचार्य एवं साथी कलाकारों ने प्रकृति में सेनाओं के जश्न मानाने की वैदिक अवधारणा को प्रतिबिंबित करती “सराइकेला छाऊ समूह नृत्य” की दी | आपने प्रथम प्रस्तुति के रूप में राग “यमन और मारू बिहाग”, ताल बारह मात्र में निबद्ध रचना “रात्रि” की दी जो ऋग वेद की कविता “ऋतु सुक्कता” से प्रेरित रात की देवी वर्णन करती हैं| जिसमें कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से अपने धार्मिक कर्मकांड को शाम का प्रतिनिधित्व करते हुए दिखाया | इसी क्रम में कलाकारों “राग-जोगिया” सोलह मात्रा में निबद्ध विशेष नृत्य रचना “राधा-कृष्ण” की प्रस्तुति के माध्यम से राधा-कृष्ण के अनंत प्रेम को दर्शाया | साथ ही कलाकारों द्वारा स्थानीय राग सोलह मात्रा में निबद्ध “हंसा” एवं “राग पीलू” आठ मात्रा में  निबद्ध रचना “चंद्रभागा” की प्रस्तुति दर्शको के समक्ष दी गयी | अपनी अंतिम प्रस्तुति कलाकारों द्वारा “नाविक” की दी गयी| राग- स्थानीय धुन,सात मात्रा में निबद्ध इस रचना के माध्यम से कलाकारों ने एक नाविक और उसकी प्रेमिका के जीवन की कठिन यात्रा का सुन्दर चित्र दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया | प्रस्तुतियों के दौरान सभागार में उपस्थित सुधि श्रोताओं और दर्शकों ने करतल ध्वनि से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया। आज की प्रस्तुति में शशधर आचार्य के साथ मंच पर सुकांत कुमार आचार्य,बिश्वनाथ कुम्भकार,गोविन्द महतो , सतीश महतो, गुंजन जोशी, शुभम आचार्य, पुलकित गुप्ता आदि कलाकारों ने नृत्य प्रस्तुति दी |

पद्मश्री के.एन. साहू एवं एस.एन. सिंहदेव के शिष्य शशधर आचार्य पारंपरिक कलाकार हैं, जो अपने परिवार की पांचवी पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे हैं। शशधर आचार्य को “सराईकेला छाऊ नृत्य” की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता गुरु लिंगराज आचार्य से प्राप्त हुई। इन्होंने कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले समारोहों में अपनी कला का प्रदर्शन किया है।

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