आबकारी विभाग व शासन की मिलीभगत से नए खिलाड़ी बाहर

मप्र में देशी शराब की थोक सप्लाई के लिए टेंडर जारी करने में आबकारी विभाग और शासन डिस्टिलरी सिंडीकेट के हाथों खेल गया। सील बंद बोतलों की आपूर्ति के टेंडर में एक ऐसी शर्त जोड़ दी गई जिससे सिंडीकेट के अलावा कोई नया डिस्ट्लर टेंडर भर ही नहीं सका।मप्र में देशी शराब सील बंद बोतलों में की थोक आपूर्ति के लिए सीएस1 टेंडर आमंत्रित किए जाने थे अब तक नियम यह था कि बी1 लाइसेंस होल्डर इस थोक आपूर्ति के लिए टेंडर डाल सकते थे यानि डिस्टिलर होना ही पर्याप्त था।
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48 घंटे में हुआ खेल
आबकारी विभाग ने वर्ष 2018—2019 के लिए टेंडर कॉल करने से पहले 1 फरवरी 2018 को एकल नस्ती प्रस्ताव शासन को भेजा इस प्रस्ताव में विभाग ने एक नया नियम डाल दिया कि सीएस1बी लाइंसेस जिसके पास होगा वहीं टेंडर डाल सकेंगा। सीएस1बी देशी शराब की बॉटलिंग की पात्रता रखने वाला लाइंसेंस धारक होता है।
यह प्रस्ताव अगले ही दिन शासन से मंजूर हो भी गया और 3 फरवरी 2018 को मप्र राजपत्र में टेंडर प्रकाशित हो गया।
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8 कंपनियों की खातिर बदला नियम
बताना मुनासिब होगा कि डिस्टिलरी सिंडीकेट में शामिल 8 कंपनियां पहले से ही सीएस1 बी लाइसेंस धारक हैं। टेंडर नियम में बदलाव इन्हीं 8 कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया। मप्र में डी1 लाइसेंस धारक दो डिस्टिलरी ऐसे भी है जिन्होंने सीएस1 बी के लिए आबकारी विभाग में महीनों से आवेदन कर रखे हैं, लेकिन सिंडीकेट को फायदा पहुंचाने और टेंडर प्रक्रिया से इन्हें बाहर रखने के लिए जानबूझकर लाइसेंस नहीं दिए गए। मजे की बात यह भी है कि विभाग सीएस1बी लाइसेंस के आवेदनों को अब मंत्री तक भेजता है जबकि पूर्व में 8 कंपनियों को आबकारी आयुक्त के स्तर पर ही लाइसेंस जारी किए गए थे।
विभाग और शासन इस सिंडीकेट पर इस कदर मेहरबान है कि यह भी लिख डाला कि इसी रेट व शर्तों पर 2018—19 की ही रेट पर टेंडर में सफल हुई कंपनियां चाहे तो 2019—20 में भी सप्लाई जारी रख सकती हैं। इस डिस्ट्लरी वालों को टेंडर में यह भी कह दिया गया है भविष्य में बढती हुई आपूर्ति के लिए उन्हें नए बॉटलिंग इकाईयां भी स्थापित करनी होगी। उल्लेखनीय है कि डी1 लाइसेंस धारक कंपनी अपनी डिस्टिलरी के कैंपस में एक बॉटलिंग यूनिट स्थापित कर सकती है इसके अलावा पूरे प्रदेश में कहीं भी एक अतिरिक्त यूनिट खोलने की इजाजत होती है। नई शर्तो में बॉटलिंग यूनिट की संख्या को खुला छोड़ दिया गया है और बढती हुई आपूर्ति की काल्पनिक अवधारणा के आधार पर नई बॉटलिंग इकाईयां स्थापित करने की छूट दे दी गई।
नए खिलाड़ी को फार्म तक नहीं दिया

आबकारी विभाग की सिंडीकेट पर इस कदर मेहरबान रहा कि टेंडर डालने के इच्छुक सिंडीकेट से बाहर की कंपनी डीसीआर डिस्टिलर प्राइवेट लिमिटेड सागर को टेंडर फार्म तक नहीं दिया। जबकि इस कंपनी ने विधिवत 25,000 रुपए का ड्राफ्ट टेंडर फार्म के लिए विभाग में जमा करा दिया था।
सूत्रों ने बताया कि सिंडीकेट का एकछत्र करोबार तोड़ने केे लिए नए कारोबारी निर्धारित दरों से भी कम पर टेंडर डालने के तैयारी में थे। अगर कम दरों पर टेंडर मंजूर होता तो शासन को साल भर में कई सौ करोड़ का फायदा होता

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