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आत्म-विश्वास से लबरेज हैं पनारी गाँव की महिलाएँ
नरसिंहपुर जिले के ग्राम पनारी की महिलाओं में नई चेतना का संचार हुआ है। घर की चारदीवार में रहने वाले ये महिलाएँ आज आगे बढ़कर नवोदय स्व-सहायता समूह से जुड़कर स्व-रोजगार के माध्यम से अपने परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं। कल तक बात करने में भी झिझकने वाली ये महिलाएँ आज आत्म-विश्वास से सराबोर हैं। पनारी की लीलाबाई प्रजापति को करीब डेढ़ साल पहले आजीविका मिशन के समूह प्रेरक देवीप्रसाद कुशवाहा ने स्व-सहायता समूह के बारे में जानकारी दी। लीलाबाई भी समूह से जुड़ गईं और छोटी-मोटी बचत करने लगीं हैं। लीलाबाई ने 15 हजार रुपये का ऋण लेकर अपने खपरैल के घर में ही रेडीमेड कपड़ों की दुकान खोली है। दुकान में बच्चों के कपड़े, सलवार सूट, पेंट-शर्ट आदि कपड़े रखती हैं। कपड़ों की क्वालिटी अच्छी एवं दाम वाजिब होने से बिक्री भी खूब होती है। अब लीलाबाई अपने पिता राजकुमार की मदद भी करने लगी है। उसके पिता भी साइकिल पर फेरी लगाकर गाँव-गाँव में रेडीमेड कपडे बेचते हैं। लीलाबाई को लगभग 6 हजार रुपये प्रति माह की आमदनी हो रही है। उसके समूह में 10 महिला सदस्य हैं और समूह के काम को देखते हुए सेंट्रल मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक में समूह की एक लाख रुपये तक की क्रेडिट लिमिट भी बन गई है। समूह को 20 हजार रुपये का बैंक ऋण प्राप्त हो चुका है। आजीविका मिशन के विद्याभारती ग्राम संगठन ने भी समूह को 50 हजार रुपये का ऋण दिया है। लीलाबाई अब समूह के सचिव का काम देखती हैं।शबाना ने खोला चिकन सेंटर:- नवोदय समूह की सदस्य शबाना सादिक ने आजीविका मिशन के माध्यम से 20 हजार रुपये का ऋण लेकर गाँव में ही चिकन सेंटर खोला है। आसपास के गाँव में चिकन सेंटर नहीं होने से शबाना का चिकन सेंटर अच्छा चल रहा है। उसके सेंटर से शाहपुर, सिहोरा, पनारी, कल्याणपुर के हाट-बाजार समेत अन्य गाँव में भी चिकन सप्लाई किया जा रहा है। शबाना को अपने चिकन सेंटर से 5 हजार रुपये तक की मासिक आमदनी हो जाती है। सितारा बी ने पाली बकरियाँ:- समूह की सितारा बी ने करीब डेढ़ साल पहले आजीविका मिशन की सहायता से 15 हजार रुपये का ऋण लेकर बकरी-पालन शुरू किया था। उनकी बकरियों की संख्या आज 4 से बढ़कर 7 हो गई है। मुनाफे को देखते हुए सितारा बी बकरियों की और संख्या बढ़ाने के प्रयास कर रही हैं।मुन्नीबाई के मिट्टी के खिलौने हुए लोकप्रिय:- गाँव की मुन्नीबाई पहले मजदूरी करती थीं। स्व-सहायता समूह से जुड़ने के बाद मिट्टी के बर्तन, खिलौनी, दीपक, मूर्ति आदि बनाने लगी हैं। इससे उन्हें संतोष भी मिलता है और जब लोग उनके काम को सराहते हैं तो अच्छा भी लगता है। मुन्नीबाई को मजदूरी से मुक्ति मिल गई है। अब आत्म-निर्भर हो गई है मुन्नीबाई।
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