मध्य प्रदेश पुलिस से फायर सर्विस को करीब डेढ़ दशक पहले लेकर नगरीय प्रशासन विभाग को सौंप दिया गया था लेकिन अपने अनचाहे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की पोस्टिंग करने के लिए इस पर कुंडली मारकर पुलिस बैठी थी। जानिये पुलिस के फायर सर्विस पर काबिज रहने से क्या हुआ और किन-किन अधिकारियों को इस अनचाही पोस्ट पर बैठाकर रखा गया।
मध्य प्रदेश में पुलिस फायर सर्विस को राज्य शासन ने 2010 में नगरीय प्रशासन को सौंप दिया था और यहां डाइन कैडर घोषित करते हुए उसके बाद कोई भर्ती नहीं की गई थी। मगर इसके बाद भी पुलिस के जिन आला अधिकारियों पुलिस मुख्यालय से दूर रखने की राज्य शासन की कोशिश रहती थी तो फायर सर्विस में पदस्थ कर दिया जाता था। आला अधिकारी को पदस्थापना के बाद उनका वेतन पुलिस मुख्यालय के किसी अन्य पद के विरुद्ध निकाला जाता था। पुलिस 15 सालों से अपने ऐसे अधिकारियों को समायोजित करने के लिए फायर सर्विस जैसे पद को अपने कब्जे में करके रखी थी। इस पद पर अशोक दोहरे से लेकर शैलेष सिंह, अरुणा मोहन राव, विजय कटारिया तक को पदस्थ किया गया था और शिवराज सरकार ने 1994 बैच के आशुतोष राय को यहां पदस्थ कर दिया था। अब जाकर इस पद को पूरी तरह से नगरीय प्रशासन विभाग को सौंपते हुए आशुतोष राय को पुलिस मुख्यालय में पदस्थ कर दिया गया है। मगर पुलिस के पास रहने और डाइन कैडर घोषित कर दिए जाने के बाद पुलिस फायर सर्विसेज में भर्ती प्रक्रिया बंद रही। इससे पदों की रिक्तता बढ़ती गई और स्टाफ की अब कमी हो गई है जो अब भर्ती शुरू होने पर धीरे-धीरे खत्म होगी। मगर इससे सीनियर व अनुभवी फायर कर्मियों की कमी की पूर्ति नहीं सकेगी।
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