-
दुनिया
-
UNO के आह्वान पर JAYS ने मनाया विश्व आदिवासी दिवस, जल, जंगल और जमीन के प्रति जागरूक हुए आदिवासी
-
बागेश्वर सरकार की ज़िंदगी पर शोध करने पहुची न्यूजीलैंड के विश्वविद्यालय की टीम
-
Rahul Gandhi ने सीजफायर को BJP-RSS की सरेंडर की परंपरा बताया, कहा Modi करते हैं Trump की जी हुजूरी
-
ऑपरेशन सिंदूर ने बताया आतंकवादियों का छद्म युद्ध, प्रॉक्सी वॉर नहीं चलेगा, गोली चलाई जाएगी तो गोले चलाकर देंगे जवाब
-
मुंबई-दिल्ली एक्सप्रेस-वे पर कामलीला, नेताजी की महिला शिक्षक मित्र संग आशिकी का वीडियो वायरल
-
विजयपुर उपचुनाव का परिणाम कुछ भी रहे मगर सिंधिया की रामनिवास के चुनाव प्रचार से दूरी के राजनीतिक मायने हुए साफ

मध्य प्रदेश विधानसभा के बुदनी-विजयपुर उपचुनावों में प्रत्याशियों का भविष्य ईवीएम मशीनों में बंद हो गया और परिणाम कुछ भी रहे लेकिन इन उपचुनावों से भाजपा-कांग्रेस में कुछ राजनीतिक मायने एकदम साफ हो गए हैं। भाजपा में जहां केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रत्याशी व कांग्रेस में उनके समर्थक रहे रामनिवास रावत से रिश्तों से पर्दा हट गया है तो वहीं कांग्रेस में जीतू पटवारी की रबर स्टाम्प प्रदेश अध्यक्ष की छवि का जमकर प्रचार हुआ है। पढ़िये रिपोर्ट।
विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस को जबरदस्त हार मिलने के बाद विधानसभा क्षेत्र बुदनी से शिवराज सिंह चौहान और विजयपुर से रामनिवास रावत के इस्तीफों के बाद हाल ही में उपचुनाव हुए हैं। उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस ने जमकर प्रचार किया जिसके परिणाम 23 नवंबर को सामने आएंगे लेकिन इन उपचुनावों में प्रत्याशी चयन से लेकर चुनाव प्रचार तक दोनों ही पार्टियों के कुछ नेताओं की कूटनीतिक छवि बिलकुल साफ हो गई है। वे किस दिशा में और किसके साथ या किसके खिलाफ खड़े हैं, इन उपचुनावों ने स्पष्ट कर दिया है।
रावत के साथ नहीं देने से नाराजगी आज भी
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया 2020 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार से नाराज होकर भाजपा में गए थे तो उस समय उनके समर्थकों ने मंत्री पद तक त्यागकर उनका साथ दिया था। मगर उस दौरान रामनिवास रावत जैसे उनके विश्वस्त साथी ने विधायक नहीं होने के बाद भी उनका साथ नहीं दिया था और कांग्रेस में बने रहे थे। सिंधिया के साथ नहीं जाने पर उन्हें कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उपकृत किया गया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने उन्हें साथ रखा मगर 2023 विधानसभा चुनाव में जीत के बाद उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से दूर रख दिए जाने पर वे मुरैना लोकसभा उपचुनाव के दौरान भाजपा में चले गए। वहां, भाजपा प्रदेश नेतृत्व ने उन्हें हाथों हाथ लिया मगर सिंधिया को संभवतः 2020 की परिस्थितियों में उनके साथ नहीं देने की टीस मन ही मन कटोचती रही। यह टीस रावत के उपचुनाव में सामने आ गई जब उन्होंने खुद को विजयपुर उपचुनाव के प्रचार से दूर रखा। रावत के फोन करने पर कोई जवाब नहीं देने तक के हालात बने जो अब सुर्खियां भी बन रहे हैं। सिंधिया-रावत के रिश्तों पर डला पर्दा उपुचनाव में हट सा गया है।
कांग्रेस में रबर स्टाम्प प्रदेश अध्यक्ष की छवि
बुदनी-विजयपुर उपचुनावों में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के रबर स्टाम्प की तरह काम करने की छवि पर लगभग मोहर सी लग गई। राजकुमार पटेल के बुदनी से प्रत्याशी बनाए जाने का फैसला पटवारी का नहीं माना जा रहा है बल्कि इसे दिग्विजय सिंह का बताया जा रहा है और प्रत्याशी के ऐलान के साथ पटेल परिवार के अब तक चुनाव लड़ने व जीतने के आंकड़ों के साथ पार्टी में कार्यकर्ताओं ने चटखारे लेकर चर्चा की। बुदनी ही नहीं विजयपुर विधानसभा सीट के चुनाव की जिम्मेदारी ग्वालियर-चंबल के वरिष्ठ नेताओं को देने के बजाय एक दशक के राजनीतिक अनुभव वाले दिग्विजय सिंह के विधायक पुत्र जयवर्धन सिंह को दिए जाने पर भी पार्टी में असंतुष्ट नेताओं के बीच चर्चा जोरों पर रही। पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह जैसे नेता को उपेक्षित किया गया और उन्हें विजयपुर विधानसभा चुनाव में जिम्मेदारी नहीं दी गई। यानी बुदनी हो या विजयपुर दिग्विजय सिंह ने अपने फैसलों को कराने में कूटनीतिक चालों से कामयाबी हासिल की।
Leave a Reply