आदिवासियों के नेता और पूर्व मंत्री उमंग सिंगार ने आदिवासी विकास परिषद की प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में हुई बैठक में आदिवासियों की हिस्सेदारी का मुद्दा उठाया और कहा कि आदिवासी 122 विधानसभा सीटों पर किसी भी प्रत्याशी को जिताने या हराने की क्षमता रखते हैं। आदिवासी भीख नहीं अपनी हिस्सेदारी चाहता है। इसलिए उनकी हिस्सेदारी जनसंख्या पर आधारित होना चाहिए।
प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आदिवासी विकास परिषद की बैठक में जब उमंग सिंगार ने अपनी बात रखी तो कई बार हॉल में तालियां बजीं। आदिवासी विकास परिषद के संस्थापक पोर्ते और अन्य पूर्व आदिवासी नेताओं प्यारेलाल कंवर, उर्मिला सिंह, जमुना देवी को याद किया। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी सिंगार का पूरा भाषण नीचे सिर करके नोट्स बनाते हुए ध्यान से सुना।
आदिवासियों के हाथ में सत्ता की चाबी
सिंगार ने जोशीले भाषण में कहा कि आदिवासी भोलाभाला है और वह तीर रखता है, घर में रखने के लिए नहीं बल्कि कमान पर चढ़ाने के लिए। अभी आदिवासी ठंडा और उसे गर्माने की जरूरत है। सिंगार ने प्रदेश प्रभारी जयप्रकाश अग्रवाल, दिग्विजय सिंह व अन्य वरिष्ठ नेताओं, आदिवासी जनप्रतिनिधियों के बीच कहा कि मध्यप्रदेश में आदिवासियों की जनसंख्या 21 पर्सेंट है 122 विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं। राज्य की सत्ता की चाबी भी आदिवासियों के हाथों में हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि हमारी हिस्सेदारी भी जनसंख्या के आधार पर होनी चाहिए।
कहानी राजा-महाराज की, आदिवासियों का इतिहास लिखा जाता है
बैठक में पूर्व मंत्री ने कहा कि हम आदिवासी भीख नहीं मांगते, सत्ता और संगठन में अपनी हिस्सेदारी चाहता है। वह अपने गांव का विकास चाहता है। आदिवासी का प्रभाव आरक्षित 47 सीटों पर ही नहीं है बल्कि 122 सीटों पर आदिवासी मतदाता जिताने और हराने का माद्दा रखते है। सिंगार ने कहा कि पेसा एक्ट क्रियान्वयन से अधिक जरूरी है छठी अनुसूची के प्रावधानों को मध्य प्रदेश में लागू किया जाए क्योंकि छठी अनुसूची के प्रावधान में ही आदिवासियों के संरक्षण समाहित है। बीजेपी ने पैसा कानून के नाम पर सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करके अपने लोग हर बूथ पर खड़े किए हैं। पैसा कानून में कोई अधिकार नहीं दिया आदिवासी को बूथ पर बैठे लोग भाजपा के एजेंट हैं, उन्हें हटा दिया जाए, मैं इस परिषद के माध्यम से यह बात कहना चाहता हूं। अगर हमारा कार्यकरता हमारे लिए लड़ता है तो मैं उसके लिए जेल जाने के लिए भी तैयार हूँ । इस पंक्ति के साथ अपने भाषण का समापन किया कि ‘कहानियां तो राजा-महाराजाओं की लिखी जाती है, हम तो आदिवासी हैं हमारा इतिहास लिखा जाता है।’
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