मध्य प्रदेश में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का कार्यकाल समाप्त होने के कई महीनों बाद अब नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी हो चुकी है मगर 36 घंटे पहले तक सस्पेंस बरकरार है। नए अध्यक्ष की ताजपोशी के लिए केंद्रीय नेतृत्व ने भले ही नाम तय कर रखा हो मगर कयासों का दौर ऐसा चल रहा है कि कई नेताओं के नाम चर्चा में आ चुके हैं और जिनके नाम चर्चा में हैं, वे न सही मगर उनके समर्थकों के सीने में खुशी हिचकोले ले रही है। आईए पढ़िये भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव और इस पद की दौड़ में चर्चा में आए नामों पर रिपोर्ट।
भाजपा में केंद्रीय नेतृत्व हो या प्रदेश या फिर सरकार में आने पर केंद्र हो या राज्य, कोई यह दावे से नहीं कह सकता है कि फलां व्यक्ति को कौन सी जिम्मेदारी दी जा रही है। पार्टी में पिछले करीब डेढ़ दशक से चौंकाने वाले निर्णय सत्ता व संगठन दोनों ही स्तर पर देखे जा चुके हैं। कुछ समय पहले तक इन फैसलों का विरोध करने से पार्टी के भीतर नेता बचते रहे हैं लेकिन सोमवार को तेलंगाना में प्रदेश अध्यक्ष के नाम के ऐलान के बाद राज्य में विरोधों के स्वर से मध्य प्रदेश में केंद्रीय नेतृत्व पर सोच-विचार के बाद फैसले लेने का दबाव हो सकता है।
प्रदेश में पार्टी के शक्ति केंद्र
मध्य प्रदेश में भाजपा के दो दशकों से ज्यादा समय से सत्ता में रहने की वजह से मूल भाजपा कार्यकर्ताओं से ज्यादा संख्या दूसरे दलों से आए नेताओं व कार्यकर्ताओं की हो गई है। दूसरे दलों से आने वाले नेताओं का भी पार्टी में दबदबा व दखल बढ़ा है। पार्टी में वैसे भी लंबे समय तक सत्ता की वजह से कई नेता शक्ति का केंद्र बने और उनके समर्थकों की संख्या में उसी हिसाब से बढ़ी है। 18 साल तक सीएम रहने वाले केंद्रीय शिवराज सिंह चौहान का नाम सबसे पहले लिया जा सकता है क्योंकि उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़े जाने के बाद उन्हें सीएम की कुर्सी नहीं दिए जाने से समर्थकों में जो निराशा थी वह अब तक गुस्से के रूप में बाहर नहीं निकली है। यही वजह है कि शिवराज सिंह अभी भी अपने हिसाब से मध्य प्रदेश में राजनीति करते रहते हैं और सत्ता या संगठन ने उन्हें अब तक किसी प्रकार टोका टाकी नहीं की है।
दूसरे शक्ति केंद्र विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर हैं जिन्हें केंद्रीय मंत्री से राज्य की राजनीति में भेजकर शिवराज सिंह चौहान को सीएम नहीं बनाए जाने के बाद भी सीएम की कुर्सी नहीं दी गई। मगर तोमर की राज्य की राजनीति में पकड़ को केंद्रीय नेतृत्व नजरअंदाज नहीं कर सकता और आज भी उनके प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल व केंद्रीय कृषि मंत्री के कार्यकाल को याद किया जाता है।
तीसरा शक्ति केंद्र मालवा की राजनीति की अगुवाई करने वाले मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, जिन्हें केंद्रीय नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल जैसे संवेदनशील राज्य का प्रभारी महासचिव बनाकर आंका है। हालांकि अभी उन्हें केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य की राजनीति में वापस भेजकर उन्हें न केवल झटका दिया बल्कि शिवराज सिंह चौहान के विकल्प के रूप में उनका सीएम बनने का सपना भी पूरा नहीं होने दिया।
चौथे शक्ति केंद्र हैं पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा जो विधानसभा चुनाव के पहले तक अपने आपको काफी ताकतवर मानते थे लेकिन चुनावी हार ने न केवल उन्हें हतोत्साहित किया बल्कि केंद्रीय नेतृत्व के कई फैसलों में उनके नाम को नजरअंदाज किए जाने से निराश किया।
पांचवें शक्ति केंद्र पूर्व कांग्रेस नेता और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, जिनकी वजह से कांग्रेस ग्वालियर-चंबल संभाग में अपने संगठन को आज तक खड़ा नहीं पाई है। हालांकि उनके साथ भाजपा में आए तत्कालीन विधायकों व नेताओं का वजन आज भाजपा में उतना नहीं है जितना 2020 में कमलनाथ सरकार को गिराने और शिवराज को सीएम बनाने पर हुआ करता था।
36 घंटे पहले भी सस्पेंस
सोमवार को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद दो जुलाई को दोपहर दो बजे नए अध्यक्ष के नाम का ऐलान करने का कार्यक्रम घोषित किया गया। मगर 36 घंटे पहले भी कौन पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष होगा, इसको लेकर सस्पेंस बरकरार है। कयासों के बीच कई नेताओं के नाम चर्चा में जरूर हैं जिससे उनकी हरेक गतिविधि की सोशल मीडिया पर चर्चा भी है। जो नाम चर्चा में हैं, उनमें सबसे ऊपर बैतूल जिले के दो नेताओं का है। इनमें पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष व वर्तमान विधायक हेमंत खंडेलवाल सबसे ज्यादा सोशल मीडिया में ट्रेंड में हैं तो उनके ही जिले का दूसरा नाम केंद्रीय मंत्री दुर्गादास उइके का है। इनकी गतिविधियों पर ऐसी नजर रखी जा रही है कि जब वे एक ही गाड़ी से भोपाल आए तो सोशल मीडिया में उनकी खबर वायरल हो गई। तीसरा नाम गजेंद्र पटेल तो चौथा नाम महिला सांसद कविता पाटीदार व पांचवां नाम नरोत्तम मिश्रा का है जो उनके चुनाव हारने के बाद से ही चर्चा में है। एक अन्य नाम चर्चा में है जो पूर्व मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया का है और यह नाम भी उनके चुनाव हारने के बाद से ही चर्चा में है। मगर जैसा ही ऊपर हमने बताया कि करीब डेढ़ दशक से पार्टी सत्ता व संगठन दोनों ही मामलों में चौंकाने वाले फैसले लेती रही है और मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कमान सौंपने में भी उसके ऐसी ही चौंकाने वाले निर्णय से कोई इंकार नहीं कर सकता है। देखिये दो जुलाई को मध्यान्ह के बाद भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई को कौन सा चेहरा मिलेगा जो संगठन का झंडा लेकर चलेगा।
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