मध्य प्रदेश विधानसभा के 1956 में गठन के बाद करीब साढ़े दशक तक विधानसभा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सदन की शोभा रहे। 1956 में यह संख्या एक तिहाई से ज्यादा थी लेकिन धीरे-धीरे यह कम होती गई। शताब्दी गुजरने के बाद बाबूलाल गौर जैसे चुनिंदा ऐसे सदस्य बचे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में कोई योगदान दिया था। आईए जानिये आजादी दिलाने में योगदान देने वाले किन लोगों ने आजाद हिंदुस्तान के मध्य प्रदेश में विधानसभा में बैठकर उसकी शोभा में चार चांद लगाए।
मध्य प्रदेश विधानसभा में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के सदस्य की भूमिका में पहुंचे नेताओं पर हमारी रिपोर्ट जनसंपर्क के उप संचालक प्रलय श्रीवास्तव की मध्य प्रदेश में चुनाव और नवाचार पुस्तक के संदर्भ पर आधारित है। एमपी गठन के बाद 1956 में पहली विधानसभा बनी जिसमें करीब 40 फीसदी विधायक ऐसे रहे जिन्होंने भारत को आजाद कराने में किसी न किसी रूप में योगदान दिया था। इंदौर के व्यंकटेश विष्मु प्रवीण, देपालपुर के कन्हैयालाल खादीवाला, आगर के कुसुमकांत जैन, तराना के रामेश्वर दयाल तोतला, बागली के मिश्रीलाल गंगवाल, शाजापुर के किशनलाल मालवीय, कुरवाी के कुंवर राम सिंह, भिंड के नरसिंहराव दीक्षित, सीताराम जाजू, मथुराप्रसाद दुबे के नाम प्रमखतया गिने जा सकते हैं।
दूसरी विधानसभा में 95 सदस्यों ने आजादी दिलाने लड़ाई लड़ी
मध्य प्रदेश की दूसरी विधानसभा 1962 से 1967 की रही जिसमें 289 सदस्यों में से 95 विधायक ऐसे थे जिन्होंने किसी न किसी रूप में गुलाम भारत को आजाद भारत का दर्जा दिलाने में लड़ाई लड़ी। ऐसे लोगों में दूसरी बार चुनकर जाजू, तोतला, नरसिंहराव, मथुराप्रसाद चुनकर पहुंचे तो विश्वनाथ आयाचित, स्वामी कृष्णानंद, कुंजबिहारीलाल गुरू, केशवलाल गुमाश्ता, भोपाल राव पवार, श्यामसुंदर मुश्रान, आनंदराव मंडलोई, शंभुनाथ शुक्ल, भगवतरात मंडलोई, डॉ. कैलाशनाथ काटजू, दीपचंद गोठी भी विधानसभा सदस्य बने। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में एक नाम कुंजीलाल दुबे का भी था जो विधानसभा अध्यक्ष बने थे।
तीसरी विधानसभा में सीएम मिश्र से लेकर शंकरदयाल शर्मा तक पहुंचे
तीसरी विधानसभा में 289 में से 100 विधायक ऐसे रहे जो आजादी की लड़ाई में उतरे और इनमें से कई ने तो एक नहीं कई बार जेल की सलाखों पर देश को आजाद कराने के लिए सजा भोगी। आजाद की लड़ाई में भाग लेने वाले तीसरी विधानसभा के सदस्यों में नाथूराम अहिरवार, वेदराम, मथुराप्रसाद, विनयकुमार दीवान, लक्ष्मीनारायण नायक, श्यामसुंदर पाटीदार, बाबूलाल चतुर्वेदी, रामचंद्र बाजपेई, बिसाहूदास महंत, काका काशी प्रसाद पांडे, गंगाराम तिवारी, चंद्रप्रताप तिवारी, गुलाबचंद तामोट, चित्रकांत जायसवाल, मूलचंद जागंड़े, ठाकुर जगपति सिंह, कृष्णपाल सिंह, देवप्रसाद आर्य, गौतम शर्मा जैसे नाम शामिल रहे। इस विधानसभा में पथरिया के रामेश्वर अग्निभोज ऐसे सदस्य थे जिन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन और नमक सत्याग्रह में अंग्रेजों के बेंत की सजा भुगती तो उस समय के मुख्यमंत्री पं. द्वारकाप्रसाद मिश्र ने तो अंग्रेजों का विरोध करते हुए सात बार जेल की सजा काटी थी। आजाद के लिए अलख जगाने में योगदान देने वाले भोपाल के शंकरदयाल शर्मा और खान शाकिर अली खान ने इस विधानसभा के सदस्य रहे।
चौथी विधानसभा के अध्यक्ष कुंजीलाल दुबे ने आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारी भूमिका निभाई
चौथी विधानसभा का कार्यकाल 1967 से 1972 का रहा जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संख्या में कमी आना शुरू हुई। हालांकि इसमें कुंजीलाल दुबे, श्यामाचरण शुक्ल, बिसाहूदास महंत, हरिप्रसाद शुक्ल, महेंद्र कुमार मानव, हरिप्रसाद चतुर्वेदी, गुलाबचंद तामोट, चित्रकांत जायसवाल, कृष्णपाल सिंह, कुंजबिहारीलाल गुरू, काका काशी प्रसाद पांडे के नाम प्रमुख रहे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में जिस जोश-जुनून के साथ भाग लिया, उसी तरह आजाद हिंदुस्तान की मध्य प्रदेश विधानसभा में सदस्य के रूप में जनसामान्य के मुद्दों को उठाया।
पांचवीं विधानसभा में अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले सत्येंद्र मिश्र भी विधायक बने
पांचवीं विधानसभा 1972-77 के कार्यकाल में फ्रीडम फाइटर के पहुंचने वालों की संख्या कम हुई लेकिन इसमें जो लोग पहुंचे उसमें सत्येंद्र मिश्र उल्लेखनीय नाम रहा। उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम करने के लिए पुल उड़ाए, तार काटकर आजादी दिलाने का रास्ता अपनाया लेकिन गांधीजी के कहने पर उन्होंने जबलपुर में आत्मसमर्पण किया। भारत छोड़ो आंदोलन की बैतूल में शुरुआत करने वाले रामजी महाजन भी इस विधानसभा में पहुंचे तो 1930 से 1942 के बीच साढ़े तीन साल जेल की सजा काटने वाले सवाईमल जैन भी पांचवीं विधानसभा के सदस्य बने। इस विधानसभा में कुंजबिहारी गुरू, कृष्णपाल सिंह, गुलाबचंद तामोट जैसे फ्रीडम फाइटर फिर पहुंचे तो अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में ज्वालाप्रसाद ज्योतिषी, दशरथ जैन, होमी दाजी, रोहणी कुमार बाजपेई के नाम प्रमुख हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाले प्रकाशचंद सेठी उस समय मुख्यमंत्री बने थे।
गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लेने वाले गौर पहुंचे छठवीं विधानसभा में
छठवीं विधानसभा 1977-80 के बीच रही जिसमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संख्या सिमट गई लेकिन तब भी गोवा मुक्ति आंदोलन में भाग लेने वाले बाबूलाल गौर जैसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने विधानसभा की शोभा बढ़ाई। गौर के अलावा उस विधानसभा में शिवप्रसाद चनपुरिया, जाहर सिंह शर्मा, रामलाल चंद्राकर, जंगबहादुर सिंह, प्रभूनारायण टंडन, मुकुंद सखाराम नेवालकर भी विधानसभा सदस्य रहे। क्विट इंडिया मूवमेंट और करो या मरो आंदोलन में भाग लेने वाले नेवालकर तो विधानसभा अध्य़क्ष भी बने। सातवीं विधानसभा में गौर, मथुराप्रसाद दुबे, श्यामसुंदर नारायण मुश्रान, वेदराम के अलावा वासुदेव चंद्राकर, श्रीमती चंपादेवी, रघुनाथ प्रसाद वर्मा, रामचंद्र बाजपेई तो आठवीं विधानसभा में सत्येंद्र प्रसाद मिश्र, गौर, रामजी महाजन, जाहर सिंह शर्मा सहित जगदम्बा प्रसाद निगम, दुर्गाप्रसाद सूर्यवंशी, अनंतराम वर्मा, रेशमलाल जांगड़े, नर्बदा प्रसाद श्रीवास्तव, सुखीराम, रणवीरसिंह शास्त्री भी विधायक बने। इसके बाद 14वीं विधानसभा तक इक्का-दुक्का फ्रीडम फाइटर स्वतंत्रता आंदलोन का हिस्सा रहे नेताओं ने विधानसभा की शोभा बढ़ाई।
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