मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 की आहट तेजी से सुनाई देने लगी है क्योंकि भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही घोषणाएं और वादे करने के लिए मैदान में उतर आए हैं। हम आपको मध्य प्रदेश की राजनीति में 1957 से लेकर अब तक की रोचक तथ्यात्मक जानकारी लेकर दूसरे दिन हाजिर हैं जिसमें मध्य प्रदेश में चुनाव और नवाचार पुस्तक और अन्य संदर्भों का सहारा लिया जा रहा है। पेश है आज मध्य प्रदेश की राजनीति में कब-कौन सी तीसरी पार्टी शक्तिशाली रही।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव पहली बार 1957 में हुए जबकि राज्य का गठन नवंबर 1956 में हो गया था। पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2018 के विधानसभा चुनाव तक का राजनीतिक सफर मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा या उसकी पुरानी पहचान जनसंघ का ही दबदबा रहा। पहली विधानसभा में सदस्य संख्या 288 रही जो 1962 में भी वही रही लेकिन इसके बाद 1967 में इसमें आठ सदस्यों का इजाफा हुआ जो 1972 तक 296 विधायक संख्या का रहा। इसके बाद 1977 में विधानसभा सदस्यों की संख्या 320 हो गई जो मध्य प्रदेश राज्य के विभाजन के बाद 2000 में 230 हो गई और 2003 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो 230 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे थे। थर्ड पार्टी के रूप में प्रदेश प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का रिकॉर्ड रहा मध्य प्रदेश गठन के बाद दूसरे विधानसभा चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को भाजपा और जनसंघ के बाद तीसरी पार्टी के रूप में सबसे ज्यादा 33 सीटें मिलीं थीं। यह अब तक तीसरी पार्टी को मिलने वाली सीटों में सबसे ज्यादा है और इसे रिकॉर्ड को अभी तक किसी भी तीसरी पार्टी ने नहीं तोड़ा है। तीसरी पार्टी के रूप में 1957 से लेकर 1972 तक प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का दबदबा रहा था जिसने पहली विधानसभा में 12 तो दूसरी में 33, तीसरी व चौथी विधानसभा में 9-9 सीटें जीतकर कायम किया था। दूसरी विधानसभा में समाजवादी पार्टी ने भी चौथी पार्टी के रूप में आमद दी और 14 सीटें जीती थीं। मगर समाजवादी पार्टी इसके बाद 1998 के पहले तक मध्य प्रदेश की विधानसभा में उपस्थिति नहीं दर्ज करा सकी। 13 साल तीसरी पार्टी विधानसभा में नहीं दिखी एमपी विधानसभा में कांग्रेस-भाजपा (जनसंघ) के अलावा तीसरी पार्टी 1977 से लेकर 1990 तक गायब रहीं। इस बीच तीन विधानसभा चुनाव हुए और तीनों में कांग्रेस-भाजपा (जनसंघ) के ही नेता विधानसभा में सदस्य के तौर पर दिखाई दिए।1990 में तीसरे दल के रूप में मध्य प्रदेश विधानसभा में एक नई पार्टी बहुजन समाज पार्टी की आमद हुई और पहली बार में दो विधानसभा सदस्य जीतकर सदन में पहंचे। इसके बाद बहुजन पार्टी सात विधानसभा चुनाव से विधानसभा में पहुंच रही है। उसने 1993 व 1998 में लगातार दो विधानसभा चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 11-11विधायकों को जिताकर सदन में पहुंचाया है। वहीं, समाजवादी पार्टी 1962 के बाद मध्य प्रदेश में 1998 में फिर विधानसभा में पहुंची और इसके बाद 2003, 2008 में भी उसके क्रमशः सात व एक सदस्य जीते। मगगर 2013 में समाजवादी पार्टी विधानसभा में कोई भी सीट नहीं जीत सकी। अभी 2018 में उसके छतरपुर जिले से चुने गए एकमात्र विधायक विधानसभा के सदस्य हैं। कांग्रेस पांच तो भाजपा-जनसंघ छह बार तीन अंकों तक नहीं पहुंचे यहां एक तथ्य और उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस-भाजपा (जनसंघ) सत्ता में आते जाते रहे हैं लेकिन इन दोनों ही दलों को भी 11 मर्तबा जनता ने ऐसा सबक सिखाया है कि वे तीन अंक के आंकड़ों को छूने के लिए तरस गए। कांग्रेस के साथ ऐसा पांच तो भाजपा-जनसंघ के साथ छह बार हो चुका है। कांग्रेस को 1977 में संयुक्त विपक्ष के रूप में जनता पार्टी ने ऐसी पटखनी दी थी कि वह 84 पर ही सिमट गई थी। िसके बाद कांग्रेस को 1990 में 56, 2003 में 38, 2008 में 71, 2013 में 58 सदस्य संख्या के साथ सदन में बैठना पड़ा था। इसी तरह भाजपा-जनसंघ को भी 1957 में 10, 1962 में 41, 1967 में 78, 1972 में 48 तो 1980 में 60, 1985 में 58 सदस्यों के साथ विधानसभा में बैठना था।
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