MP में गौतम छठवें स्पीकर जिनके खिलाफ आया अविश्वास प्रस्ताव, दो उपाध्यक्ष में आ चुके हैं घेरे में

मध्य प्रदेश विधानसभा के 67 साल के इतिहास में स्पीकर पर अविश्वास जताने के मामले में गिरीश गौतम छठवें विधानसभा अध्यक्ष हैं। स्पीकर के अलावा दो डिप्टी स्पीकरों को भी इस तरह के अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है। मगर अब तक स्पीकर-डिप्टी स्पीकर के सात मामलों में से केवल एक मौका ऐसा आया था जब वोटिंग की स्थिति बनी थी। शेष छह अविश्वास प्रस्ताव सदन में चर्चा तक की स्थिति में पहुंचने के पहले ही आपसी बातचीत से उनका पटाक्षेप हो गया। आज की रिपोर्ट में पढ़िये मध्य प्रदेश विधानसभा के स्पीकर-डिप्टी स्पीकरों के अविश्वास प्रस्तावों का इतिहास।

मध्य प्रदेश का गठन नवंबर 1956 में हुआ था और विधानसभा के पहले अध्यक्ष पंडित कुंजीलाल दुबे बने थे। अविभाजित-विभाजित एमपी की विधानसभा में गिरीश गौतम 18वें स्पीकर हैं और 18 डिप्टी स्पीकर रह चुके हैं। विधानसभा अध्य़क्षों में अभी तक छह बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुका है लेकिन इनमें से दो नेताओं ने दो-दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया है।
पंडित कुंजीलाल दुबेः पहले विधानसभा अध्यक्ष पं. दुबे का पहला और दूसरा कार्यकाल तो बहुत अच्छा गुजरा लेकिन तीसरे कार्यकाल 1962 से 1967 में उन्हें एक नहीं बल्कि दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। पहली बार उनके खिलाफ तीन सितंबर 1965 को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था और दूसरी बार एक अप्रैल 1966 को फिर अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया।
काशी प्रसाद पांडेः काशी प्रसाद पांडे चौथी विधानसभा के 1967 से 1972 के कार्यकाल में अध्यक्ष रहे थे, मगर उनके खिलाफ पांच साल में दो बार अविश्वास प्रस्ताव आया था। पहली बार उनके खिलाफ 17 मार्च 1070 को उन्हें पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो दूसरी बार एक साल बाद ही 5 अप्रैल 1971 को फिर अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया।
पंडित राजेंद्र प्रसाद शुक्लः आठवीं विधानसभा में छत्तीसगढ़ के पं. शुक्ल को अध्यक्ष बनाया गया लेकिन पांच साल के कार्यकाल में उन्हें एक बार पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। पं. शुक्ल के स्पीकर बनने के करीब सवा साल बाद ही उन्हें पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव के संकल्प की सूचना दी गई। मगर बातचीत के बाद संबंधित सदस्यों ने उसे वापस भी ले लिया।
डिप्टी स्पीकरों के दो मामलेः
नर्बदा प्रसाद श्रीवास्तवः श्रीवास्तव तीसरी और चौथी विधानसभा में उपाध्यक्ष रहे। उनके खिलाफ पहली बार में तीसरी विधानसभा में 15 सितंबर 1964 को अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। मगर विचार के बाद उसे अग्राह्य कर दिया गया। हालांकि नर्बदा प्रसाद श्रीवास्तव ने चौथी विधानसभा में उपाध्यक्ष का अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया था।
रामकिशोर शुक्लः शुक्ल चौथी और सातवीं विधानसभा में दो बार उपाध्यक्ष रहे। चौथी विधानसभा में नर्बदा प्रसाद श्रीवास्तव के स्थान पर उन्हें एक साल बाद उपाध्यक्ष बनाया गया था। सातवीं विधानसभा में वे 1980 दूसरी बार डिप्टी स्पीकर बने। हालांकि दूसरे कार्यकाल में कार्यभार संभालने के दो दिन बाद ही 18 सितंबर 1980 अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। अविश्वास प्रस्ताव सदन में चर्चा के बाद अस्वीकृत भी हो गया था।

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