मध्य प्रदेश में भले ही आर्थिक, पद के दुरुपयोग और अनुपातहीन संपत्ति जैसे अपराधों की खबरें समाचार पत्रों में बड़ी सुर्खियां बन रही हैं मगर लोकायुक्त की विशेष पुलिस स्थापना के आंकड़ें राज्य में भ्रष्टाचार में कमी बता रहे हैं। रिश्वतखोरी से लेकर अनुपातहीन संपत्ति के घेरे में सरकारी अमला लगभग रोज ही आने की खबरें बनती हैं मगर लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना के आंकड़ों में सरकार के दावों की पोल खुल रही है। पढ़िये रिपोर्ट।
विधानसभा में कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल के एक प्रश्न के जवाब में घिर गई है। इस प्रश्न में बताया गया कि लोकायुक्त में 2018 से 2025 के बीच शिकायतों में कमी आई है जिसके मुताबिक सात साल के भीतर लोकायुक्त पुलिस में 2019 के बाद से सात साल में शिकायतों की संख्या 35 हजार 434 रही है जो सात साल में साढ़े नौ प्रतिशत बढ़ा है।
जांच की कोई औसत अवधि तय नहीं
विधायक प्रताप ग्रेवाल के प्रश्न के जवाब में गृह विभाग की ओर से बताया गया कि लोकायुक्त में शिकायत मिलने के बाद जांच प्रकरण दर्ज करने की औसत अवधि निर्धारित नहीं है तथा जांच प्रकरण उपरांत अपराधिक प्रकरण दर्ज करने की औसत अवधि बताया जाना संभव नहीं है। ग्रेवाल ने कहा- सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट कहना है कि “जस्टिस डीले जस्टिस डिनाय” न्याय में विलंब न्याय से इनकार है। इतनी लम्बी अवधि में न्याय से शिकायत का मकसद ही ख़त्म हो जाता है। ग्रेवाल ने कहा- निराकरण में हो रही देरी के कारण लोकायुक्त में शिकायतें लगातार घट रहीं हैं। यानी कि लोगों का भरोसा लोकायुक्त से कम हो रहा है।
साल 2019-2020 में 5508 शिकायतें मिलीं। कोरोना काल 2020-2021 में 4899 शिकायत लोकायुक्त के पास पहुंची थीं। 2024-2025 में घटकर मात्र 4225 शिकायतें मिलीं हैं। ग्रेवाल ने कहा कि साल 2019 में रिश्वत के 244 मामले में आपराधिक प्रकरण दर्ज हुए थे। वहीं, 2024 में 196 प्रकरण दर्ज हुए और पद के दुरुपयोग के 45 प्रकरणों की तुलना में मात्र 26 प्रकरण दर्ज हुए। अनुपातहीन संपत्ति के 29 प्रकरणों की तुलना में मात्र 15 प्रकरण दर्ज हुए।
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