मध्य प्रदेश के वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारी पुरुषोत्तम शर्मा को सरकार ने वीआरएस देने से इनकार कर दिया है। अब वे राज्य शासन के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। शर्मा के खिलाफ शासन ने जांच का हवाला देते हुए वीआरएस देने से मना कर दिया है। पढ़िये शासन और आईपीएस शर्मा के तर्कों पर आधारित रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारी पुरुषोत्तम शर्मा को करीब तीन साल पहले 27 सितंबर 2020 को निलंबित किया था और इसके बाद उनके खिलाफ दो विभागीय जांच शुरू की थीं। पहली विभागीय जांच पत्नी के साथ मारपीट का वीडियो वायरल होने पर घरेलू हिंसा की थी तो दूसरी लोक अभियोजन में पदस्थापना के दौरान कर्मचारियों के अटैचमेंट के आदेश जारी करने की थी। इसके बाद काफी समय तक निलंबित रहे और उन्होंने हाईकोर्ट में सरकार के खिलाफ याचिका लगाई थी।
कोर्ट के आदेश पर बहाली हुई
पुरुषोत्तम शर्मा को कोर्ट से राहत मिली थी। राज्य शासन ने उनकी बहाल कर दिया था लेकिन काफी समय तक काम नहीं दिया था। फिर उन्हें कक्ष आवंटित किया गया लेकिन विशेष काम नहीं होने से पुरुषोत्तम शर्मा ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के लिए राज्य शासन को पत्र लिख दिया था। इस पत्र पर करीब तीन सप्ताह तक विचार के बाद आज राज्य शासन ने उसे जांच का तर्क देते हुए वीआरएस देने से इनकार कर दिया है।
सिविल सर्विस कंडक्ट रूल में वीआरएस पर रोक नहीं
आईपीएस पुरुषोत्तम शर्मा ने राज्य शासन के इस आदेश के बाद खबरसबकी डॉटकॉम से चर्चा करते हुए बताया कि सिविल सर्विस कंडक्ट रूल में कहीं भी वीआरएस से रोक का नियम नहीं है। बल्कि कंडक्ट रूल में कहा गया है कि वीआरएस के आवेदन पर तुरंत राज्य शासन को फैसला करने का प्रावधान है और इसके बाद अगर अधिकारी का निलंबन भी होता है तो भी वीआरएस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पेंशन जरूर पूरी नहीं मिल सकती। शर्मा ने कहा कि राज्य शासन के फैसले के खिलाफ बुधवार को हाईकोर्ट में जाएंगे। उन्होंने कहा कि अभी तक राज्य शासन ने उन्हें विभागीय जांच में कोई आरोप पत्र तक नहीं दिया है।
Leave a Reply