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E-टेंडर घोटाले में अदालत से क्लीनचिट मगर विवेचना से जुड़े अफसरों पर तलवार, पढ़िये पर्दे के पीछे कौन

मध्य प्रदेश के बहुचर्चित ई-टेंडर घोटाले में भले ही आरोपियों को अदालत से क्लीनचिट मिल गई है लेकिन इस मामले से जुड़े कुछ अफसरों पर तलवार अभी भी लटकी है। मगर इस मामले से जुड़े अधिकारियों पर चुनाव आयोग का डंडा चला था और इसके पर्दे के पीछे कौन था, यह कहानी आपको आज हम बताने जा रहे हैं।
ई-टेंडर घोटाले में आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने जांच की थी। इसमें सीधे तौर पर तत्कालीन एसपी अरुण मिश्रा शामिल थे तथा संजय माने, सुशोभन बनर्जी, वी मधुकुमार शीर्ष अधिकारी थे। ई-टेंडर घोटाले की जांच में जो भी हुआ हो और उसमें कमजोर विवेचना की वजह से अदालत में यह मामला टिक नहीं सका। अदालत में आरोपियों को इसका लाभ मिला और क्लीनचिट मिल गई। घोटाले के आरोपियों को भले ही क्लीनचिट मिल गई लेकिन विवेचना से जुड़े अफसरों पर चुनाव आयोग का एक्शन अभी अधर में है लेकिन इसके पीछे कौन अधिकारी रहा, आज इस पर से हम पर्दा हटा रहे हैं।
पुत्र प्रेम में आईएएस अधिकारी ने खेला खेल
उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक ई-टेंडर घोटाले में एक कंपनी शामिल थी जिसे बड़ा फायदा हुआ था। इस कंपनी में मध्य प्रदेश कैडर के एक आईएएस अधिकारी का बेटा के बॉस का भी कनेक्शन था। बॉस ने अपने अधीनस्थ के पिता के संपर्कों का लाभ उठाते हुए घोटाले की जांच को प्रभावित करने चुनाव आयोग जैसी संस्था के तत्कालीन प्रभावी व्यक्ति का सहारा लिया। आयोग ने उसी दौरान मध्य प्रदेश सहित 52 ठिकानों पर आयकर छापे में मिली कुछ डायरी व इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में मिले नामों में से इन चार अधिकारियों के नामों को राज्य शासन को भेजा और उनके खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। पुत्र के बॉस को खुश करने के लिए आईएएस अधिकारी ने चुनाव आयोग के एक्शन की गोपनीयता में सुराख भी किए।
आयकर छापे में 160 से ज्यादा नाम डायरी-इलेक्ट्रानिक डिवाइस में मिले
सूत्रों के मुताबिक आयकर छापे में डायरी व इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस मिले थे जिसमें कई नाम थे। ऐसे नामों की संख्या करीब 160 से ज्यादा बताई जाती है। इन नामों में संजय माने, वी मधुकुमार, सुशोभन बनर्जी, अरुण मिश्रा के भी बताए जाते हैं लेकिन उन दस्तावेजों में इन चारों नामों को लेकर किसी प्रकार के लेन-देन का विवरण नहीं था। सूत्रों ने बताया कि चुनाव आयोग ने राज्य शासन को चार नामों का जो पत्र भेजा था, वह आयकर विभाग द्वारा सत्यापित दस्तावेज भी नहीं था। पत्र में केवल चार अफसरों के नाम भर थे।
प्राथमिक जांच दर्ज, प्रमाणित दस्तावेज नहीं होने से अधर में मामला
सूत्रों का कहना है कि इस मामले में सुशोभन बनर्जी, संजय माने, वी मधुकुमार और अरुण मिश्रा के खिलाफ चुनाव आयोग के पत्र के आधार पर ईओडब्ल्यू ने प्राथमिक जांच तो दर्ज कर ली लेकिन अब वह गले की हड्डी बन गई है। आयकर विभाग चुनाव आयोग द्वारा भेजे गए पत्र के आधार पर चारों अफसरों के खिलाफ कोई प्रमाणित दस्तावेज देने से बच रहा है। वहीं, चुनाव आयोग राज्य शासन पर एक्शन के लिए दबाव बना रहा है। हालांकि चुनाव आयोग के तत्कालीन जिम्मेदार व्यक्ति अब वहां नहीं है तो यह दबाव कम हो गया है लेकिन ईओडब्ल्यू के लिए प्राथमिक जांच पर अगली कार्रवाई करने की दिशा में आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा है। आयकर विभाग द्वारा छाप के बाद इन चारों में से किसी के भी खिलाफ एक्शन भी नहीं लिया गया।
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