मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तो दलबदल से नेता इधर से उधर जाने के लिए सुर्खियों में आने लगे हैं। संगठन के नाम पर मजबूत मानी जाने वाली भाजपा पार्टी में इस समय पुराने नेताओं को अपने अस्तित्व की चिंता सता रही है। अविभाजित मध्य प्रदेश के नेता से लेकर जन्मजात आरएसएस विचारधारा वाले नेता पार्टी में कुंठित महसूस कर रहे हैं। चुनाव पूर्व मची यह आपाधापी सुर्खियां बटोर रहे नेताओं तक सीमित रहेगी या आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा, यह सवाल अब तेजी से लोगों के दिमाग में कौंधने लगा है। पढ़िये इस पर हमारी रिपोर्ट।
जब भी कोई चुनाव आता है तो राजनीतिक दलों में उथल-पुथल मच जाती है और नेताओं का एक दल से दूसरे दल में जाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। मगर इस बार भाजपा के लिए चिंता का विषय है क्योंकि उसके पुराने नेता पार्टी पर तमाम तरह के आरोप लगाते हुए दल छोड़ रहे हैं। अविभाजित मध्य प्रदेश के बड़े नेता रहे राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार साय के छत्तीसगढ़ में भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में जाने का जोर का झटका धीरे से मिलने के बाद अब मध्य प्रदेश में जन्मजात आरएसएस विचारधारा से जुड़े रहने वाले पूर्व मंत्री दीपक जोशी भी इसी सप्ताह कांग्रेस में आ सकते हैं।
दोनों नेताओं के पार्टी छोड़ने के मायने
भाजपा के इन दोनों नेताओं के पार्टी छोड़ने का मायना यह निकाला जा रहा है कि भाजपा में पुराने नेताओं के अस्तित्व को खतरा है। नंदकुमार साय कोई आज या कल के भाजपा नेता नहीं हैं बल्कि वे अविभाजित मध्य प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष अध्यक्ष रहे लखीराम अग्रवाल के विश्वास पात्र नेता थे। उनकी वरिष्ठता को कुछ साल से दरकिनार किया जा रहा था और यह बात साय खुद अपने साक्षात्कार में भी बोल चुके हैं। दीपक जोशी के भाजपा छोड़ने का मतलब है कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है क्योंकि दीपक उस परिवार से आते हैं जो न केवल भाजपा के संस्थापकों में से एक है बल्कि जनसंघ को जमाने में भी इस परिवार का अहम रोल रहा है। दीपक के पिता आठ बार एक ही विधानसभा सीट से विधायक रहे तो प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। आरएसएस-जनसंघ-भाजपा के लिए कैलाश जोशी ने मध्य प्रदेश में जो किया वह कोई झुठला नहीं सकता। ऐसे परिवार के सदस्य दीपक जोशी का पार्टी छोड़ने का इरादा करना ही भाजपा संगठन के लिए आत्ममंथन करने के लिए काफी है।
कुछ अन्य पुराने नेताओं में ऐसी चिंता के भाव आते रहे
साय-दीपक जोशी तो वे हैं जिन्होंने खुलकर पार्टी के भीतर अपने साथ किए जा रहे व्यवहार को बयां किया है लेकिन ऐसे कुछ अन्य पुराने नेता भी हैं जो अनुशासन और अन्य संस्कारों की वजह से अपने भीतर दर्द छिपाकर रखे रहते हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती से लेकर प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया, अनूप मिश्रा, अजय विश्नोई, शैलेंद्र प्रधान जैसे कुछ नाम गिने जा सकते हैं। हालांकि अभी भारती शराब को लेकर चलाए गए अभियान के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान की फैन बन गई हैं तो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ एक समय आग उगलने वाले नेताओं प्रभात झा व पवैया भी शांत पड़े हैं। विश्नोई तो समय-समय पर ऐसे तंज कसते रहते हैं कि सरकार व संगठन के कामकाज पर अपने सवाल उठ जाता है।
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