BJP के प्रदेश नेतृत्व की 2023 में अग्निपरीक्षा, आदिवासी वोट पर मेहनत बेकार जाने के आसार…

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 राज्य के पार्टी नेतृत्व के लिए अग्निपरीक्षा जैसी चुनौती बनता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-गृह मंत्री अमित शाह के लगातार दौरों और दिल्ली में प्रदेश के नेताओं के पहुंचकर नेताओं से मिलने की वजह से अब सरकार और संगठन की पकड़ से विधानसभा चुनाव प्रबंधन छिटक गया है। संगठन नहीं होने के बाद भी जनता में कांग्रेस का संदेश पहुंचता जा रहा है और भाजपा के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अकेले मैदान में खड़े नजर आ रहे हैं। परिस्थितियां बदल रहीं क्योंकि जिन आदिवासी वोटों को साधने में भाजपा दो साल से लगी थी, कुछ दिनों के घटनाक्रम से उन्हें झटका सा लगा है। पढ़िये रिपोर्ट।

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 भाजपा के सरकार में होने के बाद भी चुनौती भरा बन गया है। पार्टी आदिवासी वोट के लिए दो साल से जो प्रयास कर रही थी, वह ताजे घटनाक्रमों से बेकार साबित होते दिखाई दे रहे हैं। राज्यपाल के रूप में गुजरात के आदिवासी चेहरे मंगूभाई पटेल की नियुक्ति से आदिवासियों की सहानुभूति पाने का सिलसिला शुरू हुआ था। रानी कमलापति रेलवे स्टेशन, टंट्या मामा प्रतिमा व चौराहा नामकरण से लेकर रानी दुर्गावती-शंकर रघुनाथ शाह के नाम पर महाकौशल में बड़े आयोजन किए गए जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह भी पहुंचे। सीएम हाउस में एक रिटायर्ड आर्मी पर्सन आदिवासी चेहरे को रखकर रणनीतिकार की भूमिका दी गई तो राजभवन में भी आदिवासियों के हितों की रणनीति के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति हुई। दो साल की इस कवायद को सीधी पेशाबकांड, इंदौर में आदिवासियों की पिटाई, झाबुआ में आदिवासी छात्रावास की नाबालिग छात्राओं के साथ एसडीएम की अश्लीलता की घटनाओं ने रौंदकर रख दिया है।
चुनौती के समय मोदी-शाह ने संभाली कमान, उतारी टीम
ऐसे चुनौती के समय पीएम मोदी और अमित शाह कोई भी जोखिम लेने के बजाय स्वयं जिम्मेदारी लेते रहे हैं और कुछ दिनों में मध्य प्रदेश में उन्होंने अपनी मौजूदगी दिखा दी है। मोदी कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद मध्य प्रदेश में लगातार दौरे कर रहे हैं तो शाह बिना कार्यक्रम के ही एमपी में आ धमक रहे हैं। उन्होंने पिछले सप्ताह के घटनाक्रमों के बाद अचानक अपनी टीम के दो महत्वपूर्ण सदस्यों भूपेंद्र यादव व अश्विनी वैष्णव को जिम्मेदारी दे दी है। यही नहीं शाह के बिना कार्यक्रम के मंगलवार को भोपाल पहुंचने पर ये दोनों भी मौजूद रहे और उनके साथ ही दिल्ली गए। चुनाव मैनेजमेंट की एक तरह पूरी जिम्मेदारी इन दोनों को दे दिए जाने के संकेतों से यह आभास हो रहा है कि प्रदेश नेतृत्व अब सपोर्टिंग भूमिका में रहेगा।

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