मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में पिछले कुछ महीनों में भाजपा की रणनीति में बदलाव दिखाई दिया है। अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही नहीं भाजपा अपने तीनों सीएम के कार्यकाल के विकास को लेकर चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है। इसके लिए राज्य शासन के विभागों को 20 सालों में हुए विकास कार्यों का चिट्ठा तैयार करने को कहा गया है। पढ़िये रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश में 2003 में कांग्रेस की दिग्विजय सरकार को बेदखल करने के बाद भाजपा सत्ता में आई थी और आठ दिसंबर 2003 को उमा भारती मुख्यमंत्री बनी थीं। वे करीब साढ़े आठ महीने सीएम रहीं और 23 अगस्त 2004 को इस्तीफा देने के बाद उनकी जगह स्व. बाबूलाल गौर ने सीएम पद संभाला था। वे भी 15 महीने सीएम रहे और 29 नवंबर 2005 को उनकी जगह शिवराज सिंह चौहान ने सीएम पद की जिम्मेदारी ली। वे 2018 में कमलनाथ सरकार बनने के बाद सीएम से हटे लेकिन इत्तफाक से कमलनाथ सरकार के अल्पमत में आने के बाद 23 मार्च 2020 को पुनः उन्होंने सीएम पद की शपथ ली। यानी शिवराज 2003 के बाद 38 महीने मुख्यमंत्री नहीं रहे और करीब 17 साल से वे सीएम हैं।
विभागों में 20 साल का विकास का डाटा तैयार हो रहा
केंद्रीय नेतृत्व ने मध्य प्रदेश को संकेत दे दिए हैं कि चुनाव पूरी लीडरशिप में ही होगा। इसके बाद राज्य में चल रही 20 साल की योजनाओं और मोदी सरकार की दस साल की योजनाओं के विकास का खाका तैयार करने की कवायद शुरू हुई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के 17 साल के कार्यकाल की जगह विधानसभा चुनाव में भाजपा 17 साल नहीं बल्कि 20 साल के विकास को चुनाव में लेकर जाने की तैयारी कर रही है। सूत्रों के मुताबिक सरकारी विभागों में निर्देश पहुंचे हैं कि वे अपने विभाग में 20 साल में हुए विकास कामों का ब्यौरा बनाकर राज्य शासन को भेजें। इस तैयारी से यह माना जा रहा है कि भाजपा केवल शिवराज सरकार के कार्यकाल के विकास को आधार बनाकर चुनाव में नहीं जा रही है।
बदली रणनीति में केंद्रीय नेतृत्व की सोच की झलक
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव में प्रदेश नेतृत्व को फर्स्ट लाइन से अलग कर अपनी टीम को बैठाकर रणनीति तैयार करना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दौरों के अलावा दो मंत्रियों भूपेंद्र यादव-अश्विनी वैष्णव व चुनाव मैनेजमेंट के लिए भेजे गए मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की प्रदेश के नेताओं के साथ बैठकों के दौर में मंथन से विधानसभा चुनाव में उतरने की रणनीति में मामूली बदलाव दिखाई देने लगा है। सरकारी विभागों द्वारा तैयार किए जा रहे 20 साल के विकास के काम उसी बदली रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है। अमित शाह के दौरों से इस रणनीति में और भी बदलाव होने की संभावना जताई जा रही है।
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